मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
गीत
"रचना में दुहराता हूँ"
रोज़-रोज़ मैं शब्दों का गठबन्धन करता जाता हूँ।
जो दिनभर में देखा, उसको रचना में दुहराता हूँ।।
नया साल या प्रेमदिवस हो या हो होली-दीवाली,
रक्षाबन्धन जन्मदिवस या हो खेतों की हरियाली,
ग्रीष्म-शीत और वर्षा पर तुकबन्दी कर हर्षाता हूँ।
जो दिनभर में देखा, उसको रचना में दुहराता हूँ।।
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नहीं कह रहा मैं इसे-
नहीं कह रहा मैं इसे, कहता फौजी वीर |
अंदर के खंजर सहूँ , या सरहद के तीर ||
नहीं कह रहा मैं इसे, कह के गए बुजुर्ग |
जायज है सब युद्ध में, रखो सुरक्षित दुर्ग ||
नहीं कह रहा मैं इसे, कहें बड़े विद्वान |
लिए हथेली पर चलो, देश धर्म हित जान...
"लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर
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'' हम जंगल के फूल '' नामक दोहा ( दोहा क्रमांक - 3 ) ,
कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह -
'' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है -
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Few word from the bottom of the heart
कुछ भी कर लो साथी तुमसे दूर नही हो पायेगे
ये भी सच है इस दुनिया में साथ नही रह पायेगे...
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*मुक्त-ग़ज़ल : 180 -
क्यों मैं सोचूँ ?
क्यों मैं सोचूँ दौर मेरा थम गया है ?
खौलता लोहू रगों में जम गया है ॥
खिलखिलाते उठ रहे हैं सब वहाँ से ,
जो भी आया वो यहाँ से नम गया है...
डॉ. हीरालाल प्रजापति का
'' कविता-विश्व ''
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घर था कभी जो
यादें चिपकी हुई
उस जर्जर मकान की दीवारों से
ढह रहा जो धीरे धीरे
घर था कभी जो
खिलखिलाती थी जहाँ पीढ़ी दर पीढ़ी
न जाने कितनी ज़िन्दगियाँ
याद दिलाती होली की...
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कौवे का पीछा छोड़
पहले अपना कान टटोल लें
यह तो हमारे समाज की विशेषता है कि
वह सदा से ही सहिष्णु रहा है, ऐसी उल-जलूल बातों पर लोग ज्यादातर ध्यान ही नहीं देते। पर इस तरह की हरकतें कुछ न कुछ तो अपना असर डालती ही हैं भले ही वह कुछ समय के लिए ही हो * कहा गया है, "नीम-हकीम खतराए जान।" यानी आधी-अधूरी जानकारी सदा से ही खतरनाक रही है...
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा
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लफ्ज़
अधरों को मेरे लफ्ज़ अगर मिल जाते
करने हर खाब्ब को सच पर लगा के वो उड़ जाते
ठहर ना पाती बात इसी तलक क्योंकि,
सितारों की महफ़िल से निकल वो करीब चाँद के चले आते...
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दिल साफ़ करना ...
अदालत सीख ले इंसाफ़ करना
गुनाहे-बेगुनाही माफ़ करना
महारत है इसी में आपकी क्या
किसी के दर्द को अज़्आफ़ करना...
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नया षड़यंत्र रचा रही।
अफज़ल गुरु, मक़बूल भट को शहीद कहना, आजादी हो गयी,
जिन्हे दिया दंड कानून ने उनकी फांसी भी, शहादत हो गयी...
kuldeep thakur
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जब-जब कुचला गया धर्म तब हमने ही फुफकारा हो।|
मारवाड़ के इतिहास में राव मालदेव का राज्यकाल मारवाड़ का "शौर्य युग" कहलाता है। राव मालदेव अपने युग का महान् योद्धा, महान् विजेता और विशाल साम्राज्य का स्वामी था। उसने अपने बाहुबल से एक विशाल साम्राज्य स्थापित किया। मालदेव ने सिवाणा जैतमालोत राठौड़ों से, चौहटन, पारकर और खाबड़ परमारों से, रायपुर और भाद्राजूण सीधलों से, जालौर बिहारी पठानों से, मालानी महेचों से, मेड़ता वीरमदेव से, नागौर, सॉभर, डीडवाना मुसलमानों से, अजमेर साँचोर चौहाणों से छीन कर जोधपुर-मारवाड़ राज्य में मिलाया। इस प्रकार राव मालदेव ने वि.सं. 1600 तक अपने साम्राज्य का अत्यधिक विस्तार कर लिया। उत्तर में बीकानेर व हिसार, पूर्व में बयाना व धौलपुर तक, दक्षिण में चित्तौड़ एवं दक्षिण-पश्चिम में राघनपुर व खाबड़ तक उसकी राज्य सीमा पहुँच गई थी। पश्चिम में भाटियों के प्रदेश (जैसलमेर) को उसकी सीमाएँ छू रही थी। इतना विशाल साम्राज्य न तो राव मालदेव से पूर्व और न ही उसके बाद ही किसी राजपूत शासक ने स्थापित किया....
ज्ञान दर्पण पर Ratan singh shekhawat
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