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रविवार, जुलाई 08, 2018

"ओटन लगे कपास" (चर्चा अंक-3026)

मित्रों! 
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है। 
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक। 

(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक') 

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दोहे  

" कान्हा मेरे साथ"  

( राधा तिवारी "राधेगोपाल " ) 

रमे राम संसार में, सब बन आदर्शl
 पढ़कर राम चरित्र को, करो विचार विमर्श... 
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नाजी संस्कारों से बचाया  

अपने बच्चों को 

*बर्लिन से बब्‍बू को* 
*तीसरा पत्र - पहला हिस्सा* 
यूसाडेल, मित्रोपा मोटेल न्यूब्रान्डेनवर्ग काउन्टी 14 सितम्बर 76 रात्रि 8.30 प्रिय बब्बू, प्रसन्न रहो, मेरे दो पूर्व पत्र मिल गये होंगे। जी. डी. आर. (पूर्वी जर्मनी) के बारे में मैं बहुत कुछ लिखता जा रहा हूँ। यह मान कर लिखता हूँ कि और किसी तक यदि मेरा लेखन नहीं भी पहुँचे तो कम से कम मेरे परिजनों तक तो मेरे बहाने बहुत आसानी से पहुँच ही जाये... 
एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी 
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अरे वाह!! 

चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’  
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गीतों में बहना 

कभी कभी, अच्छा लगता है, कुछ तनहा रहना। 
तन्हाई में भीतर का सन्नाटा भी बोले  
कथ्य वही जो बंद ह्रदय के दरवाजे खोले।  
अनुभूति के, अतल जलधि को शब्द - शब्द कहना  
कभी कभी, अच्छा लगता है, कुछ तनहा रहना... 
shashi purwar 
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किसी को याद है उस  

"बटर-ऑयल" की ! 

*समय चक्र के घूमने के साथ ही अब फिर "घी" के दिन बहुरने लगे हैं। जी हाँ वही देसी घी जिसके पीछे, कुछ वर्षों पहले आहार, विहार, सेहत, स्वास्थ्य संबंधी विशेषज्ञ-डॉक्टर और ना जाने कौन कौन, पड़े हुए थे; इसकी बुराइयां और हानियाँ बताते हुए ! वैसे ही लोग उसी घी को आज फिर शरीर के लिए अमृत-तुल्य बता उसका गुणगान करते नहीं थक रहे.... 
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा 
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दोस्ती.......... 

सुरेन्द्र 'अभिन्न' 

दोस्ती की जब भी कभी बात हुआ करेगी।  
हमारा भी जिक्र दुनिया कहा सुना करेगी.  
मिलते रहे कदम कदम एक दूजे से 
हौसले घोंसलों से निकले 
तो बुलंदियाँ छुआ करेंगी... 
yashoda Agrawal 
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३१६.  

असमंजस 

बहुत संभलकर बोलता हूँ मैं,  
तौलता हूँ शब्दों को बार-बार,  
पर लोग हैं कि निकाल ही लेते हैं  
मेरे थोड़े-से शब्दों के  
कई-कई अर्थ... 
कविताएँ पर Onkar  
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गिरगिट 

बचपन में देखा था बड़े गौर से 
गिरगिट को रंग बदलते हुए 
अचरज तो हुआ था 
पर बहुत खुश भी हुई थी 
ऐसा कुछ देखते हुए... 
प्यार पर Rewa tibrewal  
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बालकविता  

"सिसक-सिसक कर स्लेट जी रही,  

तख्ती ने दम तोड़ दिया है" 

अपनी बालकृति
"हँसता गाता बचपन" से
तख्ती और स्लेट
slate00
सिसक-सिसक कर स्लेट जी रही,
तख्ती ने दम तोड़ दिया है।
सुन्दर लेख-सुलेख नहीं है,
कलम टाट का छोड़ दिया है।।
 patti1
दादी कहती एक कहानी,
बीत गई सभ्यता पुरानी।
लकड़ी की पाटी होती थी,
बची न उसकी कोई निशानी।
IMG_1104 
फाउण्टेन-पेन गायब हैं,
बॉल पेन फल-फूल रहे हैं।
रीत पुरानी भूल रहे हैं,
नवयुग में सब झूल रहे हैं।।

समीकरण सब बदल गये हैं,
शिक्षा का पिट गया दिवाला।
बिगड़ गये परिवेश प्रीत के,
बिखर गई है मंजुल माला।।

10 टिप्‍पणियां:


  1. जिस थाली में खाएंगे, रक़खो उसे संभालl
    भोजन के तुम साथ में, करना नहीं सवालll

    लिखती राधा खूब हैं गिरधर और गोपाल ,

    जो लिखतीं हैं सार्थक ,करती नहीं धमाल।

    जवाब देंहटाएं

  2. जिस थाली में खाएंगे, रक़खो उसे संभालl
    भोजन के तुम साथ में, करना नहीं सवालll

    लिखती राधा खूब हैं गिरधर और गोपाल ,

    जो लिखतीं हैं सार्थक ,करती नहीं धमाल।

    kabirakhadabazarmen.blogspot.com

    veerubhai1947.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं


  3. ग्वाले मक्खन खा रहे, मोहन की ले ओट।
    सत्ता के तालाब में, मगर रहे हैं लोट।।

    ठगबंधन है बन रहा ,गठबंधन की ओट ,

    चोर ठगु सब साथ हैं ,लकुटी बिना लंगोट।

    शास्त्रीजी बराबर आप हमारी रचनाओं को पनाह दे रहें हैं चर्चा मंच पर जबकि कई तकनिकी कारणों से मैं कबीरा खड़ा बाज़ार या फिर veerubhai1947.blogspot.comसे टिपण्णी नहीं कर पाता हूँ। शुक्रिया आपका लख लख.

    जवाब देंहटाएं

  4. ये तोहफा नहीं साहब कृष्णा की अमानत है ,
    ये हैं ,सब सही सलामत हैं।
    veerubhai1947.blogspot.com

    अरे वाह!!

    अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
    चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’

    जवाब देंहटाएं
  5. सुन्दर रविवारीय चर्चा। आभार आदरणीय 'उलूक' के सूत्र को भी जगह देने के लिये।

    जवाब देंहटाएं
  6. बेहतरीन आलेख सेतु लिए आया है चर्चा मंच। शास्त्रीजी का अनथक अनवरत प्रयास चिट्ठाकारी को जीवित रखे हुए है। जबकि सोशल मीडिया पर लोग अपनी होगी मूती सांझा कर रहे हैं।

    जवाब देंहटाएं
  7. सुंदर संग्रह, सभी पोस्ट पढ़कर आनंद आया ये एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां आने से ब्लोग जगत की बेहतरीन पोस्ट का आनंद मिलता है

    मेरी पोस्ट को स्थान देने के लीये आदरणीय शास्त्री जी का आभारी हु

    जवाब देंहटाएं

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