मित्रों!
गुरूवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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उम्र के छलावे ...
सभी मित्रों को नव वर्ष की हार्दिक मंगल कामनाएं ... २०१८ सबके लिए शुभ हो. नव वर्ष की शुरुआत एक रचना के साथ ... जाने क्यों अभी तक ब्लॉग पे नहीं डाली ... अगर आपके दिल को भी छू सके तो लिखना सार्थक होगा ...
तेरे चले जाने के बाद
पतझड़ की तरह कुछ पत्ते डाल से झड़ने लगे थे
गमले में लगी तुलसी भी सूखने लगी थी
हालांकि वो आत्महत्या नहीं थी...
स्वप्न मेरे ...पर Digamber Naswa
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'आए भी वो गए भी वो'
शमशेर बहादुर सिंह
गीत है यह, गिला नहीं
हमने ये कब कहा भला,
हमसे कोई मिला नहीं...
कविता मंच पर kuldeep thakur
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ग़ज़ल
मित्रो. से एक निवेदन :
मित्रों की टिप्पणी का मैं शुक्रिया अदा नहीं कर पा रहा हूँ क्योंकि नीचे कुछ विकल्प होते हैं जैसे गुगुलअकाउंट ,लाइव जोर्नल .वर्ड प्रेस ओपन id ,URL Anonimous, इत्यादि .इसमें मैं गुगुल चुनकर भेजता हूँ पर पब्लिश नहीं होता | कोई मित्र मुझे बताएं क्या चुनना है
ताकि प्रतिक्रिया पब्लिश हो |या कोई और सेटिंग ठीक करना है |
सुन्दर खुशबू फूलों से ही मोहक मंजर लगता है |
फागुन के आने के पहले होली अवसर लगता है |
मधुमास में’ टेसू चम्पा, और चमेली का है जलवा
सोलह श्रृंगार सेधरती दुल्हन, गुल जेवर लगता है ...
कालीपद "प्रसाद"
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हाँ हम घंटी बजाते हैं
अपने दिव्य स्वरूप ब्रह्मानन्द के सामने ,
वही तो हम हैं सच्चिदानंद
Virendra Kumar Sharma
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दीवारें
उनके घर की बात क्या करें
जिनके घर में दीवारें हैं।
खंड-खंड में सभी बँटे हैं
धुरी ध्वस्त है
आँगन त्रस्त है
सबके अपने-अपने किनारे हैं।
उनके घर की बात क्या करें
जिनके घर में दीवारें हैं...
जिनके घर में दीवारें हैं।
खंड-खंड में सभी बँटे हैं
धुरी ध्वस्त है
आँगन त्रस्त है
सबके अपने-अपने किनारे हैं।
उनके घर की बात क्या करें
जिनके घर में दीवारें हैं...
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वर्ष तो बीत गया
वर्ष तो बीत गया पर हमारे अन्दर न जाने कितने एहसासों को भर गया कितने पन्ने हवा मे फडफडाते बदल गए कली नीली और सुनहरी स्याही मैं लिखी गई कलेंडर बदल गया कील नहीं बदली जिया है जिसने हर दिन को अपने साथ पर हमारे अन्दर कितने अहसासों को भर गया...
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मैं तुम्हे भूल नहीं पाता हूँ।
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सूरज चाँद तारों को भी तोड़ देते हैं
सब की सुबह और शाम को
लगता है अब साथ होना नहीं है
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भावानुवाद
“DEATH IS A FISHERMAN"
By-BENJAMIN FRANKLIN"
दुनिया एक सरोवर है,
और मृत्यु इक मछुआरा है!
हम मछली हैं अवश-विवश सी,
हमें जाल ने मारा है...
और मृत्यु इक मछुआरा है!
हम मछली हैं अवश-विवश सी,
हमें जाल ने मारा है...
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बहुत सुन्दर चर्चा । आभार 'उलूक' के सूरज तोड़ने के प्रयास की बात को जगह देने के लिये शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा ...
जवाब देंहटाएंआभार मेरी रचना का जगह देने का ...
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंधन्यवाद शास्त्री जी, मेरे ब्लॉग को इस संकलन में शामिल करने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंसबकी प्रस्तुतियां लाजबाब है धन्यवाद शास्त्री जी सावित्री जी जन्मदिन पर लिखी पोस्ट को स्थान देने के लिए
जवाब देंहटाएंवाह ,बेहतरीन चर्चा
जवाब देंहटाएंशास्त्री जी हिंदी के उन्नयन में चिठ्ठों और मुखचिठ्ठों के चलते हिंदी सारी दुनिया में प्रचार प्रसार पा रही है। यह आकस्मिक नहीं है निरंतर दीर्घकालिक प्रयासों का परिणाम है। सूचना प्रौद्योगिकी ,गूगलिंग ,ट्वीटरिंग के इस दौर में ऐसे निरंतर प्रयास आइंदा भी इसी विध ज़ारी रहें यह बेहद ज़रूरी है।
जवाब देंहटाएंहमने देखा है विज्ञान आलेखों के शीर्षक अंग्रेजी में प्राथमिक स्रोत पे चस्पा शीर्षक ही बने रहें तब उस की स्वीकार्यता और लोकप्रियता और भी बढ़ जाती है। अपने स्तर पर मैंने यह आज़माइशें की हैं और सफलता मिली है। आपके इस दिशा में इस प्रकार के आयोजन करना अति सराहनीय है। शुभेच्छु
वीरुभाई (वीरेंद्र शर्मा ),
५१ ,१३१ ,अपलैंड व्यू स्ट्रीट ,कैन्टन(मिशिगन )
४८८ १८८
दूरध्वनी :००१ ७३४ ४४६ ५४५१
वाट्सअप : ८५ ८८ ९८ ७१५०
विशेष :चर्चा मंच आज भी जब चिठ्ठों की विनिंग का दौर है अपने उद्देश्य पर अडिग है बेहतरीन सेवा भाव सभी चिठ्ठाकारों का श्लाघनीय है। मैं आप सभी के दिव्यांश को प्रणाम करता हूँ।