मित्रों।
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
--
तेरी महिमा गाये पुराण
मैं क्या लिखूँ भगवान तेरी महिमा गाये पुराण ..
तुम अंजनी के पूत प्यारे तुम वैदेही के दुलारे
तुम रामदूत हनुमान तेरी महिमा गाये पुराण ..
--
--
"धर्मान्तरण के कारण"
...स्वार्थ और लोभ के कारण आज हमारे देश के कितने ही हिन्दुपरिवार ईसाई बन गये हैं। लेकिन वो अपना सरनेम और जाति का लबादा आज भी हिन्दु धर्म का ही ओढ़े हुए हैं। विडम्बना यह है कि ईसाई मूल के लोग तो आजकल धर्म परिवर्तन कम कराते हैं और लोभ तथा स्वार्थ के लिए धर्मान्तरण किए हुए लोग इस हरकत में अधिक संलग्न है।...
--
--
--
गिरिराज सिंह के कहे का आशय
भारत धर्मी समाज की चेतना को जगाना है
जो कांग्रेस की सुसुप्ति में हैं
भारत की मिट्टी में जन्मा व्यक्ति कांग्रेस का अध्यक्ष कब बनेगा'
क्या इस देश में एक भी कांग्रेसी ऐसा नहीं है जो यह पूछ सके।
सभी हाई कमान के चाटुकार हैं तलुवे चाटते हैं...
आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
--
--
--
मैं ही जान सकता हूँ।
एक तरफा प्रेम घातक होता है
उसके लिये जो प्रेम करता है।
अज्ञानी पतंगा खुद से भी अधिक करता है
प्रेम दीपक से भस्म हो जाता है जलकर...
--
दायरे यादों के
हैं बृहद दायरे यादों के
यह कम ही जान पाते
सब चलते उसी पगडंडी पर
ठिठक जाते चलते चलते
मार्ग में ही अटक जाते हैं...
--
ख़ामोशी खड़ी है
गया , सब कुछ गया ।
रोशनी थी , रास्ता था ,
मधु - पगा सब वास्ता था ;
किन्तु ख़ामोशी खड़ी है ,
ओढ़कर कुछ नया...
--
--
--
''माँ' पूरी कायनात है !
जो कलम लिख देती माँ ,
हो जाती वो तो पाक है ,
क्या लिखूं माँ के लिए ?
''माँ' पूरी कायनात है !...
हो जाती वो तो पाक है ,
क्या लिखूं माँ के लिए ?
''माँ' पूरी कायनात है !...
--
नहीं कहला रहे नीलकंठ
कई बार खो जाते हैं ,
साथ रहते,चलते करीबी रिश्ते |
जब , सर उठाने लगती है
साथ गुजारे लम्हे
कुछ लौट आते हैं उलटे क़दम
जैसे आ जाता है ,
सुबह का निकला पंछी नीड़ में...
--
--
"लो मित्रो !!
वानप्रस्थाश्रम और आध्यात्म यात्रा की ओर
जाने की तैयारी शुरू कर रहा हूँ "!!
पीताम्बर दत्त शर्मा ( लेखक-विश्लेषक)
--
--
श्याम सवैया छंद..
डा श्याम गुप्त ....
मेरे द्वारा नव-सृजित छंद....श्याम सवैया ......जो छः पंक्तियों का सवैया छंद है जिसमें २२ से २६ तक वर्ण होसकते हैं ....
जन्म मिलै यदि मानुस कौ, तौ भारत भूमि वही अनुरागी |पूत बड़े नेता कौं बनूँ, निज हित लगि देश की चिंता त्यागी |पाहन ऊंचे मौल सजूँ, नित माया के दर्शन पाऊं सुभागी |जो पसु हों तौ स्वान वही, मिले कोठी औ कार रहों बड़भागी |काठ बनूँ तौ बनूँ कुर्सी, मिलि जावै मुराद मिले मन माँगी |श्याम' जहै ठुकराऊं मिले, या फांसी या जेल सदा को हो दागी ||...
--
ख्यालों के बाजूबंद
1
ये जानते हुए भी कि
महज वक्त की बर्बादी है
खेल रहा है मेरा मन ख्याली पिट्ठुओं से
उस पर सितम ये कि
मौजूद हैं सब रोकने के माकूल उपाय
कितने इत्मीनान से वक्त से
ये दांव लगाया है मैंने ...
vandana gupta
सुप्रभात
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स और संयोजन |
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |
सुंदर चर्चा....
जवाब देंहटाएंआभार सर आप का...
सुंदर शनिवारीय अंक । आभारी है 'उलूक' सूत्र 'दो अप्रैल का मजाक' को चर्चा में शमिल देख कर ।
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंहनुमान जयंती की हार्दिक मंगलकामनाएं!
सुंदर चर्चा...
जवाब देंहटाएंहनुमान जयंती की हार्दिक मंगलकामनाएं!
sundar links se susajjit charcha .....aabhar
जवाब देंहटाएंhanuman jayanti ki hardik mangalkamnayein
बेहतरीन चर्चा ,मेरी रचना शामिल करने केलिए धन्यवाद सर
जवाब देंहटाएंअच्छे आलेख हैं ..धन्यवाद शास्त्रीजी
जवाब देंहटाएंखूबसूरत सूत्र समायोजन।
जवाब देंहटाएंआभार सर।
शुभ रात्रि।
sabhi link kafi achhe hain...
जवाब देंहटाएं