मित्रों!
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अब पछुआ चलने लगी, सर्दी गयी सिधार।
घर-घर दस्तक दे रहा, होली का त्यौहार।१।
सारा उपवन महकता, चहक रहा मधुमास।
होली का होने लगा, लोगों को आभास।२...
आज शिक्षण एक व्यवसाय है जहां ज्ञान नहीं, "सूचनाओं" की जानकारी दे बच्चों को मशीनों की तरह परीक्षाओं के लिए तैयार कर उन्हें एक चलता फिरता सूचना संग्रहालय बनाया जाने लगा है। जाहिर है ऐसी उपाधियां नौकरी तो दिला सकती हैं ज्ञान नहीं...
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा
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फाग की आई बहारें गुल खिलेगा
इन नज़ारों से हमारा घर सजेगा ......
देख लो साजन हमारी यह अदायें
मुस्कुराता आज मौसम फिर कहेगा ...
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"लालची,बेवकूफ,और भ्रष्ट मीडिया को
अच्छे से "प्रयोग"कर रहे हैं ,
चतुर नेता,व्यापारी,अफसर और समाजसेवी"!-
पीताम्बर दत्त शर्मा (लेखक-विश्लेषक)
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तुम रहते हो कितने पास
तुम रहते हो कितने पास मगर मेरे साथ नहीं होते
तुम गाते हो कितने गीत मगर मेरे गीत नहीं होते...
प्रभात
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ये मुहावरा काफी पुराना है और सही भी है।
अनार एक ऎसा फल है जिससे
सौ तरह की समस्याओं का
समाधान हो सकता है...
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*प्याज़* काटते वक्त आंसु न निकले या आंखों में झाल न हो इसलिए प्याज़ को 10-15 मिनट फ्रीजर में रखकर फिर काटे। ध्यान दीजिए, प्याज़ ज्यादा देर फ्रीजर में न रहे, नहीं तो प्याज़ में बर्फ का असर होने लगेगा।फ्रिजर में रखने से प्याज़ के अंदर की तेज गैस बाहर निकल जाती है। प्याज़ साबुत होने से फ्रीजर में भी प्याज़ की गंध नहीं आएगी...
आपकी सहेली पर Jyoti Dehliwal
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गुलाबी-गुलाबी हुआ आसमाँ है
उमंगों ने बाँधा कुछ ऐसा समाँ है
कि रंगों में डूबा ये सारा जहाँ है
जले होलिका में कपट क्लेश सारे
महज मित्रता का ही आलम यहाँ है...
कल्पना रामानी
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तुम्हारे साथ वो... होली आखिरी थी...
कहाँ खबर थी,
तुम्हारे साथ वो... होली आखिरी थी...
नही तो जी भर कर... खेल लेती मैं होली...
तुम्हारी हथेलियों से...
मेरे गालो पर लगा वो गुलाल,
तो कब का मिट गया गया था..
पर तुम्हारी हथेलियों के निशां,
आज भी मेरे गालो पर नजर आते है....
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विश्वासघात
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मुझे है जानना के किस सिफ़त का अम्न होता है
बड़ी है बात के दिल चौक पे नीलाम होता है
पड़े क्या फ़र्क़ इससे के वो तेरा है के मेरा है
ये क्या है के उसी की तर्फ़दारी को हूँ आमादा
मुझे जिस शख़्स ने हरहाल में हर वक़्त लूटा है...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
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हार की जीत
महान लेखक सुदर्शन जी क्षमा याचना करते हुए उनका शीर्षक चुराता हु (अपनी सज्जनता का ख्याल रखते हुए वर्ना लोग तो यहाँ लेख के कलेवर बदल कर अपने नाम से चाप लेते है) . बचपन में एक कहानी पढ़ी थ “हार की जीत” सारी कहानी बाबा भारती के घोड़े के इर्द गिर्द घुमती थी, ५ नंबर का एक प्रश्न भी आया था छमाही में, जवाब भी दिए थे, पास भी हुए थे. घोडा सुलतान, डाकू खड़ग सिंह और बाबा भारती कालांतर में समाज से कल्टी कर दिए गए. उनकी कहानी गयी और ८०-९० के दशक में एक बार फिर घोड़ो ने कान्तिशाह फिल्मो के दवारा जनता के दिलों में घर वापसी की. यहाँ तक की छोटे बच्चे ऐसी फिल्मो को देंख ले तो आपस में...
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कृपण द्वार
अब मेरे पास शब्द है न भाषा
न बची खुद से ही कोई आशा
सभी सांसारिक तृष्णाओं से
होकर मुक्त हो गया हूँ
निर्द्वंद बिल्कुल नवजात शिशु सा
कच्ची मिटटी सा...
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