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बुधवार, जुलाई 11, 2018

"चक्र है आवागमन का" (चर्चा अंक-3029)

सुधि पाठकों!
बुधवार की चर्चा में 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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Untitled 

Meena Sharma  at  चिड़िया 
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सार्थकता जहाँ सर्वोपरि है 

*‘बर्लिन से बब्बू को’ - चौथा पत्र: पहला हिस्सा* *चौथा पत्र* बर्लिन से 21 सितम्बर 1976 प्रिय बब्बू, सुखी रहो, राम जाने तुम्हें मेरे पहले वालेे पत्र मिलेे भी होंगे या नहीं। मैं यही मानकर निरन्तर तुम्हें लिखता जा रहा हूँ कि मेरे सभी पत्र तुझे बराबर मिल रहे होंगे। आज बर्लिन आये हम लोगों को पूरा हफ्ता हो गया है। इस हफ्ते में हम लोग बहुत व्यस्त रहे और बर्लिन को खूब घूम फिर कर देखा। आसपास के इलाकों में भी हम लोग गये और कई संस्थानों, संस्थाओं और कारखानों में हम लोग घूमते फिरते रहे, मिलते रहे और इस देश को निकट से देखते रहे। अब मेरे पास लिखने को बहुत है... 
एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी 
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ईश्वरीय प्रतिमान ....... 

श्वरीय तत्वों के एकाधिक मुख और हाथ होने के बारे में हम पढ़ते और सुनते आए हैं ,परन्तु कभी इसका कारण अथवा औचित्य जानने का प्रयास ही नहीं किया । सदैव एक अंधश्रध्दा और संस्कारों के अनुसार मस्तक नवा कर नमन ही किया है । आज अनायास ही इसपर विभिन्न विचार मन में घुमड़ रहे थे और मैं उनकी भूलभुलैया में भटकती अनेक तर्क वितर्क स्वयम से ही कर रही थी । कभी सोचती कि आसुरी तत्वों का विनाश करने के लिये एकाधिक हाथों की आवश्यक्ता है ,अगले ही पल सोचती कि सृजन करने के लिये ऐसी लीला रची होगी ईश्वर ने । इन और ऐसे ही अनेक विचारों से जूझ रही थी  
कि लगा कि ये समस्त तर्क उचित नहीं ... 
झरोख़ा पर निवेदिता श्रीवास्तव  
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परदे न हों तो दीप जलाते नहीं सुनो ... 

हम इसलिए फरेब में आते नहीं ... सुनो  
आँखों से आँख उनकी मिलाते नहीं ... सुनो... 
स्वप्न मेरे ...पर Digamber Naswa 
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5 टिप्‍पणियां:

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