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गुरुवार, जून 30, 2016

चर्चा - 2389

आज की चर्चा में आपका हार्दिक स्वागत है 
केन्द्रीय कर्मचारी तो सातवें पे कमीशन के हिसाब से जोड़-तोड़ में व्यस्त होंगे, अन्य लोग ये अंदाजा लगाने में कि इनको बिना काम ही इतना क्यों मिल रहा है | सरकारी नौकरी के काम को कोई काम समझता ही नहीं | इस उठापटक के बीच आशा है कि आप ब्लॉग-दर्शन हेतु जरूर आयेंगे |

बुधवार, जून 29, 2016

ब्लॉग पे लगता है जैसे शायरी सोई हुई ...चर्चा मंच 2388

उन्मुक्त दोहे - 

"कुछ कहना है"
भाषा वाणी व्याकरण, कलमदान बेचैन। 
दिल से दिल की कह रहे, जब से प्यासे नैन।। 

सकते में है जिंदगी, दिखे सिसकते लोग | 
भाग भगा सकते नहीं, आतंकी उद्योग || 

प्रशिक्षण की सघनता 

Praveen Pandey 

इस्लामाबाद। 

पाकिस्तान में किन्नर भी कर सकेंगे निकाह,  

इस्लाम ने बताया जायज 

chandan bhati 

गरीब घर चलाना जानता है 

Prem Farukhabadi 

तो, रवि रतलामी किस खेत की मूली है! 

Ravishankar Shrivastava  

जब लिखा एक पत्र 

Asha Saxena 

माया द्वन्द्वों का है खेल 

Anita 

MTCR में हैं ये 34 देश ,  

चीन विफल भारत सफल 

SACCHAI 
 AAWAZ 

मानवधर्म 

Priti Surana  

ब्लॉग पे लगता है जैसे शायरी सोई हुई ... 

Digamber Naswa 

पत्नीजी के जन्मदिवस पर 

Ghotoo 

ग़ज़ल 

"मत तराजू में हमें तोला करो" 

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

तुम कभी तो प्यार से बोला करो।
राज़ दिल के तो कभी खोला करो।।

हम तुम्हारे वास्ते घर आये हैं,
मत तराजू में हमें तोला करो।

ज़र नहीं है पास अपने तो ज़िगर है,
चासनी में ज़हर मत घोला करो... 
उच्चारण पर रूपचन्द्र शास्त्री मयंक  

मंगलवार, जून 28, 2016

"भूत, वर्तमान और भविष्य" (चर्चा अंक-2387)

मित्रों
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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हर कोई मुड़ के देखता है मुझे 

"किताबों की दुनिया" श्रृंखला फिलहाल कुछ समय के लिए रुकी हुई है जब तक कोई नयी किताब हाथ में आये तब तक आप ख़ाकसार की बहुत ही सीधी, सरल मामूली सी, अर्से बाद हुई इस ग़ज़ल से काम चलाएं, क्या पता पसंद आ जाए , आ जाए तो नवाज़ दें न आये तो दुआ करें कि अगली बार निराश न करूँ... 
नीरज पर नीरज गोस्वामी 
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बालकविता  

"दो बच्चे होते हैं अच्छे" 

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

कहाँ चले ओ बन्दर मामा,
मामी जी को साथ लिए।
इतने सुन्दर वस्त्र आपको,
किसने हैं उपहार किये 
दो बच्चे होते हैं अच्छे,
रीत यही अपनाना तुम।
महँगाई की मार बहुत है,
मत परिवार बढ़ाना तुम... 
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जब लिखा एक पत्र 

पत्र लिख लिख फायदे के लिए चित्र परिणाम
कागज़ काले किये फाड़े 
पूरी रात बीत गई 
की हजार कोशिशें 
कोई बात न बन पाई 
एक पत्र न लिख पाई 
इधर उधर से टोपा मारा 
किया जुगाड़ लाइनों का... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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महामना की श्रेणी 

