मित्रों।
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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नवरात्र के सातवें दिन
आदिशक्ति मां दुर्गा के
सातवें स्वरूप
मां कालरात्रि की उपासना
Madan Mohan Saxena
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पुरस्कार प्रकरण:
खोखले सवाल पोपले जवाब
पुरस्कार क्यों लिए-दिए जाते हैं,
इसपर किसीने भी सवाल नहीं उठाया,
कोई उठाएगा इसकी उम्मीद भी
न के बराबर ही है...
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प्रधानमंत्री हैं या नाटककार
हमारे देश के पहले प्रधानमंत्री स्वप्नदर्शी जवाहर लाल नेहरु थे. नेहरु की कद काठी का राजनेता भारत में होना मुश्किल है. नेहरु बच्चों से लेकर बड़ों तक में लोकप्रिय थे. नेहरु के समय में मुस्लिम लीग भी थी, हिन्दू महासभा भी थी, अम्बेडकर वादी भी थे, कम्युनिस्ट भी थे, समाजवादी भी थे. सभी अपनी-अपनी बात जनता के अन्दर संसद के अन्दर रखने के लिए स्वतन्त्र थे. भारतीय संविधान के अनुरूप सभी अपनी-अपनी बातें, अपनी-अपनी नीतियाँ जनता के सामने रखते थे और जनता जिसको चुनती थी वह सरकार बनाता था बाकी दल पांच साल तक फिर अपनी नीतियों को जनता को समझाने के लिए आन्दोलन, प्रदर्शन किया करते थे...
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एक अहसास चीख कर चुप होता है
एक उपहास दिल के दालानों में पसर कर बैठा मैं जानता हूँ जिन्दगी की इस धूप में पेड़ की परछाईं सी जो छाया है वह तुम्हारी हमशक्ल सी लगती है मुझे शायद तुम्हीं हो ओस से गिरते हमारे अहसास दिन में सूख जाते हैं चांदनी क्यों चीखती थी रात को...
Shabd Setu पर
RAJIV CHATURVEDI
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औकात है तो
हमारा " प्यार " वापस दो !
देश के जाने माने शायर मुनव्वर राना का असली चेहरा आज सामने आया। इस उम्र में इतनी घटिया एक्टिंग एक राष्ट्रीय चैनल पर करते हुए उन्हें देखा तो एक बार खुद पर भरोसा नहीं हुआ। लेकिन चैनल ने भी अपनी टीआरपी को और मजबूत करने का ठोस प्लान बना रखा था, लिहाजा मुनव्वर राना का वो घटिया कृत्य बार बार दिखाता रहा। राना का फूहड़ ड्रामा देखकर एक बार तो ये भी भ्रम हुआ कि मैं टीवी का टाँक शो देख रहा हूं या फिर कलर्स चैनल का रियलिटी शो बिग बाँस देख रहा हूं। वैसे नफरत की राजनीति करने वाले राना अगर बिग बाँस के घर के लिए परफेक्ट हैं ! आइये अब पूरा मसला बता दे...
आधा सच...पर महेन्द्र श्रीवास्तव
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मेरे घर में टमटम आया
त्योहारों का मौसम आया
ऐसा लगता मातम आया
खूब किया मिहनत, मजदूरी
लेकिन घर पैसा कम आया...
मनोरमा पर श्यामल सुमन
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मुखिया बोले झुनिया भै हलकान कहाँ
झूठै शोर मचायौ है शैतान कहाँ
मुखिया बोले झुनिया भै हलकान कहाँ...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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समुन्द्र
जब दूर दूर समुन्द्र पर नज़र पड़ती है
तो प्रतीत होता है
समुन्द्र क्षितिज से मिलने को बेताब है
पर...
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ग़ज़ल
"घोंसला हुआ सुनसान आज तो"
खुद को खुदा समझ रहा, इंसान आज तो
मुट्ठी में है सिमट गया जहान आज तो
कैसे सुधार हो भला, अपने समाज का
कौड़ी के मोल बिक रहा, ईमान आज तो..
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