मित्रों।
सोमवार की चर्चाकार अनुषा जैन की सहमति से
आज की चर्चा में मेरी पसन्द के लिंक देखिए।
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एक ग़ज़ल
फिर से नए चिराग़....
फिर से नये चिराग़ जलाने की बात कर
सोने लगे है लोग ,जगाने की बात कर
गुज़रेगा इस मक़ाम अभी कल का कारवां
अन्दाज़-ए-एहतराम बताने की बात कर...
सोने लगे है लोग ,जगाने की बात कर
गुज़रेगा इस मक़ाम अभी कल का कारवां
अन्दाज़-ए-एहतराम बताने की बात कर...
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गाँव की याद
व्यस्त रहे कामों में, फिर भी नहीं आज तक भूले,
आम तोड़ कर तुम मुझसे कहती थीं, 'पहले तू ले!'
क्या अब भी हैं खेल वही, 'छू सकती है, तो छू ले!'
लिखना, अब के बरस, सखी, क्या फिर पलाश हैं फूले?
क्या सावन में अब भी वैसे ही सजते हैं झूले?
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मुझे पीपल बुलाता है
प्रखरतम धूप बन राहों में, जब सूरज सताता है।
कहीं से दे मुझे आवाज़, तब पीपल बुलाता है।
ये न्यायाधीश मेरे गाँव का, अपनी अदालत में,
सभी दंगे फ़सादों का, पलों में हल सुझाता है।...
गज़ल संध्या पर कल्पना रामानी
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बेटे भी तो हैं सृष्टि के रचियता से.....
बेटियां है अगर लक्ष्मी , सरस्वती ,दुर्गा।
बेटे भी तो हैं प्रतिरूप नारायण ,ब्रह्मा और शिव का।
सृष्टि के रचियता से पालक भी हैं।
बेटियां अगर नाज़ है तो बेटे भी मान है ,
गौरव है सीमा के प्रहरी है , देश के रक्षक है...
नयी उड़ान + पर Upasna Siag
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कालिख
खूब रोशनी फैलाओ, अँधेरा दूर भगाओ,
भटकों को राह दिखाओ, इसी में छिपी है तुम्हारी ख़ुशी,
यही है तुम्हारे होने का मक़सद. पर जब तुम्हारा तेल चुक जाय,
तुम्हारी बाती जल जाय, तुम जलने के काबिल न रहो,
तो बची-खुची कालिख देखकर हैरान मत होना...
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विचार ...
तपस्या जरूरी है सृजन के लिए और क्रांति के लिए ... विचार ... एक ऐसा विचार जो लेता रहे सांस दिल के किसी कोने में ... सतत सुलगने की आकांक्षा लिए ... आग जैसे धधकने की चाहत लिए ... महामारी सा फ़ैल जाने की उन्माद लिए ...
उधार के शब्दों से
विप्लव नहीं आता
परिवर्तन की लहर
आग के दरिया से उठनी जरूरी है...
उधार के शब्दों से
विप्लव नहीं आता
परिवर्तन की लहर
आग के दरिया से उठनी जरूरी है...
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रात्रि विरहणा, दिन भरमाये
जगता हूँ, मन खो जाता है,
तुम्हे ढूढ़ने को जाता है ।
सोऊँ, नींद नहीं आ पाती,
तेरे स्वप्नों में खो जाती ।
ध्यान कहीं भी लग न पाये,
रात्रि विरहणा, दिन भरमाये ।।१।।...
--तुम्हे ढूढ़ने को जाता है ।
सोऊँ, नींद नहीं आ पाती,
तेरे स्वप्नों में खो जाती ।
ध्यान कहीं भी लग न पाये,
रात्रि विरहणा, दिन भरमाये ।।१।।...
स्वप्न अधूरा
स्वप्न सजाए थे कभी
तुझ को समर्पण के
कदम बढ़ाए थे
आशाएं मन में लिए ।
पर तेरे पाँव की
धूल तक छू न सके...
अनुग्रह मेरा स्वीकार कीजिये ...
यही थे मन के विचार आज से पांच वर्ष पूर्व और आज भी यही है जीवन …… कितना सुखद लग रहा है आज ,आप सभी के साथ का यह पांच वर्ष का सफर ....
अर्थ की अमा
समर्थ की आभा है ,
अनुग्रह मेरा स्वीकार कीजिये ,
आज दो शब्द अपने ज़रूर मुझे दीजिये…
अर्थ की अमा
समर्थ की आभा है ,
अनुग्रह मेरा स्वीकार कीजिये ,
आज दो शब्द अपने ज़रूर मुझे दीजिये…
anupama's sukrity पर Anupama Tripathi
--पुण्य मिलता है!!
सरल गाँव
(गाँव पर 10 हाइकु)
1.
जीवन त्वरा
बची है परम्परा,
सरल गाँव !
2.
घूँघट खुला,
मनिहार जो लाया
हरी चूड़ियाँ !
3...
सपने बदलने से
शायद मौसम बदल जायेगा
वैज्ञानिकों की अतुलनीय क्षमता
और असाधारण प्रतिबद्धता का सम्मान
परिसंवाद पर डॉ. मोनिका शर्मा
--नारी व् सशक्तिकरण
छतीस का आंकड़ा
कार्टून:-
गुडलक-गुडबाय का मतलब
ग़ज़ल
उड़ता बग़ैर पंख के नादान आज तो
खुद को खुदा समझ रहा, इंसान आज तो
मुट्ठी में है सिमट गया जहान आज तो
कैसे सुधार हो भला, अपने समाज का
कौड़ी के मोल बिक रहा, ईमान आज तो...
सुप्रबात
जवाब देंहटाएंबहुरंगी चर्चा के हैं लिंक्स आज |मेरी रचना शामिल करने के लिए आभार सर |
सुन्दर संकलन. मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद.
जवाब देंहटाएंसुंदर सोमवारीय चर्चा । आभार 'उलूक' का सूत्र 'सपने बदलने से शायद मौसम बदल जायेगा' को स्थान दिया ।
जवाब देंहटाएंउम्दा लिंक्स...मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स-चर्चा प्रस्तुति हेतु आभार!
जवाब देंहटाएंमस्त लिख हैं सारे ... अच्छी चर्चा ... आभार मुझे भी शामिल करने का इस चर्चा में ...
जवाब देंहटाएंरोचक लिंक्स....शुभ रात्रि।
जवाब देंहटाएंsabhi links padh gai yekbar me...pathniy
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