आदरणीय शास्त्री जी की पूज्य माता जी के निधन के कारण कल चर्चा नहीं हो पायी थी । लगा कुछ छूट गया । बहुत मुश्किल है निरंतरता को बनाये रखना । सच में एक लम्बे समय से किसी चीज को जिंदा रखना कितना मुश्किल होता है ऐसे ही समय में महसूस होता है । इस के लिये आदरणीय शास्त्री जी साधुवाद के पात्र हैं । दिलबाग जी का आभार उन्होने फिर कमान सँभाल कर आज चर्चा को आगे बढ़ाया । 'उलूक' आभारी है सूत्र 'दिमागों की बचत' को स्थान देने के लिये ।
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आदरणीय शास्त्री जी की पूज्य माता जी के निधन के कारण कल चर्चा नहीं हो पायी थी । लगा कुछ छूट गया । बहुत मुश्किल है निरंतरता को बनाये रखना । सच में एक लम्बे समय से किसी चीज को जिंदा रखना कितना मुश्किल होता है ऐसे ही समय में महसूस होता है । इस के लिये आदरणीय शास्त्री जी साधुवाद के पात्र हैं । दिलबाग जी का आभार उन्होने फिर कमान सँभाल कर आज चर्चा को आगे बढ़ाया । 'उलूक' आभारी है सूत्र 'दिमागों की बचत' को स्थान देने के लिये ।
जवाब देंहटाएंआज की चर्चा की लिंक्स बहुत अच्छी लगीं |
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स-सह चर्चा प्रस्तुति...आभार!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया लिंक्स...चर्चा मंच में मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबहुत रोचक चर्चा...
जवाब देंहटाएंहमारी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक्स । स्थान देने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंबढ़िया लिंक्स ,रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबढियाँ चर्चा
जवाब देंहटाएंआभार!
जवाब देंहटाएंचर्चा सार्थकता की पहचान बन पड़ी है.... बेहतरीन रचनायें, आभार!
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