मित्रों!
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अँधेरा जब मुक़द्दर बन के घर में बैठ जाता है /
डी. एम. मिश्र
अँधेरा जब मुक़द्दर बन के घर में बैठ जाता है
मेरे कमरे का रोशनदान तब भी जगमगाता है।
किया जो फ़ैसला मुंसिफ़ ने वो बिल्कुल सही लेकिन
ख़ुदा का फ़ैसला हर फ़ैसले के बाद आता है...
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माँ की चरणों मे बैठकर
इस जीवन के बीते कई बरस
कहीं धूप खिला कहीं साया है
इस अनुभव के हैं विविध रंग ...
Dr.J.P.Tiwari
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एक हमारा प्यारा तोता
चोंच उसकी है लाल-लालठुमक-ठुमक है उसकी चालघर-भर वह पूरे घूमता रहतामिट्ठू-मिट्ठू कहता फिरता...
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मुझमें सच्चाईयों के कांटें हैं
आसमानों से दूर रहता हूंबेईमानों से दूर रहता हूंवो जो मिल-जुलके बेईमानी करेंख़ानदानों से दूर रहता हूं...
Sanjay Grover
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कभी ऐसा भी
कुछ यूँ ही बिना
कुछ पर
कुछ भी सोचे
कोई
बुरी बात
नहीं है
ढूँढना
लिखे हुवे
के चेहरे को
कुछ
लोग आँखें
भी ढूँढते हैं ...
बुरी बात
नहीं है
ढूँढना
लिखे हुवे
के चेहरे को
कुछ
लोग आँखें
भी ढूँढते हैं ...
उलूक टाइम्स पर
सुशील कुमार जोशी
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
बहुत सुन्दर शनिवारीय अंक। आभार 'उलूक' के सूत्र को भी जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट शामिल करने हेतु आभार!
sundar prastuti , hamen charcha me shamil karne hetu hraday se abhar
जवाब देंहटाएंसूंदर चर्चा प्रस्तुति
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