मित्रों।
सोमवार की चर्चाकार अनूषा जैन जी ने सूचित किया है-
"शास्त्री जी, इस रविवार,
मेरा भाई आ रहा है, अमेरिका से,
तो सोमवार की चर्चा करने में इस बार असमर्थ रहूंगी."
इसलिए सोमवार की चर्चा में
मेरी पसन्द के लिंक देखिए।
दोहे "धरती और पहाड़ पर,
है कुदरत की मार"
वसुन्धरा कैसे सजे, भर सोलह सिंगार।
धरती और पहाड़ पर, है कुदरत की मार।।
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आदिकाल से चल रहा, कुदरत का यह खेल।
मानव सब कुछ जानकर, बोता विष की बेल...
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भारत में भूकम्प रोधी मकान बनाने को लेकर
एक समान भूकम्प रोधी इंजीनियरी रियल्टर्स
स्वीकृत करें ये वक्त की मांग है.........
आपका ब्लॉग पर
Virendra Kumar Sharma
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तेरे बिन ओ मीता !
आँखों में रात गयी ,
पथ तकते दिन बीता ,
तेरे बिन ओ मीता !
अंधकार के घर से सुबह निकल आयी है ,
पूरब ने कंधों पर रोशनी उठाई है ;
किन्तु दिखी नहीं कहीं
सपनों की परिणीता..
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आस कैसी
सोचता हूँ सहज होकर,
भावना से रहित होकर,
अपेक्षित संसार से क्या ?
हेतु किस मैं जी रहा हूँ...
प्रवीण पाण्डेय
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''दिल मेरा तैयार है ''
ग़म का समंदर पी जाने को दिल मेरा तैयार है !
मर -मर कर यूँ जी जाने को दिल मेरा तैयार...
shikha kaushik
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यह है देश का
सबसे पुराना रेलवे स्टेशन
रोयापुरम, तब भारत में पहली बार रेल 16 अप्रैल 1853 के दिन चली थी। इसके बाद धीरे-धीरे इसे अपनी सुविधा के अनुसार अंग्रेजों ने देश भर में इसका विस्तार किया...
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा
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मिट्टियों की सिर्फ कहानियां होती हैं
निशानियाँ नहीं ...
करते रहे दोहन करते रहे शोषण
आखिर सीमा थी उसकी भी
और जब सीमाएं लांघी जाती हैं
तबाहियों के मंज़र ही नज़र आते हैं
कोशिशों के तमाम आग्रह जब निरस्त हुए
खूँटा तोडना ही तब अंतिम विकल्प नज़र आया
वो बेचैन थी ....
vandana gupta
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स्वप्न का अनुबंध कैसा ...
फलसफ़ों की बात है कौन झूठा कौन सच्चा
सबके अपने राग स्वर हैं कौन मंदा कौन अच्छा...
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कुछ तस्वीरें ...
सिगरेट के धुंए से बनती तस्वीर
शक्ल मिलते ही
फूंक मार के तहस नहस
हालांकि आ चुकी होती हो तब तब
मेरे ज़ेहन में तुम
दागे हुए प्रश्नों का अंजाना डर
ताकत का गुमान की मैं भी मिटा सकता हूँ
या "सेडस्टिक प्लेज़र"...
शक्ल मिलते ही
फूंक मार के तहस नहस
हालांकि आ चुकी होती हो तब तब
मेरे ज़ेहन में तुम
दागे हुए प्रश्नों का अंजाना डर
ताकत का गुमान की मैं भी मिटा सकता हूँ
या "सेडस्टिक प्लेज़र"...
स्वप्न मेरे ... पर Digamber Naswa
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गुफ्तगू के मार्च-2015 अंक में
3.ख़ास ग़ज़लें
(फि़राक़ गोरखपुरी, दुष्यंत कुमार,
शकेब जलाली, मेराज फै़ज़ाबादी)...
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