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शुक्रवार, अक्तूबर 23, 2015

"शुभ संकल्प" (चर्चा अंक-2138)

आज की चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है।
आशा है आप सभी दुर्गा पूजा अच्छी तरह से मनाया होगा। बुराई पर अच्छाई की विजय का संकल्प भी लिए होंगे। जीवन में शुभ संकल्प होना हमारे कल्याण का हेतू है। शुभ संकल्प का आशय अच्छे विचार से है। कुटिलता कदापि ग्राह्य नहीं है, अपितु सरलता और सहजता नैसर्गिक गुण हैं। आडंबरों और उपाधियों की भरमार न केवल दुखदायी होती है, अपितु शांति को भंग भी करती है।हम हमेशा इस बात के लिए प्रयत्न-शील रहेंगे की हम और हमारा भारत प्रगति के मार्ग पर अग्रसर हो, परम पिता परमात्मा हमें शक्ति प्रधान करें तांकि हमारे शुभ संकल्प और स्वपन साकार हो। 
अब आपके कुछ चुने हुए ब्लॉग लिंक को देखते है।
(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)
विजयादशमी विजय का, पावन है त्यौहार।
जीत हो गयी सत्य की, झूठ गया है हार।।
--
रावण के जब बढ़ गये, भू पर अत्याचार।
लंका में जाकर उसे, दिया राम ने मार।।
--
विजयादशमी ने दिया, हम सबको उपहार।
अच्छाई के सामने, गयी बुराई हार।।
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आशा सक्सेना 
RAAVAN के लिए चित्र परिणाम
रावण प्रतीक
जन मन के कलुष का
हर वर्ष होता घायल
राम जी के वाण से |
कुरीतियों भस्म होतीं
दसशीश को धराशाही कर
तब भी कम न होता कलुष
आज के समाज का |
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शशि पुरवार
 
इस साल दशहरा मैदान पर रावण जलाने की तैयारियां बड़े जोर शोर से की जा रहीं थी. पहले तो कई दिनों तक रामलीला होती थी फिर रावण दहन किया जाता था। 
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रश्मि प्रभा
कौन है रावण ?
कैसा है देखने में ?
दस सिर तो कहीं नज़र नहीं आते
ना ही इतना संयम
कि वाटिका में सीता हो
और वह उसके पास न जाये !
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कुलदीप ठाकुर 
[*]
श्री राम
सामान्य पुरूष नहीं
मर्यादा पुरुषोत्तम
आदर्श राजा थे...
ईश्वर थे
भले ही राम
पर सीता के बिना
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राजीव कुमार झा 
मीठी धूप खिली
महकी फिर शाम
पागल हवा देती
तुम्हारा पैगाम !
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कंचनलता चतुर्वेदी
मेरा फोटो
ज़िंदगी को पास से देखा |
हँसते देखा,
रोते देखा,
खोते देखा,
सोते देखा,...
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भारती दास 
माता-पिता की आकांक्षा ने
दशा ख़राब बना दी
बचपन की मासूम हंसी
अवसाद तले ही दबा दी
सर्वश्रेष्ठ बनने की धुन में
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लोकेन्द्र सिंह 
शिवराज सिंह चौहान ने 29 नवम्बर, 2005 को पहली बार मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी। सप्ताहभर बाद उनके मुख्यमंत्री कार्यकाल के 10 वर्ष पूर्ण हो रहे हैं। शिवराज सिंह चौहान की छवि सहज, सुलभ और सरल व्यक्तित्व के मुख्यमंत्री की है।
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कुँवर कुसुमेश
विजयादशमी की हार्दिक बधाई के साथ हाज़िर है एक दोहा :- 
मायावी रावण कहाँ,जलकर हुआ है राख। 
ज़िन्दा है इन्सान में,अब भी वो गुस्ताख़।
अनुपमा पाठक 
ॐ जयंती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी !
दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोस्तुते!!
जयंती से ढंका कलश आज अपनी जगह से हट जाता था माँ की विदाई पर और जयंती आशीर्वाद स्वरुप रह जाती थी... याद आता है, क़िताबों में रखते थे आशीर्वाद को... !
उदय वीर सिंह 
बुत की प्राण प्रतिष्ठा है
सड़कों पर जीवन रोता है -
अर्पित करते अर्थ द्रव्य
कहीं जीवन भूखा सोता है-
वीरेन्द्र कुमार शर्मा 
साधू चरित शुभ फूल कपासू ,
निरस विशद ,गुणमय फल जासु।
नीरस ,फीका सा होता है कपास का फूल वहां भ्रमर , तितलियाँ ,मधुमक्खियाँ नहीं पहुँचती हैं न उसमें कोई सिल्की छूअन है न गंध न मकरंद। कभी आपने कपास का फूल भगवान को नहीं चढ़ाया होगा।
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नीरज कुमार नीर 
जो कुछ भी है मेरा वह
सब तुम्ही को है समर्पण
स्वीकार करो हे जननी 
मेरा भक्ति भाव अर्पण 
सुशील कुमार जोशी 
हाँ भाई हाँ 
होने होने की 
बात होती है 
कभी पहले सुबह 
और उसके बाद
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अरुण राय 
मूर्तियां सजी हैं 
सजी हैं स्त्रियां
लड़कियां भी सजी हैं 
और सजे हैं बच्चे भी
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बलबीर राणा 'अडिग'
हर वर्ष सन्देश देता दशहरा 
छंटेगा तम का अंधड़ घनेरा
सत्य की विजय अधम पर होय
सुपथ पर उगे नयां पावन सबेरा।
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रमाजय शर्मा 
कल ईमान बिका था रावण का
आज रावण भी है बिक रहा 
हर गली हर चौराहे पर 
लगी है भीड़ जलानेवालों की
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ततैया...
फ़िरदौस खान 

उन्सियत किसी से भी हो सकती है, एक ततैये से भी... हम परिन्दों के लिए मिट्टी के कूंडे में पानी रखते हैं... सुबह कूंडे में पाने डालने के लिए आंगन में जाते, तो देखते कि एक ततैया कूंडे के किनारे पर बैठा पानी पी रहा है... हम उसे देखकर पीछे हट जाते कि कहीं वह हमें देखकर उड़ न जाए, कहीं प्यासा न रह जाए... आए-दिन ऐसा होता है...
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धन्यबाद, 

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