सुधि पाठकों!
बुधवार की चर्चा में
देखिए मेरी पसन्द के कुछ लिंक।
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मेघ-मल्हार......
ऋषभ खोड़के "रुह"
मेरी धरोहर पर
yashoda Agrawal
--मुक्त-ग़ज़ल : 262 -
पागल सरीखा
01-15 July 2018
दीनदयाल शर्मा
--क्या गैर मुस्लिम की मदद
इस्लाम में मना है?
क्या साथ चलने का बहाना एक नहीं
साथ न चलने के सौ बहाने करने वाले
क्या साथ चलने का बहाना एक नहीं ?
जब रिश्ते में दरारें पड़ने लगतीं हैं तो ऐसा ही होता है। प्यार का पौधा भी पानी माँगता है। वही रिश्ता जो सबसे हसीन था वही कब चुभने लगता है कि नश्तर बन जाता है , पता ही नहीं चलता। वही साथी जिसके बिना रहा नहीं जाता था आज साथ रहा नहीं जाता ; सौ कमियाँ दिखती हैं। कितने ही कारण परिस्थिति-जन्य होते हैं जिनमें हम अपनी अज्ञानता से बढ़ोत्तरी कर लेते हैं। बात उतनी बड़ी नहीं होती, जितनी बहस से बड़ी हो जाती है , और फिर शब्द पकड़ लिए जाते हैं। किसी ने कुछ कहा और हम उसका एक्स-रे निकाल लेते हैं। हर बात में उसका कोई उद्देश्य ढूँढ लेते हैं , और फिर शुरू हो जाते हैं उसे गलत सिद्ध करने में...
क्या साथ चलने का बहाना एक नहीं ?
जब रिश्ते में दरारें पड़ने लगतीं हैं तो ऐसा ही होता है। प्यार का पौधा भी पानी माँगता है। वही रिश्ता जो सबसे हसीन था वही कब चुभने लगता है कि नश्तर बन जाता है , पता ही नहीं चलता। वही साथी जिसके बिना रहा नहीं जाता था आज साथ रहा नहीं जाता ; सौ कमियाँ दिखती हैं। कितने ही कारण परिस्थिति-जन्य होते हैं जिनमें हम अपनी अज्ञानता से बढ़ोत्तरी कर लेते हैं। बात उतनी बड़ी नहीं होती, जितनी बहस से बड़ी हो जाती है , और फिर शब्द पकड़ लिए जाते हैं। किसी ने कुछ कहा और हम उसका एक्स-रे निकाल लेते हैं। हर बात में उसका कोई उद्देश्य ढूँढ लेते हैं , और फिर शुरू हो जाते हैं उसे गलत सिद्ध करने में...
पर
शारदा अरोरा
--ऐसे होती है
धरम की मुफ्त सेवा
दोनों तनिक सहमते हुए आए थे। बोले - ‘आप से थोड़ी बात करनी है। लेकिन डर लग रहा है। कहीं आप बात बात सबके सामने नहीं कर दो।’ मुझे हँसी आ गई। पूछा - ‘बात मेरे काम की है या तुम्हारे काम की?’ सहमी आवाज में एक बोला - ‘बात है तो हमारे ही काम की।’ मैंने कहा - ‘तो फिर रहने दो। तुम्हारे काम की तुम जानो।’ दोनों सकपका गए। दूसरा बोला - ‘वो ऐसा है कि है तो हमारे काम की लेकिन थोड़ी-थोड़ी आपके काम की भी है।’ मैंने कहा - ‘तो फिर मुझे उतनी ही बता दो जो मेरे काम की है।’ जवाब आया - ‘देखो सा’ब! हम पहले ही डरे हुए हैं। ऐसी बातें करके आप हमें और मत डराओ।’ अब मैं जोर से हँसा - ‘यार! तुम लोग साफ-साफ बात करो...
एकोऽहम् पर विष्णु बैरागी
--ब्लागिंग दिवस पर -
बच्चे मन के सच्चे
Smart Indian
--कथा - गाथा :
वृश्चिक संक्रान्ति :
प्रचण्ड प्रवीर
समालोचन पर arun dev
--आधा दर्जन से अधिक किशोर कैदी
शेखपुरा के ऑब्जरवेशन होम से फरार!
बिहार का पहला
किशोर कैदी गृह है शेखपुरा में..
विवेक चतुर्वेदी की कविताएँ
पहली बार पर
Santosh Chaturvedi
--जाएं तो किधर जाएं!
मेरी जानकारी के अनुसार देश भर में साधु-संन्यासी, मुल्ला-मौलवी, सिस्टर-पादरी आदि-आदि जो भी धर्म और समाज हित में घर-बार छोड़कर समाज के भरोसे काम कर रहे हैं, उनकी संख्या एक करोड़ से भी अधिक है। ये समाज के धन पर ही पलते हैं और फलते-फूलते भी हैं। दूसरी तरफ फिल्म उद्योग से जुड़े, कलाकार, संगीतज्ञ, लेखक आदि-आदि की संख्या देखें तो यह भी करोड़ के आस-पास तो है ही। ये दोनों ही प्रकार की प्रजातियाँ लोगों के मन को प्रभावित करती हैं और
नये प्रकार के जीवन की ओर ले जाती हैं..
smt. Ajit Gupta
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सुन्दर और पठनीय लिंक।
जवाब देंहटाएंआपका आभार राधा बहन जी।
शुभ प्रभात सखी
जवाब देंहटाएंआभार
सादर
सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसुंदर चर्चा!
जवाब देंहटाएंअच्छी चर्चा प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंविषयों की विविधता में सार्थक चर्चा .
जवाब देंहटाएंधन्यवाद आदरणीया .
वाह सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसभी रचनाएँ उत्क्रष्ट है
हमारी रचना को स्थान देने के लिए हार्दिक आभार
सादर नमन शुभ संध्या
खूबसूरत चर्चा
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