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रविवार, मार्च 25, 2018

"रचो ललित-साहित्य" (चर्चा अंक-2920)

मित्रों! 
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक। 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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मुझे जाँच लीजिये 

भागने की कला में प्रवीण पैदाइशी हूँ,

जब चाहे मुझे आजमाके देख लीजिये|

छोड़ पाठशाला कई बार भाग आया घर,
टीचरों से मेरे स्वर्ग जाके पूछ लीजिये|
छिपता था ऐसी जगह ढूँढ़ हारते थे मित्र,
कहते थे इसे कभी खेल में न लीजिये|
अरे! बैंक वाले मित्र हो जाएगा विश्वास,
एक बार कर्ज देके मुझे जाँच लीजिये| 
मेरी दुनिया पर Vimal Shukla 
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बदला 

शब्द है बड़ा छोटा सा
पर अर्थ बड़ा गंभीर
जिसने उसे जैसा सोचा
उसी के अनुरूप कार्य किया   
बदले में वह क्या चाहता
प्रेम स्नेह ममता
 या कुछ नहीं
किसी से प्रेम करे तब
जरूरी नहीं बदले में
उसे भी प्यार मिले... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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यादों का झरोखा - ११ -  

स्व.शरद कुमार तिवारी. 

स्व.शरदकुमार तिवारी का असल नाम चुन्नीलाल तिवारी था (ये मुझे उनके पुत्र अनिल से मालूम हुआ है) वे मूलरूप से होशंगाबाद, मध्य प्रदेश के रहने वाले थे. स्वभाव से फक्कड़, मुंहफट व मनमौजी  शरदबाबू सन १९३८ में ए.सी.सी. में नौकरी पर लग गए थे. कोटा के पास गोर्धन पुरा (अटरू) में मिश्रा परिवार में उनका ससुराल था (स्व. कुंजबिहारी मिश्रा उनके सगे साले थे.) श्रीमती शारदा तिवारी के मामा लोग यानि दीक्षित परिवार की जड़ें तब लाखेरी में जम चुकी थी उन्ही के माध्यम से वे यहाँ आये, कई विभागों में काम करते हुए वे जब अकाउंट्स क्लर्क थे तो सर्वप्रथम मेरी उनसे मुलाक़ात एक साहित्यिक मित्र के रूप में हुई थी. वे उर्दूदां व अजीम शायर थे... 
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३०४. विराट 

पेड़ की डालियों के स्टम्प बनाकर
ईंट-पत्थरों की सीमा-रेखा के बीच 
वह छोटा-सा लड़का सुबह से शाम तक 
रबर की गेंद से क्रिकेट खेलता है... 
कविताएँ पर Onkar  
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कशमकश 


purushottam kumar sinha 
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एहसास कभी शब्दों का मोहताज नहीं होता ....  

नीतू ठाकुर 

मेरी फ़ोटो
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जीना है तो जल बचा -  

ओ ! इंसान 

बहुत पहले एक फिल्म आयी थी ,''रोटी ,कपड़ा और मकान '' तब हम बहुत छोटे थे ,घरवालों व् आसपास वालों की बातों को फिल्म के बारे में सुनता तो लगता कि यही ज़िंदगी की सबसे बड़ी ज़रुरत हैं किन्तु जैसे जैसे बड़े हुए जीवन की सच्चाई सामने आने लगी और तब एहसास हुआ कि जीवन की सबसे बड़ी ज़रुरत ''पानी '' है... 
! कौशल ! पर Shalini Kaushik  
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भारत विभाजन के गुनहगार --  

डा लोहिया  

शरारती बचपन पर sunil kumar  
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स्ट्रीट फ़ूड नूडल्स फ्रंकी 

नन्ही कोपल पर कोपल कोकास  
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दो मुक्तक ! 

11 टिप्‍पणियां:

  1. सुन्दर चर्चा मेरी पोस्ट को स्थान् देने के लिए हार्दिक धन्यवाद

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा लिंक्स |
    आज चर्चा मंच पर अपनी कविता देखी | धन्यवाद उस के लिए |

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत सुन्दर प्रस्तुति
    मेरी रचना को स्थान देने के लिए कोटि कोटि धन्यवाद
    सभी रचनाकारों को बधाई

    जवाब देंहटाएं
  4. धन्यवाद , मेरी रचना को स्थान देने हेतु-----लोहिया जी के विचार --भारत के विभाजन के जिम्मेदार...पढ़े हार से मेरे vicशायद वे स्थिति का आकलन ठीक नहीं कर पाए...

    जवाब देंहटाएं
  5. उम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुंदर चर्चा। मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.

    जवाब देंहटाएं
  7. मेरी पोस्ट को स्थान् देने के लिए हार्दिक धन्यवाद .

    जवाब देंहटाएं
  8. आदरणीय बहुत बहुत आभार मेरी कविता शामिल करने के लिए
    बहुत सुन्दर चर्चा

    जवाब देंहटाएं

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