मित्रों!
शुक्रवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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भारतीय धर्म, दर्शन राष्ट्र -
संस्कृति के विरुद्ध उठती नवीन आवाजें
व उनका यथातथ्य निराकरण ---
एक क्रमिक आलेख
--पोस्ट दो---
डा श्याम गुप्त
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भारतीय धर्म, दर्शन राष्ट्र -
संस्कृति के विरुद्ध उठती हुई नवीन आवाजें
व उनका यथातथ्य निराकरण
---पोस्ट तीन- ---
डा श्याम गुप्त ---
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पञ्चतत्त्व
यदि पञ्चत्त्वों के भी हमारी तरह जिह्वा और कंठ होता तो वे आकंठ प्रदूषित न हो रहे होते प्रतिकार करते प्रतिकार में कुछ शब्द, वाक्य बोलते। पर वे मौन हैं कुछ बोल नहीं रहे इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं कि वे हमें नहीं जानते या हमें तोल नहीं रहे। वे जानते हैं हमारा दंभ, गर्व, अभिमान और हमारी औकात इसलिये चुप हैं इसलिये संयत हैं। उनके लिए हमारे द्वारा फैलाया गया प्रदूषण पृथ्वी, जल, अग्नि, आकाश और वायु का दूषण क्या है? ...
अभिनव रचना पर
Mamta Tripathi
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जब मिला तू जामे से बाहर मिला
तूने चाहा था जो वो जी भर मिला
तू ही कह क्या तू भी मुझको पर मिला...
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
उम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद,शास्त्री जी।
जवाब देंहटाएंशानदार चर्चा मेरे आलेखों को शामिल करने के लिए आदरणीय आपका आभार
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति ...
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