मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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मुझे जाँच लीजिये
भागने की कला में प्रवीण पैदाइशी हूँ,
जब चाहे मुझे आजमाके देख लीजिये|
छोड़ पाठशाला कई बार भाग आया घर,
टीचरों से मेरे स्वर्ग जाके पूछ लीजिये|
छिपता था ऐसी जगह ढूँढ़ हारते थे मित्र,
कहते थे इसे कभी खेल में न लीजिये|
अरे! बैंक वाले मित्र हो जाएगा विश्वास,
एक बार कर्ज देके मुझे जाँच लीजिये|
मेरी दुनिया पर Vimal Shukla
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भारतीय धर्म, दर्शन राष्ट्र -संस्कृति के विरुद्ध
उठती नवीन आवाजें
व उनका यथातथ्य निराकरण ---
पोस्ट-पांच--
डा श्याम गुप्त
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बदला
पर अर्थ बड़ा गंभीर
जिसने उसे जैसा सोचा
उसी के अनुरूप कार्य किया
बदले में वह क्या चाहता
प्रेम स्नेह ममता
या कुछ नहीं
किसी से प्रेम करे तब
जरूरी नहीं बदले में
उसे भी प्यार मिले...
Akanksha पर Asha Saxena
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यादों का झरोखा - ११ -
स्व.शरद कुमार तिवारी.
स्व.शरदकुमार तिवारी का असल नाम चुन्नीलाल तिवारी था (ये मुझे उनके पुत्र अनिल से मालूम हुआ है) वे मूलरूप से होशंगाबाद, मध्य प्रदेश के रहने वाले थे. स्वभाव से फक्कड़, मुंहफट व मनमौजी शरदबाबू सन १९३८ में ए.सी.सी. में नौकरी पर लग गए थे. कोटा के पास गोर्धन पुरा (अटरू) में मिश्रा परिवार में उनका ससुराल था (स्व. कुंजबिहारी मिश्रा उनके सगे साले थे.) श्रीमती शारदा तिवारी के मामा लोग यानि दीक्षित परिवार की जड़ें तब लाखेरी में जम चुकी थी उन्ही के माध्यम से वे यहाँ आये, कई विभागों में काम करते हुए वे जब अकाउंट्स क्लर्क थे तो सर्वप्रथम मेरी उनसे मुलाक़ात एक साहित्यिक मित्र के रूप में हुई थी. वे उर्दूदां व अजीम शायर थे...
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३०४. विराट
पेड़ की डालियों के स्टम्प बनाकर
ईंट-पत्थरों की सीमा-रेखा के बीच
वह छोटा-सा लड़का सुबह से शाम तक
रबर की गेंद से क्रिकेट खेलता है...
ईंट-पत्थरों की सीमा-रेखा के बीच
वह छोटा-सा लड़का सुबह से शाम तक
रबर की गेंद से क्रिकेट खेलता है...
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कशमकश
purushottam kumar sinha
एहसास कभी शब्दों का मोहताज नहीं होता ....
नीतू ठाकुर
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जीना है तो जल बचा -
ओ ! इंसान
बहुत पहले एक फिल्म आयी थी ,''रोटी ,कपड़ा और मकान '' तब हम बहुत छोटे थे ,घरवालों व् आसपास वालों की बातों को फिल्म के बारे में सुनता तो लगता कि यही ज़िंदगी की सबसे बड़ी ज़रुरत हैं किन्तु जैसे जैसे बड़े हुए जीवन की सच्चाई सामने आने लगी और तब एहसास हुआ कि जीवन की सबसे बड़ी ज़रुरत ''पानी '' है...
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भारत विभाजन के गुनहगार --
डा लोहिया
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स्ट्रीट फ़ूड नूडल्स फ्रंकी
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सुन्दर चर्चा मेरी पोस्ट को स्थान् देने के लिए हार्दिक धन्यवाद
जवाब देंहटाएंशुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
उम्दा लिंक्स |
जवाब देंहटाएंआज चर्चा मंच पर अपनी कविता देखी | धन्यवाद उस के लिए |
सुन्दर चर्चा।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए कोटि कोटि धन्यवाद
सभी रचनाकारों को बधाई
धन्यवाद , मेरी रचना को स्थान देने हेतु-----लोहिया जी के विचार --भारत के विभाजन के जिम्मेदार...पढ़े हार से मेरे vicशायद वे स्थिति का आकलन ठीक नहीं कर पाए...
जवाब देंहटाएंउम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा। मेरी कविता शामिल करने के लिए आभार.
जवाब देंहटाएंसादर नमन और आभार !
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को स्थान् देने के लिए हार्दिक धन्यवाद .
जवाब देंहटाएंआदरणीय बहुत बहुत आभार मेरी कविता शामिल करने के लिए
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर चर्चा