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गुरुवार, अक्टूबर 22, 2015

"हे कलम ,पराजित मत होना" (चर्चा अंक-2137)

मित्रों।
असत्य पर सत्य की विजय के प्रतीक
विजयादशमी की आप सबको बहुत-बहुत शुभकामनाएँ।
अब देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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जश्न अभी बाकी है 

न मेरा दर हवाएं खटखटाती 
न मैं हवाओं के घर जाती... 
vandana gupta 
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विजय पर्व पर कीजिए, 

पापों का संहार 

कामक्रोधमदमोहछलअन्यायअहंकार।
रावण की सब वृत्तियाँमन के विषम विकार।।
विजय पर्व पर कीजिएपापों का संहार।
रावण भीतर है छुपाकरिए उस पर वार।।... 
शीराज़ा  पर हिमकर श्याम 
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तुममे नया ढूंढ ही लेती हूँ... 

इक कुम्हार की तरह, 
हर रोज गढ़ती हूँ.. 
तुम्हारे ख्यालो के शब्दों को... 
और इक नयी आकृति देती हूँ... 
भले इक वक़्त गुजर गया हो, 
हमारे रिश्ते को... 
मैं कुछ ना कुछ, तुममे नया ढूंढ ही लेती हूँ...
'आहुति' पर Sushma Verma 
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प्रकृति के बीच 

Real Togetherness कैसे ढ़ूँढ़ें 

हम आधुनिक युग में इतने रम गये हैं कि आपस के रिश्तों में इतनी दूरियाँ हो गई हैं जो हमें पता ही नहीं चलती हैं, Real Togetherness हम भूल चुके हैं... 
कल्पतरु पर Vivek 
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आओ लौट चलें 

कई न्यूज़ चैनल बदल के देख लिए, देश की हवा कुछ-कुछ बदली-बदली सी लगती है। ऐसा नहीं है इस तरह के हादसे पहले नहीं हुए, आज भी याद है १९८४ की बर्बरता या गोधरा की मार्मिक कहानियाँ। मगर इस तरह आये दिन धार्मिक कट्टरता के किस्से पहले कभी नहीं सुने। यहाँ तक के भारत के राष्ट्रपति महोदय ने भी अपनी चिँता व्यक्त करी है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी सवाल उठाये जा रहें हैं। बड़ा अजीब लगता है जब भारत के बारे में ऐसी बातें कही जाती हैं... 
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आगे न जाने क्या होगा 

प्राकृतिक हादसे के लिए चित्र परिणाम
हादसों पर हादसे 
हद से गुजरे हादसे 
दहला जाते दिल 
बेरहमीं की मिसाल हादसे |
प्रकृति की या मनुष्य की 
या मिली जुली
 साजिश दौनों की |
मशीनीकरण के युग में 
संवेदना विहीन इंसान 
भौंचक्का हो देखता 
हादसों का मंजर... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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मुद्दा: गुजरात में 

दाल काली लग रही है ....... 

देश ने जाट आन्दोलन देखा, 
पिछड़ा वर्ग में शामिल होने हेतु, 
सड़के जाम हुयी, 
रेल की पटरियां उखाड़ी गयी। 
बसे तोड़ी गयी और जाहिर है कानून भी... 
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आईना धुंधला गया 

आईने में अपनी सूरत देख सेठ धनीराम की आँखों में अजीब सी चमक आ जाती ,पैसे का गरूर उनके चेहरे से साफ़ झलकता था । जब वह अपनी लम्बी सी गाडी में बैठते तो घमंड से उनकी गर्दन अकड़ जाती , आईना भी धुंधला कर उन्हें वही दिखाता जो वह देखना चाहते थे ,लेकिन... 
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi 
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"पाँच मुक्तक" 

 

जानते हैं सच, तभी तो मौन हैं वो,
और ज्यादा क्या कहें हम, कौन हैं वो।
जो हमारे दिल में रहते थे हमेशा-
हरकतों से हो गए अब गौण हैं वो... 

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