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सोमवार, मार्च 14, 2016

"एक और ईनाम की बलि" (चर्चा अंक-2281)

मित्रों!
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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रंग भरा गुब्बारा 

*होली के अवसर पर --  
* *बाल कहानी * * 
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आशिक़ बड़े महान 

शादी एक संग कीजिये, दूजी संग कर के प्यार 
तीजी जो मिल जाए तो, फिर नहीं चूकना यार... 
तमाशा-ए-जिंदगी पर Tushar Rastogi 
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जीवन - अब तक 

(विचारों का प्रवाह न काव्यरूप में होता है और न ही गद्यरूप में। वह तो अपनी लय में बहता है, उसे उसकी लय में समझ पाना और लिख पाना कठिन है, फिर भी निर्मम आत्मचिन्तन के शब्दों को आकार देने का प्रयास किया है।).. 
न दैन्यं न पलायनम् पर प्रवीण पाण्डेय 
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तमाशा जात मज़हब का खड़ा करना बहाना है 

सभी  नाकामियाँ अपनी  उन्हें  यूँ  ही छुपाना है 
ढ़ले सब एक  साँचे में, नहीं  कोई अलग लगता 
मुखौटों  में  छुपे  चेहरे,  ज़माने को  दिखाना है... 
शीराज़ा [Shiraza] पर हिमकर श्याम 
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"भारत और नेपाल सीमा की सैर"

सीमा के हैं मस्त नजारे भारत और नेपाल के।
लेते हैं आनन्द पथिक घोड़े-ताँगे की चाल के।।

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