रविकर
खाई पूरे आठ सौ, महज एक सौ और।
होय सहज हज का सफर, लेकिन बदले दौर।
लेकिन बदले दौर, बिलौटा बड़ा निकम्मा।
कैसे हो सिरमौर, सोचती रहती अम्मा।
बढ़ती जाए उम्र, समझ लेकिन ना आई।
चूहे मुँह का कौर, वहाँ भी मुँह की खाई।।
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नीरज गोस्वामी
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रविकर
गोटी दर गोटी पिटी, मिली हार पे हार।
घाट घाट घाटा घटा, घुट घुट घोटी लार।
घुट घुट घोटी लार, किया घाटे का सौदा।
भूत रहा नाकाम, दाँव पर लगा घरौंदा।
सतत दुखद परिणाम, लगे है किस्मत खोटी।
भागे रविकर भूत, बचा ना सका लंगोटी।।
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पाये नहीं जिन्होंने, घर में नरम-निवाले, खुद को किया उन्होंने, परदेश के हवाले, फूलों को बींधने को, कुछ खार आ गये हैं। टुकड़ों को बीनने को, मक्कार आ गये हैं।। |
yashoda Agrawal
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Gopesh Jaswal
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ZEAL
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shyam Gupta
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shikha kaushik
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देवेन्द्र पाण्डेय
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Kajal Kumar
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SUMIT PRATAP SINGH
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