आज की चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है।
दरअसल बात यह है कि देश का कोई भी हिस्सा हो, कोई भी प्रदेश हो, किसानों के साथ आजादी के बाद से ही दोयम दर्जें का व्यवहार किया जाता रहा है। आजादी के समय जिस कृषि क्षेत्र पर कुल बजट का 12.5 प्रतिशत खर्च किया जाता रहा है, आज हालत यह है कि केन्द्र और प्रदेश सरकारें मात्र 3.7 प्रतिशत खर्च कर रही है। इस बात से कोई इन्कार नहीं कर सकता है कि लाख संकटों के बावजूद भारत में सबसे बड़ा नियोक्ता यही कृषि क्षेत्र है। आबादी खेती किसानी और इसके सहायक धंधों पर निर्भर है। इसके बावजूद इस क्षेत्र को सरकारी स्तर पर जो उपेक्षा झेलनी पड़ रही है, वह अफसोसजनक ही है।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
कितने भी सन्ताप हो, होती नहीं उदास।
नहीं हारना जानती, धरती की ये घास।।
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जीवन के संग्राम में, भरती नवउल्लास।
गणनायक के साथ में, पूजी जाती घास।।
कालीपद 'प्रसाद'
ईश्वर के हर नियम-कानून है अलिखित
तोड़ने पर मिलती दण्ड, है यह निश्चित |
लाठी है अदृश्य उनकी, दिखाई नहीं देती
मारते हैं मुजरिम को, आवाज़ नहीं होती |
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सरिता भाटिया
मेरा श्राद्ध ... आजकल श्राद्ध चल रहे हैं ... श्राद्ध यानि श्रद्धा से पितरों को प्रसन्न करने का पर्व ... ऐसा माना जाता है की इन दिनों आपके पितर यानि आपके पूर्वज जो ……
निधि टंडन
बहुत घने साये हैं
उदासी के
दिन रात सब हैं
बासी से
क़दम फिसलते जा रहे हैं
अवसाद के
इस अंधे कुएं की ओर
रोकना चाह कर भी
बरसों की राहें चीरकर
तेरा स्वर आया है
सस्सी के पैरों को जैसे
किसी ने मरहम लगाया है ...
मेरे मजहब ! मेरे ईमान !
पल्लवी सक्सेना
"रिश्तों की डोरी में एक धागा मेरा एक तुम्हारा "
यह पंक्ति पढ़कर क्या आपको कुछ याद आया। संभवतः नहीं! क्यूंकि टीवी पर प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों के बीच घड़ी घड़ी होते मध्यांतर पर ध्यान ही कौन देता है।
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प्रमेन्द्र प्रताप सिंह
दस दिन का दशहरा, नौ दिन का नवरात्र और साथ ही दुर्गा-पूजा उत्सव। ये सभी भारतीय परम्परा का बहुत बड़ा हिस्सा हैं। हर साल सितंबर-अक्टूबर में यह पर्व दस दिन तक मनाया जाता है जो पूरी तरह से देवी मां को समर्पित है।
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वन्दना गुप्ता
केन्द्रीय समाज कल्याण बोर्ड द्वारा प्रकाशित "समाज कल्याण" पत्रिका (महिला एवं बाल विकास मंत्रालय,भारत सरकार की मासिक पत्रिका) के अक्टूबर अंक2015 में प्रकाशित मेरा लिखा आलेख : बुजुर्ग : बोझ या धरोहर
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ऋता शेखर मधु
मतला--
दो दिनों की जिंदगी है आदमी के सामने
जान है क्या चीज बोलो दोस्ती के सामने
हुस्ने मतला--
आँधियाँ भी जा रुकी हैं हिमगिरी के सामने
चाल भी बेजार बनती सादगी के सामने
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आशा सक्सेना
टूटे वीणा के तार
कभी ना जुड़ पाए
किये प्रयास हजार
पर न सुधर पाए
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शालिनी कौशिक
कई बार पहले भी देख चुकी 'चक दे इंडिया' को फिर एक बार देख रही थी .बार बार कटु शब्दों से भारतीय नारी का अपमान किया गया किन्तु एक वाकया जिसने वाकई सोचने को मजबूर कर दिया और भारतीय नारी की वास्तविक स्थिति को सामने लाकर खड़ा कर दिया वह वाक्य कहा ....
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सुशील कुमार जोशी
डूबते हुऐ जहाज
में बहुत तेजी
से हो रहे हैं
एक नहीं एक
साथ हो रहे हैं
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आनन्द विश्वास
दूध दही घी माखन खाओ,
हृष्ट-पुष्ट बच्चो बन जाओ।
सुनो दूध की लीला न्यारी,
सभी तत्व इसमें हैं भारी।
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सुमित्रा सिंह चतुर्वेदी
देश का पहला बंगाली साहित्य महोत्सव रविवार को कोलकाता में आयोजित होगा. इस आयोजन में पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के साहित्यकार हिस्सा लेंगे
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अनुपमा पाठक
बहता पानी...
अपने साथ सारे दोष दंश बहा ले जाता है...
जब उमड़ घुमड़ रहीं हों
मन के प्राचीरों में दुविधाएं...
लहरों का आना जाना उद्वेलित कर रहा हो
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मन के - मनके (डा० उर्मिला सिंह)
१.जाना कहां है,किसी को नहीं पता
आज यहां हैं,बस इतना पता है
जिंदगी इस पल के अलावा,फ़साना है
जो गाया जायेगा, जाने के बाद.
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सरिता भाटिया
सुख में देते साथ सब ,दुख में तोड़ें प्रीत |
दुख में देते साथ जो ,वो ही सच्चे मीत ||
जीवन में रहता नहीं ,समय सदा अनुकूल |
धीरज धरना तुम अगर, समय मिले प्रतिकूल ||
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अर्चना चावजी
मायरा पानी से नहीं डरती......उम्र है अभी एक साल पाँच महीना
मुझे तैरना नहीं आता था .... जब हॉस्टल मे वार्डन का जॉब मिला तो हॉस्टल के बच्चे छुट्टी के दिन स्विमिंग कराते थे ,और मेरी ज़िम्मेदारी होती थी उनके साथ खड़ी रहूँ..... किसी भी दुर्घटना की संभावना से ही डरी रहती थी .... आखिर तय किया की पहले खुद सीख लूँ ...और वही किया भी मेरी उम्र होगी कोई 37 साल ....
लेकिन अब मायरा ...देखिए खुद ही
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प्रीति सुराना
हौसलों के चट्टान को तोड़ देते हैं नाउम्मीदी के पत्थर
उम्मीदों के दीये जलने के लिए लड़ जाते हैं तूफान से
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सतपाल ख्याल
काफ़िया क्या है?
काफ़िया या तुक वो शब्द है जो मतले मे दो बार रदीफ़ से पहले और हर शे’र के दूसरे मिसरे के अंत मे रदीफ़ से पहले आता है.अब ये काफ़िया या तुकबंदी भी आसान काम नही है इसके लिए भी कायदे कानून हैं जिनका ज़िक्र ज़रूरी है.अब दो शब्द आपस मे तभी हम-काफ़िया होंगे अगर उनमे कोई साम्यता होगी.और इसी साम्यता की वज़ह से वो काफ़िया बनेंगे.इसी साम्यता के आधार पर काफ़िये दो तरह के हो सकते हैं :
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धन्यवाद फिर मिलेंगे अगले सप्ताह।
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