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शुक्रवार, मार्च 18, 2016

"दुनिया चमक-दमक की" (चर्चाअंक - 2285)

मित्रों!
आदरणीय राजेन्द्र कुमार जी ने चर्चा मंच से 
दो माह का अवकाश लिया हुआ है।
क्योंकि वे आबूधाबी से
भारत में अपने घर आये हुए हैं। 
इसलिए शुक्रवार की चर्चा में देखिए 
मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

kabhii shaam kabhii dhoop के लिए चित्र परिणाम
रूठने मनाने में 
उम्र गुजर जाती  है 
शाम कभी होती है 
कभी धूप निकल आती है 
चंद दिनों की खुशियों से 
जिन्दगी सवर जाती है... 
Akanksha पर  Asha Saxena 
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बच्चों का ये  है विद्यालय।
विद्याओं का ये है आलय।।


कितना सुन्दर सजा चमन है।
रंग-बिरंगे यहाँ सुमन हैं।।


कोरे कागज जैसे मन है।
चहक रहा कानन-उपवन है... 

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हिसाब बराबर 

ज़िंदगी मुझ पर तेरा अब क़र्ज़ कुछ बाकी नहीं 
पूरी शिद्दत से निभाए फ़र्ज़ कुछ बाकी नहीं 
भूल से जो रह गये दो चार देने से कभी 
बदले में तूने दिए जो दर्द कुछ बाकी नहीं ! 
Sudhinama पर sadhana vaid 
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याद के बाद -  

कविता 

(शब्द व चित्र: अनुराग शर्मा) 
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दूर रहो मुझसे.. 

मैं मुहब्बत हूँ, 
मेरी रूह से गुजर जाओ, 
गर बदन को देखते हो, 
दूर रहो मुझसे....  
daideeptyaपर 
Anil kumar Singh 
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मौत की खाई ... 

पढ़ लिया लिख लिया सो गए 
ख़्वाब में वो: ख़ुदा हो गए 
कौन हैं लोग जो देस में 
नफ़्रतों की फ़सल बो गए... 
Suresh Swapnil 
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ये आज पूछता है बसंत  

डा श्याम गुप्त ... 

क्यों रूठे रूठे वन-उपवन,
क्यों सहमी सहमी हैं कलियाँ |
भंवरे क्यों गाते करूण गीत,
क्यों फाग नहीं रचती धनिया |
ये रंग वसंती फीके से ,
है होली का भी हुलास नहीं |
क्यों गलियाँ सूनी-सूनी हैं,
क्यों जन-मन में उल्लास नहीं... 
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