मित्रों।
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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नदी
पर्वतों की डगर नापती रही नदी
सारे अभिशाप सहती रही नदी
कल कल का राग
लहरों का स्वर
गीत मछुआरों के
गाती रही नदी...
सारे अभिशाप सहती रही नदी
कल कल का राग
लहरों का स्वर
गीत मछुआरों के
गाती रही नदी...
बिन मांगे मोती मिले
मांगे मिले न भीख
क्यों बैठे तुम निठठ्ले
नहीं है कोई काम धाम
कर्म की महिमा को समझो
कर्म सुख की खान
मूढ़ बैठा चौखट प्रभु के
मांगे है दिन रात...
नहीं है कोई काम धाम
कर्म की महिमा को समझो
कर्म सुख की खान
मूढ़ बैठा चौखट प्रभु के
मांगे है दिन रात...
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मध्यप्रदेश के बाल विवाह विरोधी
लाडो अभियान को
पी एम के हाथों मिला सम्मान
मिसफिट Misfit पर Girish Billore
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दो पलों की रुक्सती क्यूँ ज़ार-ज़ार कर चली
... दो पलों की रुक्सती क्यूं ज़ार-ज़ार कर चली,
दिल से मेरे दिल्लगी क्यूँ बार-बार कर चली ।
ये ज़ुल्फ़ फिर अदा से अपनी शानों पर बिखेर कर,
चुरा के नज़रें मुझको शर्म सार यार कर चली...
Harash Mahajan
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"आदमी को हवस ही खाने लगी"
जिन्दगी और मौत पर भी, हवस है छाने लगी।
आदमी को, आदमी की हवस ही खाने लगी...
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जब से गज़लों ने कहा है ‘आइना’
गर्व से तनकर खड़ा है आइना
जाइए इसकी नज़ाकत पर न आप
पत्थरों से भी लड़ा है आइना...
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दोहों का दोहन :)
ऐसी वाणी बोलिए, सबका आपा खोये !
राहुल भांजे ऊंट-पटांग, बाकी जनता सोये!!
पंछी करे न चाकरी, अजगर करे न काम !
राहुल बाबा छुट्टी गए करने को आराम...
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ग़ज़ल
( जिंदगी जिंदगी)
तुझे पा लिया है जग पा लिया है
अब दिल में समाने लगी जिंदगी है
कभी गर्दिशों की कहानी लगी थी
मगर आज भाने लगी जिंदगी है...
अब दिल में समाने लगी जिंदगी है
कभी गर्दिशों की कहानी लगी थी
मगर आज भाने लगी जिंदगी है...
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इस तरह से ख़त्म होता हूँ मै
मै आहत हूँ कि अमेजान नदी के एक किनारे, टेम्स नदी के दूसरे किनारे और गंगा से वोल्गा तक मनुष्यता नष्ट हो रही है नष्ट हो चुकी है सिन्धु घाटी की सभ्यता बेबीलोन की सभ्यता और ख़त्म हो गए बिम्ब भाषा नष्ट हो रही है. आकाशगंगाओं के बीच नष्ट हो गए ग्रह, खतरा सूरज और चाँद पर भी बढ़ता जा रहा है,,.
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दिनकर की यादों को
बिहार सरकार ने जमींदोज किया।
(पुण्य तिथि पर राष्ट्रकवि का नमन।)
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दोहे
"जितना चाहूँ भूलना उतनी आती याद"
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कदम-कदम पर घेरते, मुझको झंझावात।
समझ अकेला कर रहे, घात और प्रतिघात।।
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पलभर में ही हो गया, जीवन का निर्वाण।
माँ ने मेरी गोद मॆं, छोड़े अपने प्राण...
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