....इतिहास अपने को दुहराता है यह दिखता प्रतीत होता है । स्मृतियों भाष्यों कथानकों में वर्णित मूल्यों का उन्नयन होना अपरिहार्य है ,उन आचार संहिताओं का ही समाज व हृदय में संग्यान लेना होगा । कितने पिछड़ गए थे उनसे बिछड़ कर ,कितनी धन जन व ज्ञान की हानि हुई ,अनुमान लगा नहीं सकते । आधुनिक नियम उपनियम संवेदनाए प्राचीन गौरव से विस्थापित हुई लगती हैं स्थापित करना होगा । सबका विकास होना है संवर्धन होना है उनके सद्द स्थापित प्रकोष्ठों में । उनमें बिचलन से ही हमारे समाज संस्कृति को अधोगति प्राप्त हुई है ।पिछली सताब्दियों में विधर्मियों के साथ ही कुछ हमारे तथाकथित ऋषि संत गुरु आस्था परोपकार की आड़ में समाज को दिग्गभ्रमित किया है नए पंथ संप्रदायों का निर्माण कर मनुष्य मात्र को मूल पथ से विमुख किया है , यह अच्छा नहीं है स्वीकार्य नहीं है । उनका परित्याग करना होगा... 
udaya veer singh 
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नए दौर की लड़की ग़ुलामी से छुटकारा चाहती है 

अभी शादी नहीं कैरियर चाहती है पढ़ना चाहती है
नए दौर की लड़की ग़ुलामी से छुटकारा चाहती है

कठपुतली काया से निकल बंधन के धागे तोड़ रही 
नचाने वालों की सारी अंगुलियां तोड़ देना चाहती ... 
सरोकारनामा पर Dayanand Pandey 
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शादी की वर्षगांठ 

शादी की वर्षगांठ एक कलैंडर वर्ष में आने वाली वह तारीख है जिस दिन गठ बंधन हुआ था और आगे से सामाजिक रूप से साथ रह कर काम करने और प्रेम करने की छूट मिली थी। शुरू के वर्ष तो धकाधक, चकाचक, फटाफट कट जाते हैं मगर प्रेमी-प्रेमिका से माता-पिता बनने के बाद दायित्व बोझ के तले आगे के वर्ष काटे नहीं कटते... 
बेचैन आत्मा पर देवेन्द्र पाण्डेय 
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पापी पेट का सवाल है 

पापी पेट का सवाल है।
न होता अगर पेट पापी,
न मांगती भीख सोना
न काटता जेब पप्पू,
न नाचती महफिल में मोना।
पेट की खातिर बन गया भीखू,
कोठे का दलाल..... पापी पेट का...
Jayanti Prasad Sharma 
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सनातन परंपरा में विवाह बहुत पवित्र बंधन है । कहते हैं विवाह के सात फेरे सात जन्मों का बंधन होता है । पता नहीं कितने लोग इस बात में यकीन रखते हैं लेकिन मैं ज़रूर रखती हूं । और वो भी अपने पापा और बीजी के संबंधों के आधार पर । मेरे पापा और मेरी बीजी नार्थ पोल और साऊथ पोल थे... 
रसबतिया पर  -सर्जना शर्मा 
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गोलट - 

लघुकथा 

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मधुर गुंजन पर ऋता शेखर मधु 
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  संचालनालय महिला सशक्तिकरण भोपाल के उपसंचालक  श्री हरीश खरे जी की सलाह पर संचालक बालभवन जबलपुर द्वारा  संगीत की विशेष साप्ताहिक  क्लास राज कुमारी  बाल निकेतन में प्रातः 11 बजे से प्रारम्भ करने का निर्णय लिया है। बालनिकेतन के माता-पिता विहीन  46 बच्चों  को प्रशिक्षण के लिए पंजीकृत कर लिया है . संस्थान के   सचिव ने इस हेतु आयुक्त महिला सशक्तिकरण को आभार व्यक्त करते हुए कहा कि - *संस्थान में बेहद अनिवार्य सेवा देकर विभाग ने अत्यंत संवेदनशीलता का परिचय दिया है.. एकीकृत बाल संरक्षण सेवा के बेहतर क्रियान्वन केवल दिशा संभागीय बाल-भवन जबलपुर द्वारा  उठाया गया यह बेहद सराहनीय  है ... 
मिसफिट Misfit पर गिरीश बिल्लोरे मुकुल 
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गबरु का मोबाईल सेल्फी सुख ... 

