फ़ॉलोअर



यह ब्लॉग खोजें

शनिवार, जुलाई 08, 2017

"शब्दों को मन में उपजाओ" (चर्चा अंक-2660)

मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

--
--

तूफ़ान कम नहीं गुजरे 

यूं ही कभी पर राजीव कुमार झा 
--
--
--
--
--
--

गीतिका 

पिया आज तुमको मनाने चला हूँ 
सदा साथ तेरा निभाने चला हूँ , 
सहारा मिला आज तो ज़िंदगी में 
गिले औऱ शिकवे मिटाने चला हूँ... 
Ocean of Bliss पर Rekha Joshi 
--

सूखा पेड़ 

Sudhinama पर sadhana vaid 
--
--

रंगों में लकीरों में तुम्हे उकेरुं ..... 

सोचती हूँ आज इस कोरे से कैनवस पर 
रंगों में लकीरों में तुम्हे उकेरुं  ..... 
पर बोलो तो क्या ये हो भी पायेगा 
अपने ख़्वाबों की हकीकत से निकालूँ कैसे 
तुमको खुद से दूर करूं ... 
झरोख़ा पर निवेदिता श्रीवास्तव 
--

एक ख्वाब 

खामोश रात के दामन में, 
जब झील में पेड़ों के साये, 
गहरी नींद में सो जाते है 
उदास झील को दर्पण बना 
चाँद मुस्कुराता होगा, ... 
कविता मंच पर sweta sinha 
--

दिशाविहीन रिश्ते 

देशी घी की खुशबू धीरेधीरे पूरे घर में फैल गई. पूर्णिमा पसीने को पोंछते हुए बैठक में आ कर बैठ गई. ‘‘क्या बात है पूर्णि, बहुत बढि़याबढि़या पकवान बना रही हो. काम खत्म हो गया है या कुछ और बनाने वाली हो?’’ ‘‘सब खत्म हुआ समझो, थोड़ी सी कचौड़ी और बनानी हैं, बस. उन्हें भी बना लूं.’’ ‘‘मुझे एक कप चाय मिलेगी? बेटा व बहू के आने की खुशी में मुझे भूल गईं... 
राज भाटिय़ा 
--
--

जब टाइमिंग ख़राब हो तो 

टाइम भी ख़राब आ जाता है  

कहते हैं , मनुष्य का टाइम ( समय ) खराब चल रहा हो तो सब गलत ही गलत होता है। लेकिन हमें लगता है कि यदि आपकी टाइमिंग ( समय-निर्धारण ) ख़राब हो तो भी सब गलत ही होता है। अब देखिये एक दिन डिनर करते समय हमने सोचा कि श्रीमती जी को अक्सर शिकायत रहती है कि हम उनके बनाये खाने की तारीफ़ कभी नहीं करते। क्योंकि उस दिन दोनों का मूड अच्छा था तो हमने सोचा कि चलो आज बीवी को मक्खन लगाया जाये। यह सोचकर खाते खाते हमने कहा -- भई वाह ! क्या बात है , आज तो सब्ज़ी बड़ी टेस्टी बनी है। पत्नी ने बिना कोई भाव भंगिमा दिखाए कहा -- अच्छा.... 
अंतर्मंथन पर डॉ टी एस दराल 
--
--

क्या सचमुच हम भीड़ में अकेले ही हैं ? 

सुसाइड के किसी मामले के बारे में सुनती हूँ सबसे पहले यही सवाल मन में आता है कि क्यों ? आखिर क्यों यह कदम उठाया होगा ? आमतौर पर ऐसी ख़बरें अखबारों में पढ़ती हूँ तो कारण भी जानने को मिलता है | कई बार कारण भीतर तक हिला देने वाले होते हैं तो कई बार बहुत मामूली सी वजह होती है अपनी ही जान ले लेने की | लेकिन वे सब अनजाने चेहरे होते हैं इसीलिए कुछ दिन में एक आम ख़बर की तरह ऐसे समाचार भी भूल जाती हूँ | बीते कुछ समय में आभासी दुनिया में कुछ जाने-पहचाने या यूँ कहूं कि वास्तविक तौर पर अनजाने चेहरों ने आत्महत्या जैसा कदम उठाया | हालाँकि इनमें से कोई भी मेरे दोस्तों की फ़ेहरिस्त में नहीं ...  
परिसंवाद पर डॉ. मोनिका शर्मा 
--

