मित्रों।
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए कुछ अद्यतन लिंक।
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दोहे "खिली रूप की धूप"
इस भौतिक संसार में, माता के नवरूप।
रहती बारहमास ही, खिली रूप की धूप।।
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ज्ञानदायिनी शारदे, मन के हरो विकार।
मुझ सेवक पर कीजिए, इतना सा उपकार।।
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मेरे शब्दों को करो, माता जी साकार।
बिना आपके है नहीं, इनका कुछ आधार...
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स्मृतियों के नाम... !!
तारीखें लौटती हैं...
पर वो बीता पल नहीं लौटता... !
लम्हा जो बीत गया वो,
बस स्मृतियों में, बच जाता है...
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बुलंदी पे कहां कोई ठहरता है
बुलंदी पे कहाँ कोई ठहरता है
फ़लक से रोज ये सूरज उतरता है
गरूर उसके डुबो देंगे उसे इक दिन
नशा शोहरत का चढ़ता है उतरता है...
शीराज़ा [Shiraza] पर हिमकर श्याम
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यह ओस की बूंद थी कि तुम्हारा नेह था
तुम्हारी आंखों और होठों का कोलाज
जब तुम्हारे कपोलों पर रच रहा था
तभी ओस की एक बूंद गिरी
और मैं नहा गया तुम्हारे प्यार में
यह ओस की बूंद थी कि तुम्हारा नेह था
जो ओस बन कर टपकी थी
[ 1 , अक्टूबर 2015 ]
सरोकारनामा पर Dayanand Pandey
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