मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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अकविता
"नियति"
हमारे पूर्वजों ने,
बरगद का एक वृक्ष लगाया था,
आदर्शों के ऊँचे चबूतरे पर,
इसको सजाया था...
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ख़ामुशी बेज़ुबां ...
ख़ुश्बुए-दिल जहां नहीं होती
कोई बरकत वहां नहीं होती
हौसले साथ- साथ बढ़ते हैं
सिर्फ़ हसरत जवां नहीं होती...
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तेरा राम रखैया...
सबकी चीत भलाई प्यारे , तेरा राम रखैया,
कहाँ टिका जीवन का पानी लहर लहरती कहती,
चलता आना-जाना उड़ते पत्ते उड़ते पत्ते नदिया बहती
जड़-जंगम को नाच नचावे नटखट रास-रचैया...
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
आज की इस सुंदर प्रस्तुति में मेरी रचना को भी शामिल करने हेतु धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंसुंदर लिंक्स के साथ रविवारीय चर्चा मंच.मेरे पोस्ट को शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा बेहतरीन links मेरी post को यहाँ स्थान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा
जवाब देंहटाएंक्रांतिस्वर की पोस्ट को इस अंक में स्थान देने हेतु शास्त्री जी का आभार एवं धन्यवाद।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर प्रस्तुति.... लाजवाब
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