घोड़ा तो फिर से बिका, गया बेच के सोय।
लुटा माल-असबाब कुल, सौदागर ले रोय।
सौदागर ले रोय, उसे रविकर समझाते |
निद्रा मृत्यु समान, नींद में पैर हिलाते |
मान अन्यथा लाश, सजा दे चिता निगोड़ा |
दुनिया तो बदनाम, बेच दे लंगड़ा घोड़ा ||
|
महेश कुशवंश
|
pramod joshi
|
GYanesh Kumar
|
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
उड़ता था उन्मुक्त कभी जो नीले-नीले अम्बर में।
कैद हो गया आज सिकन्दर सोने के सुन्दर घर में।।
|
सुधीर
|
Priti Surana
|
डॉ. जेन्नी शबनम
|
Anita
|
UMA SHANKER MISHRA
|
PBCHATURVEDI प्रसन्नवदन चतुर्वेदी
|
SUMIT PRATAP SINGH
|
प्रतिभा सक्सेना
|
Asha Saxena
|
संध्या आर्य
|
Kirtish bhatt
|
vandana gupta
|
Virendra Kumar Sharma
|
Kajal Kumar
|
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर
केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।