सुधि पाठकों!
सोमवार की चर्चा में
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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अपनी रोटी से ही तृप्ति
कभी मन हुआ करता था कि दुनिया की हर बात जाने लेकिन आज कुछ और जानने का मन नहीं करता! लगने लगा है कि यह जानना, देखना बहुत हो गया अब तो बहुत कुछ भूलने का मन करता है। तृप्त सी हो गयी मन की चाहत। शायद एक उम्र आने के बाद सभी के साथ ऐसा होता हो और शायद नहीं भी होता हो! दौलत के ढेर पर बैठने के बाद दौलत कमाने की चाहत बन्द होनी ही चाहिये और दुनिया को समझने के बाद और अधिक समझने की चाहत भी बन्द होनी चाहिये...
smt. Ajit Gupta
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समय बतायेगा
हरी-हरी दूब खो गयी है हरी कालीन बिछी हुयी है
हरियाली सबको चाहिये पर प्रकृति से ठनी हुयी है...
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नारी
नारी से ही रीत है, नारी से है प्रीत।
नारी से है सर्जना, नारी सुन्दर गीत...
मधुर गुंजन पर ऋता शेखर 'मधु'
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शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
मनमोहक और सार्थक चर्चा।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद राधा तिवारी जी।
आपके परिश्रम को नमन।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति, आभार।
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