फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

मंगलवार, मार्च 01, 2016

दे देना प्रभु एक, उसे भी बोदा लड़का; चर्चा मंच -2268


बोदा लड़का घूमता, छुटका किन्तु सयान।
गाली खाए नित्य यह, बनता वह विद्वान ।

बनता वह विद्वान, विलायत पढ़ने जाता। 
व्याही गोरी मेम, वहीँ पर नाम कमाता |

रविकर अब असहाय, करे सेवा यह बड़का ।
दे देना प्रभु एक, उसे भी बोदा लड़का ||
--

ग्यारह दोहे 

"खुली ढोल की पोल" 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')  

आमबजट पर उठ रहे, ढेरों आज सवाल।

पिछले पैंसठ साल में, हुआ न ऐसा हाल।१।
--
निर्धनता के नाम का, बजा रहे जो गाल।
धनवानों को बाँटते, वो ही स्वर्णिम थाल।२।
--
पैदल चलकर जो कभी, गये नहीं बाजार।
दाल-भात के भाव क्या, जानें नम्बरदार।३... 


Naveen Mani Tripathi 




Gopesh Jaswal 




GYanesh Kumar 



नीरज गोस्वामी 



Priti Surana 


vijay kumar sappatti 

रश्मि शर्मा 
Virendra Kumar Sharma 
Kirtish bhatt 
नीरज जाट 
Kajal Kumar a
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक 
पतझड़ के पश्चात वृक्ष नव पल्लव को पा जाता। 
विध्वंसों के बाद नया निर्माण सामने आता।।
--
भीषण सर्दी, गर्मी का सन्देशा लेकर आती ,
गर्मी आकर वर्षाऋतु को आमन्त्रण भिजवाती,
सजा-धजा ऋतुराज प्रेम के अंकुर को उपजाता।
विध्वंसों के बाद नया निर्माण सामने आता।।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।