फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, अक्तूबर 10, 2015

"चिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज" (चर्चा अंक-2125)

मित्रों।
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
--

"चिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज" 

निर्दोष से प्रसून भी डरे हुए हैं आज।
चिड़ियों की कारागार में पड़े हुए हैं बाज।
 

अश्लीलता के गान नौजवान गा रहा,
चोली में छिपे अंग की गाथा सुना रहा,
भौंडे सुरों के शोर में, सब दब गये हैं साज।
चिड़ियों 
 
की 
 
कारागार में पड़े हुए हैं बाज... 
--

पाठशाला नहीं होतीं 

पाठशाला नहीं होतीं जो जीवनमूल्य सिखलायें। 
स्वतः माँ-बाप से बच्चों के जीवन में उतर आयें। 
विरासत में मिले हमको मगर हमने ही ठुकराए। 
दोष अपना है गर ये कारवां आगे न बढ़ता है... 
हृदय पुष्प पर राकेश कौशिक 
--

हाथ तो जगन्नाथ बना लिए, 

पर बाकी …… 

जिन्न को वापस बोतल में भेजना 
शायद उतना मुश्किल नहीं होता होगा, 
जितना बिखरे सामान को समेटना... 
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा 
--

ख़्वाब कितने बड़े हो गये 

हर्फ़ जो ज़ह्र से हो गये सब मिरे वास्ते हो गये 
देखते देखते या ख़ुदा! ख़्वाब कितने बड़े हो गये 
घर मिरा जल गया भी तो क्या आसमाँ के तले हो गये 
फिर यक़ीनन बहार आएगी ज़ख़्म मेरे हरे हो गये... 
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
--

क्या खोया क्या पाया बैठा सोच रहा मन 

अनगिन तारो में इक तारा ढूँढ रहा है, 
क्या खोया क्या पाया बैठा सोच रहा मन। 
छोटा सा सुख मुट्ठी से गिर फिसल गया, 
खुशियों का दल हाथ हिलाता निकल गया 
भागे गिरते-पड़ते पीछे, हाथ मगर आया 
जो सपना वो फिर से बदल गया, 
सबसे अच्छा चुनने में उलझा ये जीवन... 
मानसी पर  मानोशी चटर्जी 
--
--

रोटी तो चाहिए ..... 

जी तो लूँगा बगैर दाल सब्जी पर रोटी तो चाहिए... 
उन्नयन  पर udaya veer singh 
--
--
--

मेरी परलोक-चर्चाएँ... (९) 

[पिताजी की वर्जना और चालीस दूकान की आत्मा ]... 
मुक्ताकाश.... पर आनन्द वर्धन ओझा 
--
--
--

सागर किनारे... !! 

अनुशील पर अनुपमा पाठक 
--

सागर - संगम -11. 

11. (दृष्य - वही .सूत्रधार नटी और लोकमन .) सूत्र -आपने ऐसी धारा बहाई कवि ,कि हम तो उसी में बहते चले गये ,भूल गये कि हम उस समय से कितना आगे बढ आये हैं . नटी - कितनी -कितनी भिन्नतायें ,लेकिन कैसा सामंजस्य !पर मित्र ,इसके बाद यह कहानी क्या रुक गई ? ... 
लालित्यम् पर प्रतिभा सक्सेना 
--

आशिकाना मिजाज -बचपन से 

बचपन से पैदा होते ही 
पकड ली थी नर्स की ऊँगली , 
और फिर बाहों में उसने हमे झुलाया था 
कोई आ नर्स बदलती थी हमारी नैप्पी , 
गोद में ले के ,बड़े प्यार से खिलाया था 
हम मचलते थे... 
--
--
--
--
--

संघ जिम्मेदार है 

कमाल है इस देश में हर बात के लिए 
संघ जिम्मेदार है 
कमाल है कि जिनकी सरकार है 
वो भी कहते हैं कि संघ जिम्मेदार है 
कमाल है कि जिनकी नहीं सरकार है 
वो भी कहते हैं कि संघ जिम्मेदार है 
कमाल है... 
बतंगड़  पर HARSHVARDHAN TRIPATHI  
--
होगा अफ़सोस अगर रस्म ये अदा की जाए 
दोस्त ज़ख़्मी हो मगर उसको सज़ा दी जाए | 
हमसे पूछोगे ग़ज़ल क्या और क्या है असर, 
इक नदी दर्द की, आहों से बस, पी ली जाए |... 
MaiN Our Meri Tanhayii
--
व्यंग्य 
विगत दिवस सुनने को मिला कि किसी पार्टी का नकली नेता पकड़ा गया | ताज्जुब हुआ, अभी तक तो यह सुनता रहा हूँ कि नकली अफसर पकडाते रहे हैं... 
--
--

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।