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रविवार, जून 17, 2018

"पितृ दिवस के अवसर पर" (चर्चा अंक-3003)

मित्रों! 
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक। 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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चट्टान 

प्यार पर Rewa tibrewal 
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हमारे हाथ में कुछ आईने है 

मित्रो आज एक लम्बे अरसे बाद  
आप सबसे मुखातिब हो रही हूँ  
अपनी इस बेहद मक़बूल रचना के साथ -  
ग़ज़ल ( "कुछ तो है" प्रकाशित संग्रह से ) 
सभी चेहरा छुपाते फिर रहे हैं  
हमारे हाथ में कुछ आईने है 
खिलाडी तुम पुराने ही सही पर 
हमारे पैंतरे बिलकुल नए हैं... 
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हाईकू 

१-जल बतासा 
चहरे पर खुशी
 दिखाई देती 

२-बरसात में 
हुआ मौसम ठंडा 
मन प्रसन्न... 
Akanksha पर Asha Saxena 
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प्रवाह 

इक आह भरता हूं, किश्तों में प्रवाह लिखता हूं.....
मैं अनन्त पथ गामी,घायल हूं पथ के निर्मम कांटों से,पथ के कंटक चुनता हूं,पांवों के छालों संग,अनन्त पथ चल पड़ता हूं,राहों के कई अनुभव,मन में रख लेता हूं यूं सहेजकर,छाले गिन-गिन कर,किश्तों में मन के प्रवाह लिखता हूं...... 

purushottam kumar sinha  
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5 टिप्‍पणियां:

  1. सुप्रभात
    मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद |

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा चर्चा। मेरी रचना शामिल करने के लिए धन्यवाद,आदरणीय शास्त्री जी|

    जवाब देंहटाएं
  3. सुन्दर पितृ दिवस चर्चा। शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
  4. आदरणीय सर -- सादर प्रणाम देरी से आने के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ | मेरी रचना को शामिल करने के लिए आपकी आभारी हूँ | एक बड़े पाठक वर्ग ने रचना का अवलोकन किया है जिसका श्रेय चर्चा मंच को जाता है --सादर |

    जवाब देंहटाएं

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