मित्रों!
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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ओ करुणाकर
शोभित गगन के ललाट पर
ओ करुणाकर भुवन भास्कर,
स्वर्णिम प्रकाश से तुम उदित हो जाओ
जीवन में मेरे और आलोकित कर दो
निमिष मात्र में मेरा यह तिमिरमय संसार...
Sudhinama पर sadhana vaid
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अभिनय
अभिनय ??
न तो !! कभी सीखा नही मैंने
पर हर रोज़ इसकी जरूरत महसूस होती है
सबके साथ क्या घरवाले क्या बाहर वाले
कभी कभी तो खुद के साथ भी,
चाहती कुछ हूँ करती कुछ हूँ और बोलती कुछ हूँ
कई बार मन बिल्कुल नहीं मानना चाहता
आये दिन के समझौतों को....
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एक वादा खुद से
है वादा अपने आप से इस वर्ष के लिए
है यह पहला वादा शायद यह तो पूरा कर ही सकते हैं !
अधिक की अपेक्षा नहीं की आज तक
कभी ज़िंदगी की आख़िरी साँस तक !
यह कुछ कठिन तो नहीं !
बस खुद पर संयम ही काफी है इसके लिए...
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नववर्ष
३६५ दिनों का कालचक्र कई मान्यताओं /गणनाओं/ स्मारकों/ मौसमी बदलाओं का मंथन करने के बाद वर्ष के रूप में बनाया गया है. पहली जनवरी को नववर्ष मनानेवालों को शायद यह बात मालूम ना हो कि दुनिया भर में नववर्ष अलग अलग दिनों में लगभग ७० बार मनाये जाते हैं क्योंकि सभी मतावलम्बी लोग अथवा सभी देशों के लोग कैलैंडर प्रणाली पर एकमत नहीं हैं. इस वैज्ञानिक युग में भी चंद्रमा अथवा सूर्य की ज्योतिषीय गणनाओं पर कैलेंडर बनाए जाते हैं. ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार, बेबीलोन के लोग ४००० वर्ष पहले भी २१ मार्च को नववर्ष मनाते थे, जो बसंत के आगमन का सूचक हुआ करता था....
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लम्बू जी तुम्हारे पास
सिर्फ साढ़े पांच हाथ लम्बी देह ही देह है
आत्मा नहीं है इस देह में
पूरे अबुध कुमार हो
Virendra Kumar Sharma
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'मीर' कोई था 'मीरा' कोई
लेकिन उनकी बात अलग /
निश्तर ख़ानक़ाही
कविता मंच पर kuldeep thakur
सुन्दर परिचर्चा, मेरी पोस्ट को स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
संतुलित संकलन, आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर सूत्र आज की चर्चा में ! मेरी रचना को सम्मिलित करने के लिए आपका हृदय से धन्यवाद एवं आभार शास्त्री जी !
जवाब देंहटाएंSundar charcha
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
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