सुधि पाठकों!
सोमवार की चर्चा में
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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इक इतिहास बना देते है.....!!!
वक़्त किसी लिए नही ठहरता है, गुजरता जाता है.... बस वक़्त के गुजरने की गति ही धीमी, और तेज महसूस होती है... जब कि वक़्त तो, अपनी ही गति से चलता है.. वक़्त का कोई रंग-रूप नही होता, वक़्त तो वक़्त ही रहता है, बुरा या अच्छा तो हम बनाते है..
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पोस्टकार्ड मटमैला
यादें हमारे मन मस्तिष्क के किस कोने में घर बसाती हैं, यह तो हम कभी नहीं जान सकते, किंतु जब यही यादें अचानक सामने आकर चौंका देती हैं तो यह ज़रूर जान लेते हैं कि कोई याद हमारे ही भीतर छिपी सांस ले रही थी, पल रही थी अपने प्रत्यक्ष होने की प्रतीक्षा में। आज होली पर अचानक ऐसी ही एक याद सामने आई, जब मैंने अपने परिवार और मित्रों को वर्चुअल होली की बधाई भेजी...
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जुंबिशें - - -
नईं अज़ान
यह धर्म और मज़हब
इंसान के लिए अगर कारगर होते तो
सदियों पहले आदमी
इंसान बन चुका होता...
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एक ग़ज़ल :
ये कैसी रस्म-ए-उलफ़त है----
ज़माने को खटकता क्यों है दो दिल की पज़ीराई
तुम्हारे हाथ में पत्थर , जुनून-ए-दिल इधर भी है
न तुम जीते ,न दिल न हारा,नही उलफ़त ही रुक पाई...
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सार्थक लिंकों के साथ सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंआपका आभार बहन राधा तिवारी।
सुंदर संयोजन। मेरी रचना को भी स्थान देने हेतु शुक्रिया।
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंजानकारी भरे लिंक, आभार
जवाब देंहटाएंउम्दा जानकारी
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