आज की चर्चा में आपका हार्दिक अभिनन्दन है,
आज सीधे चलते हैं कुछ चुने हुए लिंको की तरफ।
आज सीधे चलते हैं कुछ चुने हुए लिंको की तरफ।
(डॉ.रूपचन्द्र शस्त्री 'मयंक')
पतझड़ में जिनके हुए, गात-पात बदरंग,
अब उन बिरुओं का ग़ज़ब खिला हुआ है अंग।
फागुन में मधुमास का ऐसा चढ़ा खुमार,
होली का चढ़ने लगा, लोगों पर अब रंग।।
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आशा सक्सेना
बाल अरुण की स्वर्णिम किरणें
यहाँ हैं बर्फ की चादर पर
हिम बिंदु भी यदाकदा छू जाते
मेरे तन मन को
एहसास तुम्हारा होता
फागुन के आने का होता
पर हुई छुट्टी निरस्त
आना संभव ना होगा
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समीर लाल ’समीर’
सभी शहर मध्य प्रदेश का हरसूद नहीं हुआ करते.. जो नदी में डूब में आकर अपना अस्तित्व
खो दें...कुछ शहर यूँ भी खो जाते हैं, बेवजह!!
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आकांक्षा सक्सेना
उपभोक्ता न्यायालयों के रूप में सर्वप्रथम अमेरिकी कांग्रेस में 'अधिकार के उपभोक्ता बिल' की शुरुआत की 15 मार्च 1962 को अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ कैनेडी उपभोक्ता अधिकारों के बारे में एक ऐतिहासिक भाषण दिया। जब से, दुनिया भर के देशों में विश्व उपभोक्ता दिवस के रूप में 15 मार्च को मनाया है।
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रेखा श्रीवास्तव
कुछ धुँधली सी
यादों पर
जब पड़ जाती है
उजली सी तस्वीरों का
चमकता हुआ सूरज।
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डा० उर्मिला सिंह
अकेली थी—नितांत नहीं?
अंग्रेजी में—इन दो शब्दों को बहुत खूबसूरती से अलग कर के जोडा गया है,
Aloneness and Lonaliness.
आइये चलते हैं—नदी के इन दो किनारों के बीच और बह निकलते हैं-- यादों के दरिया में—शब्दों की पतवार लिये—यही है
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मधुरेश
मनुस्मृति ही क्यों, तुम
वेद-पुराण भी जला डालो,
धर्म, शास्त्र, नीतियों को
तुम हँसी में ही उड़ा डालो!
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महेश कुशवंश
हम आज़ाद हैं
देश भी आज़ाद है
देश की हवा, पानी सब आज़ाद हैं
कौन सी हवा कहाँ रोकनी है
किसको कौन सी हवा मिलनी चाहिए
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प्रमोद जोशी
विडंबना है कि जब देश के 17 सरकारी बैंकों के कंसोर्शियम ने सुप्रीम कोर्ट में रंगीले उद्योगपति विजय माल्या के देश छोड़ने पर रोक लगाने की मांग की तब तक माल्या देश छोड़कर बाहर जा चुके थे. अब सवाल इन बैंकों से किया जाना चाहिए कि उन्होंने क्या सोचकर माल्या को कर्जा दिया था?
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प्रमोद सिंह
हिन्दी के अखबार और मास्टर आपको जाने काम की क्या-क्या चीज़ें बतायेंगे, ऐसे और शहर के वैसे दूसरे ढेरों सवाल होंगे, जिनका उनके पास कोई जवाब न होगा.
1.
मन की बात
सोचो, समझो और
मनन करो।
2.
देश बढ़ेगा
अपने दम पर
आगे ही आगे।
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शारदा अरोड़ा
गुलाब को उसके काँटों की वजह से मत छोड़ो
अवगुणों की वजह से गुणों को मत छोड़ो
गुजारा है जो वक़्त साथ-साथ , वो बोलता ही मिलेगा
खुशबुएँ साथ-साथ चलती हैं ,
वरना दिल तन्हा ही मिलेगा
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आमिर अली
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रेखा श्रीवास्तव
जीवन की बढ़ती आपाधापी और दूर दूर फैले कार्यक्षेत्र में लगने वाले समय ने और खाने पीने की नयी नयी सुविधाओं ने जीवन सहज बना दिया है लेकिन शरीर को जल्दी ही दवाओं पर निर्भर भी बनाता जा रहा है।
रंजना भाटिया
दे कर मेरी ज़िंदगी को कुछ लम्हे खुशी के
ना जाने वो शख्स फिर कहाँ चला गया
जो भी मिला मुझे मोहब्बत के सफ़र में
वो ही मुझे तन्हा और उदास कर गया
आनंद कुमार द्विवेदी
हमारा हाल भी अब और ही सुनाये मुझे
सितम करे तो कोई इस तरह सताए मुझे
न जाने कौन सा ये श्राप है दुर्वासा का
शहर से मेरे वो गुजरे तो भूल जाए मुझे
दर्द की बात पुरानी हुई दुनिया वालों
अब वो रूठे तो बड़ी देर तक हँसाये मुझे
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