मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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दोहे
"अपना देश महान"
गौमाता भूखी मरे, श्वान खाय मधुपर्क।
समझो ऐसे देश का, बेड़ा बिल्कुल गर्क।।
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चरागाह में बन गये, ऊँचे भव्य मकान।
देख दुर्दशा गाँव की, है किसान हैरान...
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दोहा क्रमांक - 4
( '' हम जंगल के फूल '' - नामक दोहा ) ,
कवि स्व. श्री श्रीकृष्ण शर्मा के नवगीत संग्रह -
'' अँधेरा बढ़ रहा है '' से लिया गया है -
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सिस्टम कैसे चलेगा ... ?
ज़िंदगी भर नफ़ा नुकसान का भान न रहा जब इस बात का एहसास हुआ तो पता लगा आँखें कमजोर हो चुकीं हैं . लोगों को कहते सुना हैं ......... कि नालायक किस्म का इंसान हूँ . अब बित्ते भर की लियाकत होती तो भी कोई बात थी अब तो लियाकत के नाम पर कहते हैं मेरे पास अंगुल भर भी लियाकत नहीं है ऐसा कहते हैं लोग ... ! सही कहते होंगे लायक लोग ही हैं जो लायक और नालायक के बीच अच्छा फर्क तय करके स-तर्क सबको समझा देते हैं ....
मिसफिट Misfit पर गिरीश बिल्लोरे मुकुल
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पी. ए. संगमा ,
जितना मैंने देखा
पी. ए. संगमा जी जब कोल मिनिस्टर थे ,तब उनके ही एरिया में कोल इण्डिया की एक मारूति जिप्सी का एक्सीडेंट हुआ था , हादसा इतना भयावह था कि गाड़ी 70 फीट नीचे खाई में गिर चुकी थी , दो मृत शरीर सड़क पर और 3 साथी गाड़ी के साथ खाई में ...भयंकर बारिश.....करीब एक घंटे बाद एक टेंकर घटना स्थल पर आया ,उसे एक मृत व्यक्ति की जेब से पिछले पेट्रोल पम्प की एक रसीद कोल इण्डिया के नाम पर मिली ... तब मोबाईल तो थे नहीं, टेंकर वाला वापस उस पेट्रोल पम्प पर गया ,पेट्रोल पम्प वाले ने सीधे दिल्ली फोन लगाया और वहाँ से गौहाटी ऑफिस खबर मिली और मदद पहुंचाई जा सकी...
मेरे मन की पर
अर्चना चावजी Archana Chaoji
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शिक्षको चुनौती स्वीकारो,
भारत का भाग्य बदल डालो,
अब उठो शिक्षको भोर हुई,
कुरुक्षेत्र में जाना ही होगा ।
जो वचन दिया भारत माँ को ,
करके दिखलाना ही होगा।
गांडीव उठा लो हाथों का,
बध करो अँधेरी रातों का,
तुम 'ज्ञान बाण ' संधान करो,
अज्ञान मिटाना ही होगा...
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अर्चि के उज्ज्वल भविष्य हित
स्वयं जलना आँच सा
कई बार जग की ड्योढ़ी पर
अनन्त दीप के हित जलकर
बुझ जाना होता है।
सञ्जीवनी दिन को देने हित
बलिदान बहाना होता है...
ममता त्रिपाठी
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दोहे !
कोई नहीं सुखी यहाँ, राजा हो या रंक
प्रजा से दुखी राजा, राज-जुल्म से रंक ||1||
वक्त कभी रुकता नहीं, सुख-दुःख विराम हीन
ख़ुशी में मन आनान्दित, दुख में मन है मलिन ||२...
कालीपद "प्रसाद"
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मन में फूल खिला कर हम को फिर तड़पाने आए हैं
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२०५.
छोटी-सी ख़ुशी
ठंडी-ठंडी सुबहों में घुल गई है
हल्की-सी गर्माहट,
जैसे किसी उदास चेहरे पर छा जाए
थोड़ी-सी मुस्कराहट...
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राष्ट्र प्रेम नहीं मरा था।
कभी राष्ट्र गीत का विरोध,
कभी गायत्री मंत्र का
कभी पाकिस्तानी झंडा लहराना
कभी राष्ट्र विरोधी नारे।
तब कहते सुना है सब को,
ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।
वंदे मातरम्, भारत माता की जय...
कभी गायत्री मंत्र का
कभी पाकिस्तानी झंडा लहराना
कभी राष्ट्र विरोधी नारे।
तब कहते सुना है सब को,
ये अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता है।
वंदे मातरम्, भारत माता की जय...
kuldeep thakur
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बस यूं ही
जहां आज भी ज़िंदा हैं गुरुकुल,
उसे अवध की सरजमीं कहते है,
जोखिम उठा, मेहनत से कमाकर,
जो खाए उसे उद्यमी कहते हैं...
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आजाद तो प्रकृति भी नहीं है
जब आँधी चलती है तब धूल का गुबार उठता ही है. पेड़ से पत्ते झड़ते ही हैं। जब भूकम्प आता है तब समुद की लहरे तूफानी हो ही जाती है, जब मेघ गरजते हैं तब बरसाती आफत अपना कहर बरपाती ही है। क्या कहेंगे इसे? प्रकृति का नियम या प्रकृति की बर्बरता? जिस प्रकृति को हम जड़ मान लेते हैं, उसमें भी नियम हैं तो जहाँ चेतना है वह बिना नियम कैसे रह सकती है? इस सृष्टि के प्रत्येक प्राणी किसी ना किसी नियम से बद्ध है, फिर वे एकेन्द्रिय हों या पंचेन्द्रिय। पोस्ट को पढ़ने के लिये इस लिंक पर क्लिक करें...
smt. Ajit Gupta
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