मित्रों।
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए कुछ लिंक।
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जब जागो तभी सवेरा है
रौशनी आती मिटता अँधेरा है
दरख्तों से छन कर आती रही
हर तरफ खुशबुओं का डेरा है...
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सब कुछ वही पुराना सा है!
कैसे नूतन सृजन करूँ मैं?
कभी चाँदनी-कभी अँधेरा,
लगा रहे सब अपना फेरा,
जग झंझावातों का डेरा,
असुरों ने मन्दिर को घेरा,
देवालय में भीतर जाकर,
कैसे अपना भजन करूँ मैं?
कैसे नूतन सृजन करूँ मैं?
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यूं ज़ुबां फिसली तमाशा हो गया
हर हक़ीक़त का ख़ुलासा हो गया
बाम पर आकर खड़े वो क्या हुए
चांद का चेहरा ज़रा-सा हो गया...
Suresh Swapnil
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पुरानी यादें 30 दिसम्बर 2005 की वह काली शाम जब भी याद आती है मन सिहर जाता है। उस रात बार बार मौत ऐसे मुलाकात करके गई मानों रूठी हुई प्रेमिका को आगोश में लेने का प्रयास कोई करे और वह बार बार रूठ जाए...
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फिर से चमकेगा गगन-भाल।
आने वाला है नया साल।।
आशाएँ सरसती हैं मन में,
खुशियाँ बरसेंगी आँगन में,
सुधरेंगें बिगड़े हुए हाल।
आने वाला है नया साल।।
होंगी सब दूर विफलताएँ,
आयेंगी नई सफलताएँ,
जन्मेंगे फिर से पाल-बाल।
आने वाला है नया साल...
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१.
मन सा आकाश
उड़ान परिंदों की उदास
सघन तारों के बीच
चाँद फिर भी तन्हा
एकांकी से भरा
असंख्य प्रकाश वर्ष की दूरी पर
जिन्दगी पानी पर बहती जाती !
२....
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माँ...
बदल दिये मैंने घर के पुराने फर्नीचर
सिर्फ रख लिया है वह ड्रेसिंग टेबल
जहाँ तुम अपनी बिंदियाँ चिपका दिया करती थी
ऋता*
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...अभी नहीं आया नववर्ष!
ओ दिसम्बर!
तू उदास मत हो
तू ही तो है जिसके आने पर
धरती के मन में
नई जनवरी खिलने लगती है।
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खो गई दूर कहीं कल्पनायें मेरी
धुंधला गई अब यादें तेरी...
Rekha Joshi
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गांव की बाला
नहीं है मज़बूर
थामे पुस्तक...
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लौटता नहीं वक़्त जाने के बाद कभी
जो अपने पास है वो लम्हा संवार लेते हैं
कसमे-वादो की गर्म हवा से
सपनो की वादियों में
फिर से फूल खिला देते हैं
चलो! सुलह कर लेते हैं !!
Lekhika 'Pari M Shlok'
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सर्दियों की कुनकुनी धूप का आनन्द लेने मैं छत पर पहुंची तो पास की छतों पर बच्चे पतंग उड़ाने में व्यस्त थे कुछ दूर से किसी चुनावी सभा की धीमी-धीमी सी आवाज आ रही थी वहीँ चटाई पर अपने क़ागज फैलाये बिटिया मिनी नशा-मुक्ति सम्बन्धी पोस्टर तैयार करने में लगी थी | पोस्टर कुछ इस तरह उभर रहा था –सिगरेट के चित्र के पास मानव कंकाल ... सिगरेट रूप में बनी अर्थी ..शराब की बोतल के पास स्वास्थ्य सम्बन्धी चेतावनी और आस-पास कुछ समाचारपत्रों की कतरनें ..
Vandana Ramasingh
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29 दिसम्बर 1929 को जन्मे मेरे पिताश्री डॉ. दिनेश चन्द्र वाचस्पति जी का जन्म हुआ था। 6 मई 1970 को उनका साया मेरे से उठ गया। वह विद्धान हिंदी लेखक, शिक्षाविद अौर सैन्ट्रल बोर्ड ऑफ हॉयर एजूकेशन तथा हिन्दी विद्यापीठ के संस्थापक एवं कुलपति थे। एक स्कूटर दुर्घटना में उनका निधन हुआ था। अंतिम समय पर उन्होंने मुझे मिलने पर स्मृति लोप एवं संज्ञा शून्य होने पर तेताला नाम से संबोधित किया था...