एक गांव में गवरु नाम का कम पढ़ा लिखा एक नवयुवक रहता था । एक बार किसी काम से शहर गया था तो शहर के लड़कों ने उसे मोबाईल का चस्का लगा दिया । गबरु घर की खेतीबाड़ी का कामधाम छोड़कर मोबाईल से दिनरात खेलता रहता था । किसी ने उसके मोबाईल में एक सोशल साइड की एप्लिकेशन अपलोड कर दी और उसे फोटो अपलोड करना और सेल्फी फोटो लेना सिखा दिया फिर क्या था गबरु जैसे पागल सा हो गया था । वह जहाँ भी जाता तो एक दो ठो फोटो खींचता था... 
समयचक्र पर महेंद्र मिश्र 
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पापा टेक केयर 

रेलगाड़ी में बैठते ही गरिमा ने चैन की सांस ली ,बस अब चंद घंटों में ही वह अपने माँ के घर होगी ,शादी के बाद वह अपनी ही घर गृहस्थी में खो कर रह गई थी,लेकिन वह अपने बूढ़े माँ बाप को याद कर हमेशा परेशान सी रहती थी ,चाह कर भी उनके लिए कुछ नही कर पाती थी |रेलगाड़ी की गति के साथ साथ गरिमा के मानस पटल पर बचपन की यादें उभरने लगी... 
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi 
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पिछले दिनों बनारस-प्रवास का एक सबेरा अस्सी घाट पर बीतना था, बीता। गंगाजी और काशी। प्रकृति और संस्कृति का प्रच्छन्न, सभ्यता-प्रपंच के लिए अब भी सघन है, सब कुछ अपने में समोया, आत्मसात किया हुआ। मन-प्राण सहज, स्व-भाव में हो तो यहां माहौल में घुल कर, सराबोर होते देर नहीं लगती। अनादि-अनंत संपूर्ण। समग्र ऐसा कि कुछ जुड़े, कुछ घटे, फर्क नहीं, उतना का उतना। बदली से सूर्योदय नहीं दिख रहा, बस हो रहा है, रोज की तरह, रोज से अलग, सुबहे-बनारस का अनूठा रंग। कहा जाता है, अवध-नवाब के सूबेदार मीर रुस्तम अली बनारस आए और अलस्सुबह जो महसूस किया वह लौट कर नवाब सादात खां को बयां किया। अब की नवाब साहब बनारस आए, सुबह हुई और बस, नवाब साहब फिदा-फिदा। उन्हीं की ख्वाहिश से शामे-अवध के साथ सुबहे-बनारस जुड़ गया। इस बीच शबे-मालवा छूटा रह जाता है, लेकिन इस भोर में महाकाल का अहर्निश है, सब समाहित, घनीभूत लेकिन तरल, प्रवहमान। और यहां घाट पर नित्य सूर्योदय-पूर्व से आरंभ। संगीत, योग, आरती-हवन... 
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मामू  की  शादी  में  हमने, खूब  मिठाई  खाई।
नाचे-कूदे,  गाने  गाए,  जमकर   मौज  मनाई।
आगे-आगे बैण्ड बजे थे,
पीछे  बाजे  ताशे।
घोड़ी पर  मामू बैठे थे,
हम थे उनके आगे।
तरह-तरह की फिल्मी धुन थीं और बजी शहनाई... 
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कुदरती एहसास है या जिंदगी सोई हुई
बर्फ की चादर लपेटे इक नदी सोई हुई

कुछ ही पल में फूल बन कर खिल-खिलाएगी यहाँ
कुनमुनाती धूप में कच्ची कली सोई हुई... 
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सोमवार, जून 27, 2016

"अपना भारत देश-चमचे वफादार नहीं होते" (चर्चा अंक-2385)

मित्रों
सोमवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')

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प्यारे शिरीष 

रंग बिखरे, बाग निखरे, खिल उठे प्यारे शिरीष। 
गाँव तक चलकर शहर, सब देखने निकले शिरीष। 
खुशनसीबी है कि हैं, परिजन मेरे भी गाँव में 
देके न्यौता ग्रीष्म में, मुझको बुला लेते शिरीष... 
कल्पना रामानी 
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Alpana Verma अल्पना वर्मा 
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जिससे लगा करता हटा नहीं करता। 
उसको कोई कहे तो भला क्या कहे 
जो प्यार से प्यार अदा नहीं करता... 

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नेता होते ही सुबह से शाम तक उद्घाटन आदि करने का कार्यक्रम प्रारम्भ हो जाता है या लोगो की सिफारिशों का कार्यक्रम उनका ताँता कुर्सी इतनी अहम हो जाती है कि अहम का विशाल तम्बू उनके चारो ओरे बन जाता है और वे सड़क से उठकर सबसे उच्च पद पर आसीन हो जाते हैं वह सब किसके कारण यह हम जन साधारण की वजह से कि अपने चेहरे चमकाने के लिए उनसे जान पहचान है यह बताने के लिए उनसे ही उद्घाटन करवाएंगे तो क्या हम नेता इसीलिए बनाते है सुबह से रत तक कार्यक्रमों मैं भाग लेंगे तो जनता का काम कब करेंगे नेता बनते ही घर की टूटी ईंट सोने की हो जाती है... 

