मित्रों!
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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क्या लिखना है
इस पर कुछ नहीं
कहा गया है हिन्दी सीखिये
रोज कुछ लिखिये
गुरु जी ने वर्षों पहले
एक मन्त्र दिया है
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बेटी का जीवन
बेटी का जीवन भी देखो कैसा अद्भुत होता है,
देख के इसको पाल के इसको जीवनदाता रोता है... .
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जियो उस प्यार में जो मैंने तुम्हें दिया है...
अज्ञेय
जियो उस प्यार में
जो मैंने तुम्हें दिया है,
उस दु:ख में नहीं जिसे
बेझिझक मैंने पिया है...
जो मैंने तुम्हें दिया है,
उस दु:ख में नहीं जिसे
बेझिझक मैंने पिया है...
विविधा.....पर yashoda Agrawal
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वो अफ़साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
ये वैसे तो एक गीत की पंक्ति है ,पर मैं कई दिनों से यही सोच रही थी कि सच में ये सम्भव है भी कि छोड़ना सम्भव है क्या ,चाहे वो मोड़ खूबसूरत हो या विवशता ..... अफ़साना है क्या .... क्या उसको सिर्फ एक कहानी मान लिया जाए या फिर कहानी से परे जा कर एक अनुभव या फिर चंद लम्हों की कुछ जीवंत साँसें ...
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अनूठा नजदीकी रिश्तेदार
पूरे एक बरस पहले, 11 जनवरी 2017 को उन्हें देखा था। उस दिन सुबह ग्यारह बजे मेरे दा’ साहब माणक भाई अग्रवाल का दाह संस्कार था। उससे बहुत पहले से लोग आने शुरु हो गए थे...
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुन्दर शुक्रवारीय अंक। आभार आज की चर्चा में 'उलूक' के हिन्दी दिवस सूत्र को शामिल करने के लिये।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंSundar CHARCHA
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
जवाब देंहटाएंआभार सर, चर्चा मंच पर मेरी कविता को आपने स्थान दिया। सुंदर चर्चा।
जवाब देंहटाएंसशक्त संग्रह , आभार
जवाब देंहटाएंसुंदर और सशक्त संग्रह
जवाब देंहटाएंसभी रचनाकरीं को बधाई
आपको साधुवाद
सादर