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सोमवार, जनवरी 08, 2018

"बाहर हवा है खिड़कियों को पता रहता है" (चर्चा अंक-2842)

सुधि पाठकों!
सोमवार की चर्चा में 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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किसी ने ज़िंदगी गँवाई थी ... 

नीतू ठाकुर 

खून से लथपथ बेजान जिस्म 
रास्ते के किनारे पड़ा था 
मंजर बता रहा था वो मौत से लड़ा था 
टूटे हुए जिस्म के बिखरे हुए हिस्से 
कांच के टुकड़ों की तरह बेबस पड़े थे... 
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नमन तुम्हें मैया गंगे 

गिरिराज तुम्हारे आनन को 
छूती हैं रवि रश्मियाँ प्रथम 
सहला कर धीरे से तुमको 
करती हैं तुम्हारा अभिनन्दन 
उनकी इस स्नेहिल उष्मा से 
बहती है नित जो जलधारा 
वह धरती पर नीचे आकर 
करती है जन जन को पावन ! 
Sudhinama पर sadhana vaid  
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सीमा प्रहरी 

उन्हें बर्फ़ीली पहाड़ियों में भी गर्मी लगती है 
और रेगिस्तान की गर्म हवाएं ठंडक पहुँचाती है 
बरसाती बादल उन पर बिजली नहीं गिरा पाते 
और उनके त्यौहार हमसे अलग होते हैं ....  
अर्चना चावजी Archana Chaoji  
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8 टिप्‍पणियां:

  1. वाह, सखी राधा जी
    आपकी पसंद अच्छी है
    आभार
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. सुन्दर सोमवारीय चर्चा। आज के अंक के शीर्षक पर 'उलूक' के सूत्र को स्थान देने के लिये आभार राधा जी ।

    जवाब देंहटाएं
  3. उम्दा चर्चा...मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद, राधा जी।

    जवाब देंहटाएं
  4. मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही सुन्दर एवं पठनीय सूत्रों का संकलन आज की चर्चा में ! मेरी रचना को स्थान देने के लिए आपका हृदय से बहुत बहुत धन्यवाद एवं आभार राधा जी !

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत अच्छी प्रस्तुति
    मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं

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