गुजर गया है साल पुराना।
गाओ फिर से नया तराना।।
सब कुछ तो पहले जैसा है,
लक्ष्य आज भी तो पैसा है,
सिर्फ कलेण्डर ही तो बदला,
वही ठौर है, वही ठिकाना।
नित्य नये अनुभव होते हैं,
कुछ हँसते हैं, कुछ रोते हैं,
जीवन तो बस एक सफर है,
सबको पड़ता आना-जाना।
पीना पड़ा यहाँ गरल है,
शंकर बनना नहीं सरल है,
कैसे महादेव बन जायें?
मुश्किल गंगा धार बहाना।
आपाधापी, भाग-दौड़ है,
गुणा-भाग है और होड़ है,
इक आता है, इक जाता है,
जग है एक मुसाफिरखाना।
लोग मील के पत्थर जैसे,
अपनी मंजिल पायें कैसे?
औरों को पथ बतलाते हैं,
ये क्या जानें कदम बढ़ाना।
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प्रबंधन :कुछ क्षणिकाएं
समय पर नहीं आने के लिए
निकाल दिए जायेंगे आप
कोई बात नहीं कि
आपके बेटे को है १०४ डिग्री बुखार...
सरोकार पर Arun Roy
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फ़ायलुन × 4मैंने* तुझसे कहा, तूने* मुझसे कहा। तू तो* समझी नहीं, मैं भी* उलझा रहा।। देती* चेतावनी, ठोकरें भी लगीं तू तो* पत्थर उठा किन्तु देती बहा...
"लिंक-लिक्खाड़" पर रविकर
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केवल अधिकारों की देते हैं जानकारी
पर कर्तव्यविहीन हो रही सोच हमारी
खुल कर बोलना है अधिकार हमारा
कब बोलना, कहाँ बोलना व विवादों को
देना निमंत्रण क्या दुरुपयोग नहीं...
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ताजी रोटी – बासी रोटी
यदि आपके सामने बासी रोटी रखी हो और साथ में ताजी रोटी भी हो तो आप निश्चित ही ताजी रोटी खाएंगे। बासी रोटी लाख शिकायत करे कि मैं भी कल तुम्हारे लिये सबकुछ थी लेकिन बन्दे के सामने ताजी रोटी है तो वह बासी को सूंघेगा भी नहीं। ...
अजित गुप्ता का कोना पर smt. Ajit Gupta
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जिन्दगी के दोहे
भँवर सरीखी जिंदगी, हाथ-पैर मत मार।
देह छोड़, दम साध के, होगा बेडा पार ।।
चार दिनों की जिन्दगी, बिल्कुल स्वर्णिम स्वप्न।
स्वप्न टूटते ही लुटे, देह नेह धन रत्न।।
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुन्दर रविकर चर्चा। आभार 'उलूक' के सूत्र का जिक्र शीर्षक पर कर सम्मान देने के लिये।
जवाब देंहटाएंसबकी पोस्ट्स एक से एक
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक्स, सार्थख चर्चा। मुझे भी मंच पर स्थान देने हेतु आभार।
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