मित्रों।
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देकिए मेरी पसन्द के कुछ अद्यतन लिंक।
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कविता :- तू मुझे सुना, मै तुझे सुनाऊँ
तू मुझे सुना, मैं तुझे सुनाऊँ, अपनी - अपनी कहानी।
अन्धे - बहरों की बस्ती में, झूठी रीत दिवानी।।
मुझको मारे लोग पेट में, तुझको बाहर काटे ।
सेवा भूल स्वार्थी दुनिया, क्यों हमको हैं बाँटे..
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'' ओ मेरे कवि ''
नामक गीत ,
कवि स्व. श्रीकृष्ण शर्मा के गीत - संग्रह -
'' बोल मेरे मौन '' से लिया गया है -
ओ मेरे कवि , चुप मत रहना !!
सब चुप हैं , पर तू सच - सच ही
सारे जग के सम्मुख कहना !
ओ मेरे कवि , चुप मत रहना ...
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कविता
समाज की गहरी मानसिकता को उभारती,
और गहरे से एक दूसरे से गूँथती कविता
जो हृदय पर उकेर देती है
सजीव भावनाओं के चित्र...
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कविताओं का विषय
अब नहीं लिखूंगा
मैं कोई प्रेम कविता,
वक़्त का तक़ाज़ा है
कि अब बदल दें कवि
अपनी कविताओं का विषय...
--मैं कोई प्रेम कविता,
वक़्त का तक़ाज़ा है
कि अब बदल दें कवि
अपनी कविताओं का विषय...
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नीली धूप में ...........
आज हवा नीचे से ऊपर को बह रही आदमी हमे अब कुत्ता पुचकार रहा है घोड़ा अब गाड़ी में बैठा सोच रहा और उसे कोचवान खींच रहा भगवान भक्त को ढूंढता टीवी पर चीख चीख कर पुजारी का मोल पूछता घड़े को जल पी रहा मछलियाँ अब हवा में तैर रही बकरियां अब खुद अपना दूध पी रही हाथ की लकीरों को भाग्य पढ़ रहा है ..
Mera avyakta पर राम किशोर उपाध्याय
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एकात्म बोध
आज ई-लर्निंग के दौर में
कुछ नया सीखने के लिए
हमें सिर्फ पुस्तकों या कक्षाओं पर
निर्भर रहने की आवश्यकता नहीं है|
कठिन से कठिन विषय हो
या कोई नई भाषा हो,
ई-लर्निंग में उसे आसान बना देता है...
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M.T.N.L. की बलिहारी,
तारे दियो दिखाए
पिछले रविवार को श्रीमती जी को नर्सिंग होम में भर्ती करवाना पड़ा था। लगातार दोस्त-मित्र-रिश्तेदारों के फोन आ रहे थे, मोबाइल भी व्यस्त होना ही था, उपर से इस फर्जी की वही टेढ़ी चाल। हद तो तब हो गयी जब डाक्टर से बात करते-करते ही ये सुप्तावस्ता में चला गया। किसी तरह बात संभाली। एक बार तो मन बना ही लिया था कि उपभोक्ता फोरम में चला जाए पर फिर …* दूर के ढोल सुहाने लगते हैं, पता नहीं कितने अनुभवों के बाद किसी ने यह निष्कर्ष निकाला होगा...
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा
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ग़ज़ल "मनुहार की बातें करें"
आओ फिर से हम नये, उपहार की बातें करें
प्यार का मौसम है, आओ प्यार की बातें करें।
नेह की लेकर मथानी, सिन्धु का मन्थन करें,
छोड़ कर छल-छद्म, कुछ उपकार की बातें करें...
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