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गुरुवार, नवंबर 30, 2017
बुधवार, नवंबर 29, 2017
"कहलाना प्रणवीर" (चर्चा अंक-2802)
मित्रों!
बुधवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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मैं, बस मैं नहीं
मैं, बस इक मैं ही नहीं.....इक जीवन दर्पण हूँ.....!
मैं, बस इक मैं ही नहीं.........
इक रव हूँ, इक धुन हूँ,
सहृदय हूँ, आलिंगन हूँ, इक स्पंदन हूँ,
गीत हूँ, गीतों का सरगम हूँ
गूंजता हूँ हवाओं में,
संगीत बन यादों में बस जाता हूँ,
गुनगुनाता हूँ मन में, यूँ मन को तड़पाता हूँ.....
Purushottam kumar Sinha
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व्यथा शब्दों की....
शबनम शर्मा
आसमान के ख़्याल,
धरा की गहराई,
रात्री का अँधेरा,
दिन की चमक,
शब्द बोलते हैं...
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आई एम सॉरी
लकड़ी से सहारेभीड़ भरी
फुटपाथहीन सडक पर किनारे किनारे
धीरे धीरे चलते वृद्ध से
टकराता है एक सत्रह अठारह साल का
मोबाइल पर वयस्त मार्ड्न युवक...
डॉ. अपर्णा त्रिपाठी
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गुलाब
लाख जतन की हमनें इश्क़ छुपाने की
पर उनके दिए गुलाबों ने
खुश्बू चमन में ऐसी बिखरा दी
बात जो अब तलक जो
दिलों की दरम्यां थी
अब वो हर महफ़िल में
चर्चें ख़ास हो गयी यारों...
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जवाब तो जिम्मेदारों से मांगा जाना चाहिए
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा
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आज के काव्य-मंच -
आल्हा छन्द
काव्य मंच की गरिमा खोई, ऐसा आज चला है दौर
दिखती हैं चुटकुलेबाजियाँ, फूहड़ता है अब सिरमौर ।।
कहीं राजनेता पर फब्ती, कवयित्री पर होते तंज
अभिनेत्री पर कहीं निशाना, मंच हुआ है मंडी-गंज...
दिखती हैं चुटकुलेबाजियाँ, फूहड़ता है अब सिरमौर ।।
कहीं राजनेता पर फब्ती, कवयित्री पर होते तंज
अभिनेत्री पर कहीं निशाना, मंच हुआ है मंडी-गंज...
हाफ़िज़ सईद की रिहाई का जश्न ...
राहुल - मोदी जी बात बनी नहीं -हाफ़िज़ सईद रिहा हो गया ,पाक को अमरीकी सैन्य सहायत बहाल होगी -राहुल (यह सुर्खी थी एक हिंदी के अखबार की ) (गांधी तो ये व्यक्ति है नहीं ,क्योंकि पारसियों में गांधी उपनाम और वर्ण ,गोत्र आदि नहीं हैं ये नेहरू वंश का बचा खुचा उच्छिष्ट है वर्ण - संकर रूप में ),राहुल को गांधी कहना उस महात्मा की तौहीन है जिसे मोहनदास करमचंद गांधी कहा जाता था। खुद गांधी वंश के नातियों ने एतराज जताया है इन कांग्रेसियों के आरएसएस पर आक्षेपों का और इनके गांधी उपनाम बनाये रहने पर ) हम अपने मूल विषय की ओर लौटते हैं...
Virendra Kumar Sharma
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अँधेरा है जीवन
जीवन
अँधेरा ही तो है
अँधेरा न हो तो
क्या है रात का अस्तित्व
पर्वतों की गुफाओं से लेकर
पृथ्वी के गर्भ तक
नदियों के उद्गम से लेकर
समुद्र की तलहटी तक
पसरा हुआ है
अँधेरा ही अँधेरा
सरोकार पर Arun Roy
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धर्म मनुष्य की पहचान क्यों हो ?
यद्यपि लेखन में कविता आपकी मुख्य विधा थी। आपका समूचा स्वर भी उसी में सधा। लेकिन हिंदी में दलित साहित्य की जो धारा प्रस्फूटित हो चुकी थी उसके प्रवाह को जारी रखना और उसे हर तरह से समृद्ध करने की जिम्मेदारी भी आपके ऊपर थी। दलित चेतना के स्वर में लिखने वाले चंद लोग ही उस वक्त तक सक्रिय थे। आयुध कारखाने ओ एल एफ, जिसमें आप कार्यरत थे, बहुत से नये लोग भर्ती हुए थे। उन नये लोगों में बहुत से ऊर्जावान दलित साथी थे जिन्होंने एक संस्था बनायी थी- अस्मिता अध्ययन केन्द्र...
