मित्रों।
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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"नीम की छाँव नहीं रही"
जाने कहाँ खो गया अपना, आज पुराना गाँव।
नहीं रही अपने आँगन में, आज नीम की छाँव।।
घर-घर में हैं टैलीवीजिन, सूनी है चौपाल,
छाछ-दूध-नवनीत न भाता, चाय पियें गोपाल,
भूल गये नाविक के बच्चे, आज चलानी नाव।
नहीं रही अपने आँगन में, आज नीम की छाँव।।...
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स्लेट जब रिक्त हो जाए
तब अपनापन ही
रिक्तता को भरता है
हमारे पास अधिकार के कुछ नम्बर होते हैं, रात 2 बजे भी उन्हीं नम्बरों पर हम डायल करके उनकी बाँहों को आमन्त्रित कर लेते हैं। वे भी तुरन्त ही बिना विलम्ब किए आ जाते हैं और आश्वस्त कर देते हैं कि हम अकेले नहीं है...
smt. Ajit Gupta
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स्वतः सवेरा खिल आता है...!
व्यक्त होते होते
कितना कुछ है जो रह जाता है,
अनकहा कितना कुछ अनायास ही
आँखों से बह जाता है...
हर सुबह उग आता है
सम्पूर्ण लालिमा के साथ इठलाता सूरज,
रात्रि संग उसका
सदियों पुराना दूर का कोई नाता है...
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दौड़े बहुत हो
आँतक-वाद की रोकथाम कैसे हो .....
बदले के बदले चलते रहेंगे
खुदा बन के खुद को छलते रहेंगे...
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शिव से
शिव,
वह गंगा,
जो कभी तुम्हारी जटाओं से निकली थी,
अब मैली हो गई है, बल्कि हमने कर दी है,
अब चाहकर भी हमसे साफ़ नहीं हो रही,
बरसों की कोशिश का परिणाम
कुछ भी नहीं निकल रहा,
शायद हमारी इच्छा-शक्ति
या
सामर्थ्य में कोई कमी है...
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कश्मीर की समस्या
कश्मीर में इन दिनों जो हो रहा है उसे देखकर संदेह होता है कि हमारा देश वास्तव में एक सम्प्रभु राष्ट्र है अथवा टुकड़ों में बाटे भू- भागके अतिरिक्त और कुछ नहीं जहाँ सियासत के नाम पर देश तक की सौदेबाज़ी होती है...
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भगवान् परशुराम को समर्पित
कुछ छंद
स्वाभिमान सर्वथा प्रतीक बन जाता यहॉं ,
न्याय पक्ष के प्रत्यक्ष पूर्ण परिणाम हैं ।
मातृ शीष काट के प्रमाण जग को है दिया ,
सिद्ग साधना के प्रति प्रभु निष्काम हैं...
तीखी कलम से पर
Naveen Mani Tripathi
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गेहूँ
हम शहरियों के लिए कितना कठिन है धोना सुखाना चक्की से पिसा कर घर ले आना आंटा! उनकी नियति है जोतना बोना उगाना पकने की प्रतीक्षा करना काटना दंवाई करना खाने के लिए रखकर बाजार तक ले जाना गेहूँ!!! हमारे पास विकल्प है हम बाज़ार से सीधे खरीद सकते हैं आंटा उनके पास कोई विकल्प नहीं उन्हें उगाना ही है गेहूँ हम खुश हैं उनकी मजबूरी के तले हमारे सभी विकल्प सुरक्षित हैं
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घड़ियाली आँसू
( कविता )
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( कविता )
शिक्षक से छीनकर
शिक्षण कार्य
भला चाहा जा रहा है
शिक्षा का
और शिक्षा के पतन पर
घड़ियाली आँसू बहा रहे हैं ...
साहित्य सुरभि--
अपसंस्कृति फैलाते टी वी धारावाहिक
और
रियलिटी शोज़
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गुलाम हर किसी को समझें हैं मर्द सारे
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*मुक्त-मुक्तक : 701
तुझमें ख़राबी है ॥
*फ़क़त इक ही
मगर
सबसे बड़ी तुझमें ख़राबी है ॥
ज़रा रुक ! सुन !
तुझे रहती हमेशा क्यों शिताबी है...
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ऐसा तभी हो सकता है
खामोश अक्स का उन्हें मालूम न हो
सुबह-सांझ कोई शिकायत न हो
कोई न संवाद न ही कोई कारण हो
ऐसा तभी हो सकता है
जब उन्हें मेरे प्रेम का मालूम न हो...
प्रभात
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सुप्रभात
जवाब देंहटाएंविविधता लिए लिंक्स से सजा आज का चर्चामंच
मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद सर |
बहुत सुन्दर सार्थक सूत्रों से सुसज्जित मंच ! मेरे विचारों को भी स्थान मिला आपका आभार शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रविवारीय अंक । आज की चर्चा में 'उलूक' उवाच 'आइना कभी नहीं देखने वाला
जवाब देंहटाएंदिखाने के लिये रख गया' को भी जगह देने के लिये आभार ।
बेहतरीन लिंक्स
जवाब देंहटाएंरविवार की मेरी आवारगी सफल साधना तक पहुँच गयी
निवेदित शुभकामनायें !!!
बहुत आभार!
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा. मेरी रचना को जगह दी. आभार
जवाब देंहटाएंसुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंनीव की छांव बहुत पसंद आई।
मेरी रचना को स्थान देने के लिए ह्रदय से आभार।
खूबसुरत चर्चा
जवाब देंहटाएंसुन्दर व सार्थक रचना प्रस्तुतिकरण के लिए आभार..
जवाब देंहटाएंकुछ प्रस्तुतियाँ बहुत बहुत ही शानदार लगीं
जवाब देंहटाएंसभी अच्छी प्रविष्टियों को पढ़ने के लिए एक ही मंच
मेरा सौभाग्य आपका आभार
धन्यवाद !मयंक जी ! मेरी रचना ''*मुक्त-मुक्तक : 701 तुझमें ख़राबी है ॥ '' को शामिल करने का ।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद !मयंक जी ! मेरी रचना ''*मुक्त-मुक्तक : 701 तुझमें ख़राबी है ॥ '' को शामिल करने का ।
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