आजकल हिन्दी साहित्य व काव्य में पद्य-विधा के सनातन रूप गीत के दो अन्य रूप अगीत एवं नवगीत काफी प्रचलन में हैं | --------गद्य-विधा से भिन्नता के रूप में जिस कथ्य में, लय के साथ गति व यति का उचित समन्वय एवं प्रवाह हो वह काव्य है,गीत है|
------तुकांत छंदों के अतिरिक्त, अन्त्यानुप्रास के अनुसार गीत- तुकांत या अतुकांत होते हैं | अतुकांत गीतों को गद्य-गीत भी कहा गया | गीत तो सनातन व सार्वकालिक है ही अतः आगे कुछ कहने की आवश्यकता ही नहीं है| --------यहाँ अगीत व नवगीत पर कुछ दृष्टि डालने का प्रयत्न.... |
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बुधवार, जनवरी 17, 2018
"श्वेत कुहासा-बादल काले" (चर्चामंच 2851)
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बहुत सुन्दर प्रस्तुति रविकर जी।
जवाब देंहटाएंआदरणीय शास्त्री जी का आभार एवं धन्यवाद 'क्रांतिस्वर' की पोस्ट को इस अंक में स्थान देने हेतु ।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति ...
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