मित्रों।
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के निम्न अद्यतन लिंक।
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सूर्योदय से सूर्यास्त तक
बालारुण ने खोल दीं मुँदी आँखें भोर हो गयी !
चूम के माथा सूरज की किरणें प्रात जगातीं !
उदित हुआ सुदूर क्षितिज में बाल भास्कर
जागी सम्पूर्ण सृष्टि मुदित हुई धरा !
आँगन मेरे झिलमिल करतीं सूर्य रश्मियाँ...
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दोहागीत
"समय पड़े पर गधे को बाप बनाते लोग"

व्यर्थ न समय गवाँइए, इससे मुँह मत फेर।
मिट्टी को कंचन करे, नहीं लगाता देर।।
समय पड़े पर गधे को, बाप बनाते लोग।
समय बनाता सब जगह, कुछ संयोग-वियोग।।
समय न करता है दया, जब अपनी पर आय।
ज्ञानी-ध्यानी-बली को, देता धूल चटाय।।
समय अगर अनुकूल है, कायर लगते शेर।
मिट्टी को कंचन करे, नहीं लगाता देर...
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इस सदी की निहायत अश्लील कविता
- चण्डीदत्त शुक्ल
जरूरी नहीं है कि,
आप पढ़ें
इस सदी की, यह निहायत अश्लील कविता
और एकदम संस्कारित होते हुए भी,देने को विवश हो जाएं हजारों-हजार गालियां।
आप, जो कभी भी रंगे हाथ धरे नहीं गए,वेश्यालयों से दबे पांव,
मुंह छिपाए हुए निकलते समय,तब क्यों जरूरी है कि आप पढ़ें अश्लील रचना?...
जरूरी नहीं है कि,
आप पढ़ें
इस सदी की, यह निहायत अश्लील कविता
और एकदम संस्कारित होते हुए भी,देने को विवश हो जाएं हजारों-हजार गालियां।
आप, जो कभी भी रंगे हाथ धरे नहीं गए,वेश्यालयों से दबे पांव,
मुंह छिपाए हुए निकलते समय,तब क्यों जरूरी है कि आप पढ़ें अश्लील रचना?...
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प्रेम तुम जीत हो....
प्रेम तुम जीत हो
लेकिन हारा है हर कोई
तुम्हें पाने की चाहत में...
फिर मैं क्यों कर जीत पाती ...
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'वेरा उन सपनों की कथा कहो' का चौथा संस्करण पलटते हुए मैं सोच रही हूं कि कविता के सुधी पाठकों का संसार शायद इतना भी सीमित नहीं. मार्च 1996 में यह संग्रह पहली बार प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह से कोई रोशनी सी फूटती नजर आ रही थी। इसकी कविताएं महज शब्द नहीं, एक पूरा संसार हैं स्त्री मन का संसार...
Pratibha Katiyar
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मैं और मेरे खटमल मित्र
मैं और मेरे खटमल मित्र, हमेशा साथ मे रहते है|
जब मैं घर पर होता हू, तो सुख दुख की बाते करते है||
मेरे खटमल मित्र, मुझसे बहुत प्यार करते है।
और मेरे साथ मजे से, मेरी खोली मे ही रहते है...
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धरती-पुत्र किसान हमारे
धरती-पुत्र किसान हमारे जीवन अपना हार चुके हैं
उनकी दशा हुई भयावह मौतों को स्वीकार चुके है .
सूखे अकाल व बेरोजगारी सपनों को ही तोड़ चुके हैं
भारत की जो रीढ़ कृषि थी आज वही दम तोड़ चुके हैं...
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जननी को कौन याद करता
सागर में सीपी असंख्य
असंभव सब को एकत्र करना
फिर भी अपेक्षा रहती
मोती वाली सीपी की |
मोती तरह तरह के
छोटे बड़े सुडौल बेडौल
उन्हें तराशती नज़र पारखी
आभा तभी निखरती...
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कौन जाने किस ठौर...!
कुछ कदम साथ चले...
फिर चल दे कहीं और,
कौन जाने किस ठौर...
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मौसम क़ातिल...
दर्द के पीछे दिल भी है यह मस्ला मुश्किल भी है
कुछ हम ही दीवाने हैं कुछ मौसम क़ातिल भी है...
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निवेदिता मिश्र झा की कविताएं।


वृक्ष
तुम
पहचानते हो
बेला,जूही,कचनार
या सखुए की डाली
देवदार,चीड़ तो दूर की बात…।
चलो नेट में ढूंढते हैं
गूगल सही बताता है बात।
ये है तुम्हारा या मेरा हाल
निहारते हम दूर आकाश
तरसती दरार पड़ी धरती
रिसता रहा मन…
क्रिएटिव कोना
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भूली बिसरी यादें

कुछ बाकी है …
बातें तो बहुत सारी होती हैं कहने को
पर कुछ बातें ऐसी होती हैं
जो जेहन से नहीं निकलती,
ऐसे ही एक बात है
जो मैं सबसे शेयर करना चाहती हूँ...
बात एक अनकही सी

कुछ बाकी है …
बातें तो बहुत सारी होती हैं कहने को
पर कुछ बातें ऐसी होती हैं
जो जेहन से नहीं निकलती,
ऐसे ही एक बात है
जो मैं सबसे शेयर करना चाहती हूँ...
बात एक अनकही सी
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नारी मुक्ति मोर्चा माने या न माने ..
लेकिन अपनी गरिमा को गिराने में
इन लड़कियों का हाथ भी
कुछ काम नहीं...
mridula's blog
लेकिन अपनी गरिमा को गिराने में
इन लड़कियों का हाथ भी
कुछ काम नहीं...
mridula's blog
सुप्रभात
ReplyDeleteसंकलन सूत्रों का यथेष्ट आज के लिए |
मेरी रचना शामिल की धन्यवाद सर |
बहुत सूत्र संजोये हैं आज शास्त्री जी ! मेरी प्रस्तुति को इनमें सम्मिलित करने के लिये आपका आभार एवं धन्यवाद !
ReplyDeleteबहुत सुंदर रविवारीय चर्चा.
ReplyDeleteमेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.
बहुत सुंदर सूत्र संकलन और संयोजन । 'उलूक' का आभार सूत्र 'आता माझी सटकली' को भी स्थान देने के लिये ।
ReplyDeletebahoot sundar links, sundar charcha.
ReplyDeleteमेरी रचना "मैं और मेरे खटमल मित्र " को चर्चा मे स्थान देने के लिए। बहुत-बहुत शुुक्रिया।
सुन्दर व सार्थक प्रस्तुति..
ReplyDeleteशुभकामनाएँ।
मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है।
बहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति ...आभार!
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और रोचक सूत्र संकलन...आभार!
ReplyDeleteइस मनमोहक चर्चा में मेरी रचना को शामिल करने के देरों धन्यवाद सर
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