मित्रों।
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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गीत "अमलतास के पीले गजरे"
अमलतास के पीले गजरे, झूमर से लहराते हैं।
लू के गर्म थपेड़े खाकर भी, हँसते-मुस्काते हैं।।
ये मौसम की मार, हमेशा खुश हो कर सहते हैं,
दोपहरी में क्लान्त पथिक को, छाया देते रहते हैं,
सूरज की भट्टी में तपकर, कंचन से हो जाते हैं।
लू के गर्म थपेड़े खाकर भी, हँसते-मुस्काते हैं...
किसी से इस सियासत का हाल क्या कहिये ,
घिरी हुई है तवायफ तमाशबीनों से।
आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
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पतंग
जब मेरी डोर किसी के हाथ में थी,
मैं छटपटाती थी,
मुक्ति के लिए.
मैं दूर बादलों में उडूं,
हवाओं के साथ दौडूँ,
सूरज को ज़रा क़रीब से देखूं -
इतना मेरे लिए काफ़ी नहीं था...
कविताएँ पर Onkar
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क्षणिकाएँ
जिंदगी के थपेड़ों ने
जब भी थका दिया मुझे
आ बैठी मैं यादों के बरगद की छाँव में
सहलाया मुझे यादों ने
दे गईं मन को असीम सुकून...
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