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रविवार, अक्तूबर 11, 2015

"पतंजलि तो खुश हो रहे होंगे" (चर्चा अंक-2126)

मित्रों।
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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पतंजलि तो खुश हो रहे होंगे 

ऋषि पतंजलि तो ख़ुश हो रहे होंगे कि उनके जाने के सैंकड़ों सालों बाद भी कोई उनका नाम जीवित रख रहा है। नहीं तो आज कितने लोगों को "चरक", "वाग्भट" जैसे महान विद्वानों के नाम याद हैं ? स्वर्ग इत्यादि जैसी यदि कोई जगह होगी तो ये लोग तो पतंजलि जी को बधाइयां ही देते होंगे कि उनके ज्ञान का उपयोग आज भी लोगों की भलाई के लिए हो रहा है... 
कुछ अलग  सा परगगन शर्मा 
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"चाँदनी का हमें “रूप” छलता रहा" 


मखमली ख्वाब आँखों में पलता रहा।
मन मृदुल मोम सा बन पिघलता रहा।।

अश्क मोती बने मुस्कुराने लगे,
अनमने से सुमन खिलखिलाने लगे,
सुख सँवरता रहादर्द जलता रहा।
मन मृदुल मोम सा बन पिघलता रहा... 
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मर्सिया गाने लगे हैं 

मरघट से मुरदे चिल्लाने लगे हैं 
लौट कर बस्तियों में आने लगे हैं... 
यूं ही कभी पर राजीव कुमार झा 
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ग़ज़ल -  

आदत बिगड़ गयी ! 

आदत बना चुके थे कि आदत बिगड़ गयी 
वो इस तरह गए कि तबीयत बिगड़ गयी... 
तिश्नगी पर आशीष नैथाऩी 
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एक सवाल 

ह रह कर एक घटना याद आती है और फिर कुछ अनसुलझे सवाल। आज मैं उस 'वाक़या ' को लिखना चाहती हूँ। मई २००८ की बात है । फिरोज़ाबाद से एक शादी का निमंत्रण कार्ड आया था। जाना जरूरी था । इसलिए मैं, दिनकर और हमारा ड्राइवर शाम होते ही आगरा से फिरोज़ाबाद के लिए निकल पड़े... 
Sunehra Ehsaas पर Nivedita Dinkar 
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हक़ीकत नहीं ये, ना ही फसाना है -  

राजीव उपाध्याय 

हक़ीकत नहीं ये, ना ही फसाना है  
बस ख्वाबों में मेरा, आना-जाना है... 
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क्रांतिकारी लेखक थे मुंशी प्रेमचंद : 
फ़िरदौस ख़ान 
मुंशी प्रेमचंद क्रांतिकारी रचनाकर थे. वह समाज सुधारक और विचारक भी थे. उनके लेखन का मक़सद सिर्फ़ मनोरंजन कराना ही नहीं, बल्कि सामाजिक कुरीतियों की ओर ध्यान आकर्षित कराना भी था. वह सामाजिक क्रांति में विश्वास करते थे. वह कहते थे कि समाज में ज़िंदा रहने में जितनी मुश्किलों का सामना लोग करेंगे, उतना ही वहां गुनाह होगा. अगर समाज में लोग खु़शहाल होंगे, तो समाज में अच्छाई ज़्यादा होगी और समाज में गुनाह नहीं के बराबर होगा. मुंशी प्रेमचंद ने शोषित वर्ग के लोगों को उठाने की हर मुमकिन कोशिश की. उन्होंने आवाज़ लगाई- ऐ लोगों, जब तुम्हें संसार में रहना है, तो ज़िंदा लोगों की तरह रहो, मुर्दों की तरह रहने से क्या फ़ायदा.... 
मिसफिट:सीधीबात 
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कुछ कर !  
बाजुओं में अपनी, तू बल जगा ,
किसान का वंशज है, हल लगा। 
फटकने न दे तन्द्रा पास अपने,
आलस्य निज तन से पल भगा। 
किसान का वंशज है, हल लगा।।... 
अंधड़ ! 
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...तो पा जाते "विवेक" !! 

इस छोटी सी धरा की
बड़ी से बड़ी समस्या
हल हो जाती...


काश, जो सुसुप्त विचारों में
चिरप्रतीक्षित
हलचल हो पाती... 

अनुशील 
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साहित्यकारों की चयनित नैतिकता 

 अं ग्रेजी लेखिका नयनतारा सहगल और हिन्दी कवि अशोक वाजपेयी साहित्य अकादमी की ओर से दिया गया सम्मान लौटाकर क्या साबित करना चाहते हैं? यह प्रश्न नागफनी की तरह है। सबको चुभ रहा है। वर्तमान केन्द्र सरकार के समर्थक ही नहीं, बल्कि दूसरे लोग भी सहगल और वाजपेयी की नैतिकता और विरोध करने के तरीके पर सवाल उठा रहे हैं। साहित्य अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी ने साहित्यकारों से आग्रह किया है कि सम्मान/पुरस्कार लौटाना, विरोध प्रदर्शन का सही तरीका नहीं है। भारत में अभिव्यक्ति की आजादी है। लिखकर-बोलकर सरकार पर दबाव बनाइए, विरोध कीजिए। अगर आपकी कलम की ताकत चुक गई है या फिर एमएम कलबर्गी की हत्या से आपकी कलम डर गई है, तब जरूर आप विरोध के आसान तरीके अपना सकते हो... 
अपना पंचू 
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वह निकट होती 

दो चिडिया के लिए चित्र परिणाम
किये बंद कपाट ह्रदय के
ऊपर से पहरा नयनों का
कोई मार्ग नहीं छोड़ा
उस  तक पहुँचने का... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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भीड़ में मैं 

मैं जब भीड़ में होता हूँ, 
तो मैं नहीं रहता, 
बिल्कुल बदल जाता हूँ. 
अकेले में मैं शांत हूँ, 
पर भीड़ में हिंसक हो जाता हूँ... 
कविताएँ पर Onkar 
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पानी की कहानी बताना सीखें पत्रकार 

एक बार फिर से चौपाली जुटे। इस बार जुटान की जगह रही ग्वालियर। जुटान की जगह भर बदली है। इस बार भी चौपालियों को जुटाने वाले अनिल सौमित्र ही रहे। उन्होंने बीड़ा उठा रखा है। और भोपाल से दिल्ली से ग्वालियर पहुंची चौपाल में इस बार भी दिल्ली की ही तरह चर्चा का मुख्य बिंदु है नदियां... 
बतंगड़  पर HARSHVARDHAN TRIPATHI 
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हम शांत किनारे हैं।  
1-कृष्णा वर्मा 
1
पतझड़ यह समझाए
विधना के हाथों
कोई बच ना पाए।
2
पत्तों का रुदन बढ़ा
अब रुकना कैसा
पतझड़ बेचैन खड़ा।... 
त्रिवेणी
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