मित्रों!
रविवार की चर्चा में आपका स्वागत है।
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
(डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक')
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नियम नहीं हैं
कोई गल नहीं
बिना नियम के चलवा देंगे
हजूर हम समझा देंगे
उलूक टाइम्स पर
सुशील कुमार जोशी
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नाजी संस्कारों से बचाया
अपने बच्चों को
*बर्लिन से बब्बू को*
*तीसरा पत्र - पहला हिस्सा*
यूसाडेल, मित्रोपा मोटेल न्यूब्रान्डेनवर्ग काउन्टी 14 सितम्बर 76 रात्रि 8.30 प्रिय बब्बू, प्रसन्न रहो, मेरे दो पूर्व पत्र मिल गये होंगे। जी. डी. आर. (पूर्वी जर्मनी) के बारे में मैं बहुत कुछ लिखता जा रहा हूँ। यह मान कर लिखता हूँ कि और किसी तक यदि मेरा लेखन नहीं भी पहुँचे तो कम से कम मेरे परिजनों तक तो मेरे बहाने बहुत आसानी से पहुँच ही जाये...
एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी
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गीतों में बहना
कभी कभी, अच्छा लगता है, कुछ तनहा रहना।
तन्हाई में भीतर का सन्नाटा भी बोले
कथ्य वही जो बंद ह्रदय के दरवाजे खोले।
अनुभूति के, अतल जलधि को शब्द - शब्द कहना
कभी कभी, अच्छा लगता है, कुछ तनहा रहना...
sapne(सपने) पर
shashi purwar
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किसी को याद है उस
"बटर-ऑयल" की !
*समय चक्र के घूमने के साथ ही अब फिर "घी" के दिन बहुरने लगे हैं। जी हाँ वही देसी घी जिसके पीछे, कुछ वर्षों पहले आहार, विहार, सेहत, स्वास्थ्य संबंधी विशेषज्ञ-डॉक्टर और ना जाने कौन कौन, पड़े हुए थे; इसकी बुराइयां और हानियाँ बताते हुए ! वैसे ही लोग उसी घी को आज फिर शरीर के लिए अमृत-तुल्य बता उसका गुणगान करते नहीं थक रहे....
कुछ अलग सा पर गगन शर्मा
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दोस्ती..........
सुरेन्द्र 'अभिन्न'
दोस्ती की जब भी कभी बात हुआ करेगी।
हमारा भी जिक्र दुनिया कहा सुना करेगी.
मिलते रहे कदम कदम एक दूजे से
हौसले घोंसलों से निकले
तो बुलंदियाँ छुआ करेंगी...
मेरी धरोहर पर
yashoda Agrawal
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३१६.
असमंजस
बहुत संभलकर बोलता हूँ मैं,
तौलता हूँ शब्दों को बार-बार,
पर लोग हैं कि निकाल ही लेते हैं
मेरे थोड़े-से शब्दों के
कई-कई अर्थ...
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गिरगिट
बचपन में देखा था बड़े गौर से
गिरगिट को रंग बदलते हुए
अचरज तो हुआ था
पर बहुत खुश भी हुई थी
ऐसा कुछ देखते हुए...
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बालकविता
"सिसक-सिसक कर स्लेट जी रही,
तख्ती ने दम तोड़ दिया है"
अपनी बालकृति
"हँसता गाता बचपन" से
"हँसता गाता बचपन" से
तख्ती और स्लेट
सिसक-सिसक कर स्लेट जी रही,
तख्ती ने दम तोड़ दिया है।
सुन्दर लेख-सुलेख नहीं है,
कलम टाट का छोड़ दिया है।।
दादी कहती एक कहानी,
बीत गई सभ्यता पुरानी।
लकड़ी की पाटी होती थी,
बची न उसकी कोई निशानी।
फाउण्टेन-पेन गायब हैं,
बॉल पेन फल-फूल रहे हैं।
रीत पुरानी भूल रहे हैं,
नवयुग में सब झूल रहे हैं।।
समीकरण सब बदल गये हैं,
शिक्षा का पिट गया दिवाला।
बिगड़ गये परिवेश प्रीत के,
बिखर गई है मंजुल माला।।
जवाब देंहटाएंजिस थाली में खाएंगे, रक़खो उसे संभालl
भोजन के तुम साथ में, करना नहीं सवालll
लिखती राधा खूब हैं गिरधर और गोपाल ,
जो लिखतीं हैं सार्थक ,करती नहीं धमाल।
जवाब देंहटाएंजिस थाली में खाएंगे, रक़खो उसे संभालl
भोजन के तुम साथ में, करना नहीं सवालll
लिखती राधा खूब हैं गिरधर और गोपाल ,
जो लिखतीं हैं सार्थक ,करती नहीं धमाल।
kabirakhadabazarmen.blogspot.com
veerubhai1947.blogspot.com
जवाब देंहटाएंग्वाले मक्खन खा रहे, मोहन की ले ओट।
सत्ता के तालाब में, मगर रहे हैं लोट।।
ठगबंधन है बन रहा ,गठबंधन की ओट ,
चोर ठगु सब साथ हैं ,लकुटी बिना लंगोट।
शास्त्रीजी बराबर आप हमारी रचनाओं को पनाह दे रहें हैं चर्चा मंच पर जबकि कई तकनिकी कारणों से मैं कबीरा खड़ा बाज़ार या फिर veerubhai1947.blogspot.comसे टिपण्णी नहीं कर पाता हूँ। शुक्रिया आपका लख लख.
जवाब देंहटाएंये तोहफा नहीं साहब कृष्णा की अमानत है ,
ये हैं ,सब सही सलामत हैं।
veerubhai1947.blogspot.com
अरे वाह!!
अंदाज़े ग़ाफ़िल पर
चन्द्र भूषण मिश्र ‘ग़ाफ़िल’
शुभ प्रभात
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुन्दर चर्चा. आभार.
जवाब देंहटाएंसुन्दर रविवारीय चर्चा। आभार आदरणीय 'उलूक' के सूत्र को भी जगह देने के लिये।
जवाब देंहटाएंबढ़िया चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंबेहतरीन आलेख सेतु लिए आया है चर्चा मंच। शास्त्रीजी का अनथक अनवरत प्रयास चिट्ठाकारी को जीवित रखे हुए है। जबकि सोशल मीडिया पर लोग अपनी होगी मूती सांझा कर रहे हैं।
जवाब देंहटाएंसुंदर संग्रह, सभी पोस्ट पढ़कर आनंद आया ये एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जहां आने से ब्लोग जगत की बेहतरीन पोस्ट का आनंद मिलता है
जवाब देंहटाएंमेरी पोस्ट को स्थान देने के लीये आदरणीय शास्त्री जी का आभारी हु