सुधि पाठकों!
सोमवार की चर्चा में
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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‘स्मृति उपवन’
संस्मरण साहित्य की अपूर्व निधि
(डॉ. महेन्द्र प्रताप पाण्डेय)
हिन्दी साहित्य की विभिन्न विधाओं पर आधिपत्य रखनेवाले डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ जी की संस्मरण आधारित पुस्तक ‘स्मृति उपवन’ की पाण्डुलिपि मेरे समक्ष है। ‘मयंक’ जी ने अभी तक आठ पुस्तकों का प्रकाशन किया है उन सभी पुस्तकों के विषय विभिन्न सामाजिक सरोकारों, परिवर्तनों, सुधारों तथा मनरंजन पर आधारित रहे हैं, कई अच्छे गीतों की रचना भी आपने की है परन्तु आज जिस पाण्डुलिपि की बात मैं कर रहा हूँ वह अपने में अलग विधा है तथा हिन्दी प्रेमियों, शोथार्थियों हेतु उपयोगी होगी। हिन्दी साहित्य की सबसे लचकदार विधा संस्मरण को कहा गया है। अनेकानेक साहित्यकारों तथा महापुरुषों ने अपने जीवन के अनेक स्वणर्णिम पलों को गद्य की इस विधा द्वारा प्रस्तुत किया है,सम्प्रति अतीत की स्मृतियों को बड़े ही आत्मीयता के साथ कल्पना से दूर रहकर डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’ ने ‘स्मृति-उपवन’ का सृजन किया है...
रूपचन्द्र शास्त्री मयंक
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जनता मुझसे पूछ रही है क्या बतलाऊं,
जन कवि हूं मैं साफ कहूंगा क्यों हकलाऊं
Alaknanda Singh
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चन्द माहिया :
क़िस्त 48
:1:
क्यों दुख से घबराए
धीरज रख मनवा
मौसम है बदल जाए
:2:
तलवारों पर भारी
एक कलम मेरी
और इसकी खुद्दारी ...
आपका ब्लॉग पर आनन्द पाठक
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आये कौन दिशा से सजल घन
बरसाये तुम जल-कण ,
आये....
दिशा-दिशा से घूम के आये
स्वजन नेह सन्देश सुनाये
छलक उठा है लोचन बरसाये
तुम जल-कण ,
आये ....
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एटलस साईकिल पर योग-
यात्रा भाग १३:
यात्रा समापन (अंतिम)
Niranjan Welankar
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मैं फेसबुक पर छा जाऊँ
दिल चाहता है मेरा पड़ोसी कार ले आये
मैं उसके संग तस्वीर खिंचवाऊँ
फेसबुक पर लगा के उसको
लाइक और कमेंट्स कमाऊँ
मैं फेसबुक पर छा जाऊँ...
हालात आजकल पर
प्रवेश कुमार सिंह
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ग़ज़ल
उल्फतों का वो समंदर होता
पास में उसके कोई घर होता
दर्द उसके हों और आँसू मेरे
प्रेम का ऐसा ही मंजर होता...
मधुर गुंजन पर ऋता शेखर 'मधु'
उसने यह तैयारी खुद ही की होगी
अब जो मैं लिखने जा रहा हूँ, उसकी कोई प्रासंगिकता या सन्दर्भ नहीं है। कोई कारण भी नहीं है कि मैं यह सब लिखूँ। लेकिन कभी-कभी ऐसा हो जाता है कि न चाहते हुए भी लिखना पड़ जाता है। जबरन। नहीं जानता कि क्यों लिख रहा हूँ। लेकिन लिख रहा हूँ क्योंकि बिना लिखे रहा नहीं जा रहा। धीमी गति से, निरन्तर हो रहे बदलाव सामान्यतः अनदेखे ही रह जाते हैं। उनके बारे में हमें अपने आसपास से जानकारी मिलती है तो हम चौंक जाते हैं - ‘अरे हाँ! ऐसा हुआ तो है। लेकिन कब, कैसे हो गया? पता ही नहीं चला!’ कुछ ऐसी ही दशा होती है हमारी। किन्तु नरेश में धीमी गति से आया यह बदलाव मुझे बराबर नजर आता रहा...
एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी
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बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुन्दर प्रस्तुती,
जवाब देंहटाएंमेरी रचना को स्थान देने के लिए बहूत बहूत आभार राधा जी|
बहुत अच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसशक्त संकलन
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर चर्चा
जवाब देंहटाएंआदरणीय राधा जी -- सादर आभार मेरी रचना को चर्चा मंच पर सजाने के लिए | आजके अंक में अल्लामा इकबाल पर प्रस्तुती ने मुझे बहुत प्रभावित किया | सभी सहयोगी रचनाकारों को सादर , सस्नेह नमन | आपको सस्नेह बधाई |
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