Shashi Goyal पर shashi goyal 
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हम नभ के आज़ाद परिंदे
पिंजरे में न रह पाएँगे,
श्रम से दाना चुगने वालों को
कनक निवाले न लुभा पाएँगे।
रहने दो मदमस्त हमें
जीवन की उलझनों से दूर,
जी लेने दो जीवन अपना
आजाद, खुशियों से भरपूर... 
ANTARDHWANI पर मीतू मिश्रा
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फिर उठता हूँ गर गिरता हूँ 

फिर चलता हूँ गर रुकता हूँ 
मैं तपता हूँ मैं गलता हूँ... 
राजीव रंजन गिरि 

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फेसबुक क्या है, क्या-क्या है उपयोग,  

अकाउंट कैसे बनायें ? 

फेसबुक अकाउंट क्या कैसे
क्या आप अभी तक यह सोच रहे है, कि ये फेसबुक क्या चीज है, इसके क्या क्या उपयोग है या फेसबुक पर अकाउंट बनाने और इसके बारे में अधिक जानकारी हासिल करना चाहते है, तो पढ़ते रहिये।  (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); फेसबुक क्या है? फेसबुक को आम भाषा में "सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट" कहा जाता है... 
Kheteshwar Boravat 
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नियत न मेरी ख़राब कर दे 

तमाम नाजो नफासतों से मिरा गुलिस्तां तबाह कर दे । 
रहम अगर कुछ बचा हो दिल में इधर भी थोड़ी निगाह कर दे ।। 
अजीब चिलमन की दास्ताँ है नजर ने भेजा सलाम तुझको । 
नकाब इतना उठा के मत चल नियत न मेरी गुनाह कर दे... 
Naveen Mani Tripathi 
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फिर उठता हूँ गर गिरता हूँ 

फिर चलता हूँ गर रुकता हूँ मैं तपता हूँ मैं गलता हूँ 
किस्मत कह लो, सूरज कह लो फिर उगता हूँ 
गर ढलता हूँ उजियारे सब तुमही रख लो अंधियारे में 
मैं रहता हूँ जुगनू कह लो, दीपक कह लो फिर जलता हूँ ... 
आपका ब्लॉगपरराजीव रंजन गिरि 
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चलें गाँव की ओर 
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आँखों की दोनों पलकों के किनारों पर बालों (बरौनियों) की जड़ों में जो छोटी-छोटी फुंसियां निकलती हैं,उसे ही अंजनहारी,गुहेरी या नरसराय भी कहा जाता है | कभी-कभी तो यह मवाद के रूप में बहकर निकल जाती है पर कभी-कभी बहुत ज़्यादा दर्द देती है और एक के बाद एक निकलती रहती हैं | चिकित्सकों के मत मे विटामिन A और D की कमी से अंजनहारी निकलती है | 
कभी-कभी कब्ज से पीड़ित रहने कारण भी अंजनहारी निकल सकती हैं |
अंजनहारी के कारण... 
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भारत में आप जातिवादी (या कहें, भेद्भावी) न होकर भी जाति के होने से इंकार नहीं कर सकते| जाति व्यवस्था को कर्म आधारित व्यवस्था से जन्म आधारित में परिवर्तित हुआ माना जाता है, और आज यह भेदभाव के आधार के अलावा आदतों, परम्पराओं, भोजन, रिहायश और वंशानुगत बीमारियों का प्रतीक है| इनमें जाति विशेषों से सम्बंधित कई बातें दुर्भावना से भी प्रेरित मानी जाती हैं| परन्तु, किसी भी व्यवस्था के प्रारंभ होने के समय उसके कुछ न कुछ कारण रहे होते हैं, भले ही बाद में वह सही साबित हो या गलत| मेरे मन में एक प्रश्न हमेशा रहा कि कर्म आधारित जाति व्यवस्था में जातियों के श्रेणीक्रम का क्या मापदंड था और क्यों था... 
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...नेताओं की बात परकरना मत विश्वास। 
वाह-वाही के वास्तेचमचे सबके पास।१९। 
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जो चमचे फौलाद केवो हैं धवल सफेद। 
उनकी तो हर बात मेंभरे हुए हैं भेद।२०। 
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अच्छी सूरत देखकरमत होना अनुरक्त। 
जग के मायाजाल सेमन को करो विरक्त।२१।