लिखो यहां वहां पर विजय गौड़
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रँग चुके हैं यहाँ सब तेरे रंग में ...
अपने मन मोहने सांवले रंग में
श्याम रँग दो हमें सांवरे रंग में
मैं ही अग्नि हूँ जल पृथ्वी वायु गगन
आत्मा है अजर सब मेरे रंग में...
Digamber Naswa
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मंगलवार, नवंबर 28, 2017
"मन वृद्ध नहीं होता" (चर्चा अंक-2801)
मित्रों!
मंगलवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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बादलों की ओट से
झांकता है चाँद
पानी की लहरों पे
लहराता है चाँद ...
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भाषाई सौहार्द
प्रकृति की अनुगूंज से
नदियों की धारा
सागर की लहरों
पक्षियों से कलरव से
निकली जो दिव्य ध्वनियाँ
सैकड़ो वर्षों तक
सभ्यता की कंदराओं में
किया विश्राम
गढ़े शब्द
मानव की जिह्वा से
गुज़रते हुए पाए अर्थ
यही बने मानव के उदगार के माध्यम
कहलाये भाषा ...
सरोकार पर Arun Roy
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निष्पक्षता
निष्पक्षता एक ऐसा गुण है जो सबके पास नहीं होता. सदैव निष्पक्ष रहने का दावा करने वाला मनुष्य भी कभी न कभी पक्षपात करता ही है. एक ही कोख से जन्म देने के बाद भी दुनिया में सबसे अधिक सम्माननीय और देवी के रूप में पूजी जाने वाली मां भी कई बार अपने दो बच्चों में फर्क करती है तो समाज से कैसे निष्पक्षता की उम्मीद कर सकते हैं...
Sudha Singh
मुक्त-ग़ज़ल : 246 -
क़ब्र खोदने को
हैराँ हूँ लँगड़े चीतों सी तेज़ चाल लेकर ॥
चलते हैं रोशनी में अंधे मशाल लेकर...
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चिड़िया: बूँद समाई सिंधु में !
प्रीत लगी सो लगि गई, अब ना फेरी जाय ।
बूँद समाई सिंधु में, अब ना हेरी जाय ।।
हिय पैठी छवि ना मिटे, मिटा थकी दिन-रैन ।
निर्मोही के ...
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24 बरस
दो युग बीत चुके, कुछ बीत चुके हम,
फिर बहार वही, वापस ले आया ये मौसम....
बीते है 24 बरस, बीत चुके है वो दिन,
यूँ जैसे झपकी हों ये पलकें, मूँद गई हों ये आँखे...
Purushottam kumar Sinha
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Vitamin D deficiency and lnsufficiency :
A global public-health problem (Hindi l )
दुनिया भर में फिलवक्त कोई एक अरब लोग या तो इस "सनशाइन विटामिन "की कमी से या फिर अ -अपर्याप्त आपूर्ति से ग्रस्त हैं और समस्या ने तकरीबन एक आलमी (ग्लोबल )रुख ले लिया लगता है। इसी कमीबेशी के चलते यहां वहां कहीं बच्चों का सूखा रोग (रिकेट्स )तथा कहीं और ओस्टोमलासिया सिर उठाये हुए है। और बात सिर्फ इतनी ही नहीं है जब जिन्न बोतल से बाहर आता है तो पूरा पैंडोरा बॉक्स ही खुल जाता है एक समस्या दूसरी को जन्म ही नहीं देती उसका पोषण भी करने लगती है इसी का नतीजा है के इस कमीबेशी के चलते मेटाबोलिक डिसऑर्डर्स (चयापचयन संबंधी शिकायतें )ही नहीं ,ऐसी बीमारियां भी उभर रहीं हैं...
Virendra Kumar Sharma
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तेरे हुश्न के सुहाने से सफ़र पे हूँ..
तेरी हर अदा..
तेरे हर अंदाज, के जानने हैं
हर अदा.. तेरे हर अंदाज,
के जानने हैं मुझे सब राज, दे
खना है मुझे वो सब..
है जिस जिस पे तुझे नाज़,
आज न कर कोई रोक टोक..
है यहाँ कोई नहीं..
मैं तेरे घर पे हूँ.
तेरे हुश्न के सुहाने से सफ़र पे हूँ,
Dipanshu Ranjan
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यह तुम भी जानते हो
तुम्हारी दुआओं में कब
शामिल हुआ मेरा हिस्सा
फकत तुम्हारी कालीन
बनकर रह गया मेरा किस्सा ...
शामिल हुआ मेरा हिस्सा
फकत तुम्हारी कालीन
बनकर रह गया मेरा किस्सा ...
Mera avyakta पर
राम किशोर उपाध्याय
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