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शनिवार, जुलाई 21, 2018

"गीतकार नीरज तुम्हें, नमन हजारों बार" (चर्चा अंक-3039)

मित्रों! 
शनिवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक। 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

रूस की परम्‍परा के विपरीत व्‍यवहार 

'बर्लिन से बब्‍बू को'
छठवाँ पत्र

बालकवि बैरागी
मास्को हवाई अड्डे से 22 सितम्बर 76 रात्रि के 7.00 बजे

प्रिय बब्बू
प्रसन्न रहो।
आज दोपहर कोई 11.30 बजे बर्लिन में जिस समय हमारा दल होटल “उन्तर डेन लिण्डन” को छोड़ रहा था, तब मैं उदास था, रुथ उदास थी, इमी उदास थी। यहाँ तक कि इरीस और डाक्टर गुन्थर तक एक उदासी में डूबे हुए दिखाई दे रहे थे। इनकी उदासियों पर मुझे कोई विशेष आश्चर्य नहीं हुआ। लेकिन जब मैंने पाया कि हमारे हँसोड़ दुभाषिये मिस्टर क्लोफर, जिन्हें कि हम अत्यधिक प्यार के कारण “मिस्टर लोफर” कहा करते थे, वे तक उदास हैं तो जी. डी. आर. में व्याप्त सम्वेदनाओं के प्रति मेरी धारणा बिलकुल बदल गई। लोग अक्सर कहा करते हैं कि साम्यवादी और समाजवादी व्यवस्था के अन्तर्गत हृदय की कोमल भावनाएँ नष्ट हो जाती हैं। पर हमारे पूरे दल और हमारे मेजबान देश की सभी व्यवस्थापक मनुष्य आकृतियों के चेहरों पर बहते हुए आँसू इस बात का विज्ञापन कर रहे थे कि मनुष्य मूलतः हृदय से शासित होता है। बुद्धि ऐसे क्षणों में पीछे रह जाती है। हृदय की तरलता का नाम ही आँसू है। हम सब रो रहे थे.... 
एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी 

बाढ़ 

ऊफ 
यह बाढ़ रह जाती है 
अखबार की इक खबर बन कर 
या दिखते टेलीविजन पर 
डूबे हुए घर 
चहुं ओर जलथल है पढ़ते... 
Ocean of Bliss पर 
Rekha Josh 
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830- 

कृष्णा वर्मा की कविताएँ 

तेरा जाना
किए जतन मन बहलाने को
मिलते  नहीं  बहाने
अधरों की हड़ताल देख कर
सिकुड़ गईं मुस्कानें... 

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चाकू     ख़ंजर             तीर,   तलवार।
सबकी  अपनी    तेज      है,        धार...
Rajendra Prasad Gupta 
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4 टिप्‍पणियां:

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