मित्रों।
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
"भारत माँ का कर्ज चुकाना है"
इसको बहुत मन से समवेत स्वरों में
मेरी मुँहबोली भतीजियों
श्रीमती अर्चना चावजी और उनकी छोटी बहिन
रचना बजाज ने गाया है।
आप भी इस गीत का आनन्द लीजिए!
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तन, मन, धन से हमको, भारत माँ का कर्ज चुकाना है।
फिर से अपने भारत को, जग का आचार्य बनाना है।।
राम-कृष्ण, गौतम, गांधी की हम ही तो सन्तान है,
शान्तिदूत और कान्तिकारियों की हम ही पहचान हैं।
ऋषि-मुनियों की गाथा को, दुनिया भर में गुंजाना है।
फिर से अपने भारत को, जग का आचार्य बनाना है।।...
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हमें रसातल दिखा रही कुदरत
जो थी जीवन जुटा रही कुदरत
अब जीवन को जला रही कुदरत
विष-बेलें जो हमने थीं बोईं
उनका ही विष पिला रही कुदरत...
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शब्दों के नए अर्थ ...
चलो मिल कर
शब्दों को दें नए अर्थ, नए नाम
क्रांति की बातों में कायरता का एहसास हो
विप्लव के स्वरों में रुन्दन का गान
दोस्ती के मायने दुश्मनी
(गलत है पर सच है)
प्यार के अर्थ में बेवफाई की बू आए
(पर ये हो शुरूआती मतलब ...
अंत तक तो प्यार वैसे भी बेवफाई में बदल जाता है)...
शब्दों को दें नए अर्थ, नए नाम
क्रांति की बातों में कायरता का एहसास हो
विप्लव के स्वरों में रुन्दन का गान
दोस्ती के मायने दुश्मनी
(गलत है पर सच है)
प्यार के अर्थ में बेवफाई की बू आए
(पर ये हो शुरूआती मतलब ...
अंत तक तो प्यार वैसे भी बेवफाई में बदल जाता है)...
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शरीर तो पहले ही जड़ है।
मरता कौन है
फिर ?
क्या मृत्यु एक इल्यूज़न है ?
माया ?
आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
--बादल तो आये
बादल तो आये , पर बिन बरसे ही चले गये ।
सात - सात दिन तक सावन में मेघिल झर झरना ,
सच पूछो तो हुआ आज की पीढ़ी को सपना ;
क़त्लेआम वनों का कर , लगता हम छले गये...
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Hindi story camel &
mountain Anurag Sharma
लघुकथा
झुमकेचलप्रसाद काम में थोड़ा कमजोर था। बदमाशियाँ भी करता था। दिखने में ठीक-ठाक था और इस ठीक-ठाक को उसके साथियों ने काफी ओवररेट किया हुआ था। सो वह अपने आप को डैनी, नहीं, शायद राजेश खन्ना समझता था...
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उलझी लट सुलझा दो
मन की उलझी लट सुलझा दो,
मेरे प्यारे प्रेम सरोवर ।
लुप्त दृष्टि से पथ, दिखला दो,
स्वप्नशील दर्शन झिंझोड़कर ।।१।।
२...
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आईना
मत बांधो मेरी तारीफ़ के पुल,मत पढ़ो मेरी शान में कसीदे,
मत कहो कि मैं कुछ अलग हूँ,
कि मेरा कोई सानी नहीं है...
कविताएँ पर Onkar
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ऋतुराज के गीत
रात की रानी छेड़ती सरगम
रात वीरानी सोयी
दुनिया देती रही पहरा
रात की रानी कंक्रीट वन उगी
कोमल दूर्वा लौटा
जीवन सुन रही हूँ ऋतुराज के गीत
खिल रहीं हूँ रजनी गंधा बन खुश्बू
महका ख्याल तुम्हारा...
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रद्दी कागज़ बेचोssss चीखता,
निकल गया रद्दी वाला
याद आने लगीं
बनारस की संकरी गलियाँ पुराना घर
दुपहरिया में एक गाय आकर
घुसेड़ देती थी पूरी गरदन गली में
खुलते कमरे के दरवज्जे को धकेल कर
पी जाती थी एक बाल्टा पानी
हँसता था सामने चबूतरे पर बैठा प्याऊ...
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सुंदर चर्चा...
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स. मेरी कविता को जगह देने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर सोमवारीय चर्चा । आभार 'उलूक' का सूत्र 'धोबी होने की कोशिश मत कर बाज आ गधा भी नहीं रह पायेगा समझ जा' को शामिल करने के लिये ।
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स...मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर लींक्स, कुछ अच्छा पढ़ने को मिला
जवाब देंहटाएंधन्यवाद यहाँ पोस्ट शामिल करने के लिए,आपका ये प्रोत्साहन आगे बढ़ने की प्रेरणा देता है.
जवाब देंहटाएंमस्त है आज की चर्चा .. आभार मुझे शामिल करने का ...
जवाब देंहटाएंbahut bahut shukriyaa.. Thank you... aur bahut ache link....
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