मित्रों।
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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चाँद सूरज नहीं थे
तो जगमग था एक तारा...
हे उषा! तुम्हारे आँचल में
हो जड़ित सदा उजियारा...
अनुशील पर अनुपमा पाठक
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सुनो भई ...लौटते हुए लोगों ..
वाह भई क्या समां बंधा है ...
और ये देखिए कि ..क्रिकेट के मैच में
हार के बाद उपजी झल्लाहट
अक्सर फैशन के रूप में
संन्यास लेने की नई प्रथा भी
चारों खाने चित्त ....
धड़ाधड़ ..बल्कि उससे भी तेज़
कहिये कि ...दुरंतो की रफ़्तार से
पुरस्कार लौटाए जा रहे हैं ..
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तुम मिले हम को मिला
दोनों जहाँ का प्यार
ज़िंदगी में आप आये
साथ है स्वीकार
मिल गया हम को सजन
सारा यहाँ संसार ...
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पुष्प और कवि....
मैं पुष्प हूं भावनाओं से युक्त
मुझे माली नहीं कवि प्रिय है...
कवि मुझे कभी नहीं तोड़ता न
वो केवल सौंदर्य ही देखता है...
मन का मंथन पर kuldeep thakur
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कलम मेरी यूँ बंधी है पड़ी
कलम उठा जब लिखने बैठा,
बाॅस का तब आ गया फोन;
बाकि सारे काम हैं पड़े,
तू नहीं तो करेगा कौन ?
भाग-दौड़ फिर शुरु हो गई,
पीछे कोई ज्यों लिए छड़ी;
शब्द अंदर ही घुट से गए,
कलम मेरी यूँ बंधी है पड़ी...
ई. प्रदीप कुमार साहनी
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शक्ति है तो विध्वंस भी
ये ढकोसलों की सांझें
कितनी निर्मोही हैं कि
साझे दुःख सुख पर भी
पहरे बिठा दिए
अब कोई कितना भी
कबीर की साखी सूर के पद
मीरा का गायन नृत्यन करे
बंद दरवाज़े किसी थाप के मोहताज नहीं
मौन शक्ति है तो विध्वंस भी...
vandana gupta
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मुद्दा: आज के पत्रकार,
साहित्यकार, और सरकार
डेंगू दिल्ली में फैला, लोगो का दर्द सबको दिखायी दिया, मीडिया ने खूब हो हल्ला मचाया, CM साहब आकाशवाणी पर बोलते सुनायी दिये, नगर निगम वाले भी सावधानियों की फेहरिस्त जारी करते सुने गये । ये जरूरी भी था की हकीकत जो स्वीकार किया जाय और आगे के लिये सुधार किये जाय। किन्तु दिल्ली में भारत की केवल 3 प्रतिशत आबादी रहती है। बाकि 22 प्रतिशत अन्य शहरों में रहते है। जिनके लिये दिल्ली दूर है !!! 75 % फ़ीसदी गाँव में रहते है। जिनके दिल्ली केवल कहानियों और जुबानियो का हिस्सा है। डेंगू वहाँ भी है , जोरदार है। किन्तु कुल मिलाकर जिन्हे हम झोला छाप कहते है वहीं उनके लिये भगवन है...
Vikram Pratap singh
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