मित्रों।
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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यूँ सजे हैं...

हर वर्ष की भांति २०१४ भी अपने बीतने की प्रतीक्षा कर रहा है और २०१५ आने की ! आशा है यह वर्ष ब्लॉग जगत में नए उत्साह और जोश का संचार करे और वह पुराने रूप में वापस लौटे! जो जाने -माने ब्लोग्स अब शांत हैं वहाँ फिर से चहल-पहल शुरू हो. *नव वर्ष की अग्रिम शुभकामनाएँ!..
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ख़ामोशी
किसी ने मुझसे कहा क्यों खामोश है इतना भुप्पी
अब तोड़ भी दे अपनी चुप्पी
मैंने कहा लोकतंत्र की हत्या देख रहा हूँ
उसके पुनर्जन्म की बाट जोह रहा हूँ
क्या गीता में श्रीकृष्ण की बात झूठी हो गई
अधर्म ही यहाँ रीति हो गई
खामोश हूँ मुझे खामोश ही रहने दो...
अब तोड़ भी दे अपनी चुप्पी
मैंने कहा लोकतंत्र की हत्या देख रहा हूँ
उसके पुनर्जन्म की बाट जोह रहा हूँ
क्या गीता में श्रीकृष्ण की बात झूठी हो गई
अधर्म ही यहाँ रीति हो गई
खामोश हूँ मुझे खामोश ही रहने दो...
Bhoopendra Jaysawal
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बे~वजह प्यार..
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तुम कहते हो
"तुम्हें प्यार करता हूं.. बेवजह,
प्यार करने के लिए
क्या वजह होना ज़रूरी है...
parul chandra
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जन्नत से इक परी मेरे घर में उतर आई है
मेरे दिल के दरीचे में बज रही शहनाई है
महताब सा चेहरा है होठों पे तबस्सुम
दिल के सहन पे खुशिओं की सहर आई है
मेरे दिल के दरीचे में बज रही शहनाई है
महताब सा चेहरा है होठों पे तबस्सुम
दिल के सहन पे खुशिओं की सहर आई है

मैं तो नानी बन गयी...
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गिरहकट
कितने धीमे से काटते हो गिरह
मालूम चलने का सवाल कहाँ चतुराई
यही है और बेहोशी का दंड तो
भोगना ही होता है होश आने तक
ढल चुकी साँझ को कौन ओढ़ाए
अब घूंघट...
vandana gupta
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मेहसाना पोलिस व् प्रधानमंत्री मोदी
प्रशंसा के हक़दार
भारत वर्ष में सत्ता सभी ओर हावी है किन्तु कानून आज भी सत्ता से ऊपर है और ये दिखाई दिया है एक बार फिर जब मेहसाना पोलिस ने प्रधानमंत्री की पत्नी जशोदा बेन द्वारा मांगी गयी जानकारी को इसलिए देने से मना कर दिया कि यह जानकारी स्थानीय अन्वेषण ब्यूरो से सम्बंधित है और यह सूचना के अधिकार अधिनियम में छूट प्राप्त है...
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आस और विश्वास
पुष्पा मेहरा
1
चारों ओर निस्तब्धता छाई है,रोशनी की छींटें लिये वाहन ठिठकते बढ़े जा रहे हैं । मरकरी लाइट सिकुड़ी पड़ी अँधेरा हरने में असमर्थ है, परिंदे भी दुबके पड़े दूर-दूर तक दिखाई नहीं देते, रेत की आँधी सा घना अंधकार बिखेरता कोहरा धीरे-धीरे नीचे उतरने लगा। यह लो! टप-टप-टप करते उसके कण नीचे बिछने लगे, वे तो बिछते ही जा रहे हैं, धरती भीगती जा रही है, नम हो रहा है उसका हृदयाकाश ।
एक मात्र धरती ही तो है जिसका अंतस पीड़ा व सुख समाने की शक्ति रखता है। चारों ओर मौन मुखर होने लगा, उसने कुहासे के सिहरते क्रंदन को सुना, पल भी न लगा,शीत से काँपते हाथों से अपना आँचल फैला उसे सहेज लिया।कोहरा झड़ता रहा,धरा के वक्ष में समाता रहा।
ममता की पराकाष्ठा ही तो व्याप रही थी सर्वत्र...!
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"नवगीत-राह को बुहार लो"
झाड़ुएँ सवाँर लो।
राह को बुहार लो।।
वक्त आज आ गया
“रूप” आज भा गया
आदमी सुवास की
राह आज पा गया
लक्ष्य को पुकार लो।
झाड़ुएँ सवाँर लो...
सुप्रभात
ReplyDeleteनए वर्ष के स्वागत में सब अभी से जुट गए हैं |
उम्दा लिंक्स |
सुंदर सोमवारीय चर्चा में 'उलूक' के सूत्र 'इक्तीस दिसम्बर इस साल नहीं आ पाये सरकार के इस फरमान का मान रखें' को स्थान देने के लिये आभार ।
ReplyDeleteबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
ReplyDeleteमेरी रचना को स्थान देने के लिए धन्यवाद.
ReplyDeleteधन्यवाद इस संकलन को हम तक पहुँचाने का...
ReplyDeleteसुन्दर चर्चा... 'सुहानो दृष्टि' को स्थान देने के लिए दिल से शुक्रिया....
ReplyDeleteBAHUT -BAHUT AABHAAR ! SHUKRIYA HAMARI RACHNA KO APNI CHARCHA MAIN SHAMIL KARNE HETU ! DOOSRI RACHNAYEN BHI SHAANDAAR HAIN JI !
ReplyDeleteBahut hi sundar sankalan.
ReplyDeletemeri post ko sthan mila..achchaa lagaa.
Bahut -bahut aabhaar.