चक्कर देता साहित्य 

जब मैं नौकरी में थी तब का एक वाकया सुनाती हूँ। कॉपियों का बण्डल सामने था और उन्हें जाँचकर भेजना भी था। लेकिन कहीं से भी आशा की किरण दिखायी नहीं दे रही थी। अब कितनों को फैल करेंगे? आखिर बेमन से जाँच होने लगी, लेकिन यह क्या! एक कॉपी पर कुछ वाक्य पढ़े गये, वही वाक्य बार-बार दोहराए जा रहे थे। लगा कि कुछ ठहरना ही पड़ेगा। छात्र की चालाकी देखिये कि उसने 3-4 वाक्य अनर्गल से ले लिये थे और उन्हें वह बार-बार लिख रहा था। पूरी कॉपी इसी से भरी थी। सच मानिये कि आधा पेज पढ़ते ही चक्कर आने लगे जैसे घुमावदार रास्ते पर चलते हुए आपको चक्कर आने लगते हैं। ऐसा ही कुछ सोशल मीडिया पर हो रहा है.... 
smt. Ajit Gupta 
--
--
साहित्य में आचार्य सब होते हैं,  
'काका' एक ही हैं  

 साहित्य  में सबके अपने आचार्य और गुरु होते हैं, जिनसे हम सीखते हैं और अपने रचना कर्म को आगे बढ़ाते हैं। हम जिसके सान्निध्य में साहित्य का अध्ययन करते हैं, अमूमन वह कोई प्रख्यात साहित्यकार या फिर हमारा ही कोई प्रिय लेखक या कवि होता। इनके अपने नियम और कायदे-कानून होते हैं। इनके अपने नाज और नखरे भी होते हैं। यह सरल और सहज 'काका' नहीं हो सकते। क्योंकि, काका एक ही हैं-श्रीधर पराडकर... 
अपना पंचू 
--
 मैं .. जगह-जगह बिताये हुये समय की एक लम्बी फ़ेहरिस्त बनाती गयी.. और .. इस जोड़ -घटाव गुणा-भाग के हिसाब -किताब में उम्र , खरीद-फ़रोख्त करती हुई चुपचाप निकलती ... 
--
जो हो रहा है वह सही नही हो रहा है । 
विरोध एक व्यक्ति का लेकिन विरोध के समय 
हर मर्यादा का हनन हो रहा है... 
--
उस पर भरोसा नहीं करती

राई-रत्ती जितनी भी नहीं
मगर उसकी परेशानियों से
उतनी ही दुखी होती हूँ
जितना कि वो......

एक दिन भी उसको

याद नहीं करना चाहती
मगर एक पल ऐसा नहीं बीतता
जो उसकी याद के साये में न गुज़रे... 
--

एक दोहा 

 उन लोगों की बात पर, कैसे करता गौर । 
भीतर से कुछ और जो, बाहर से कुछ और ।। 

11 टिप्‍पणियां:

  1. शुभ प्रभात....
    सुंदर व
    पठनीय रचनाओं का चयन
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. एक से बढ़कर एक रचनाएँ सुंदर लिंकों का चयन।मेरी रचना को मान देने के लिए हृदय से आभार।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुंदर चर्चा सूत्र.मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  4. आभार..बहुत खुशी हुई इतने दिनों बाद यहाँ आकर ..सबको पढ़कर ..

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर सूत्र शास्त्री जी ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से आभार ! चर्चामंच की प्रस्तुति पुन: दैनिक हो गयी है या यह केवल अस्थाई व्यवस्था है ? यदि दैनिक हो गयी है तो मेरी हार्दिक शुभकामनाएं स्वीकार कीजिये !

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत आभार जी.
    रामराम
    #हिन्दी_ब्लॉगिंग

    जवाब देंहटाएं
  7. bahut sundar evm sargarbhit charcha hai ji ! dhanywad aapka ,meri rachna ko shamil karne hetu !

    जवाब देंहटाएं

"चर्चामंच - हिंदी चिट्ठों का सूत्रधार" पर

केवल संयत और शालीन टिप्पणी ही प्रकाशित की जा सकेंगी! यदि आपकी टिप्पणी प्रकाशित न हो तो निराश न हों। कुछ टिप्पणियाँ स्पैम भी हो जाती है, जिन्हें यथा सम्भव प्रकाशित कर दिया जाता है।